दरअसल गजेंद्र (परिवर्तित नाम) का विवाह वर्ष 2005 में नीता(परिवर्तन) से हुआ था। विवाह के दो साल साथ रह सके। 2007 में पत्नी ने घर छोड़ दिया। पति, उसके परिवार के ऊपर केस दर्ज करा दिए। केस दर्ज होने के बाद दोनों के बीच विवाद और बढ़ गया। इसको लेकर पति ने कुटुंब न्यायालय शिवपुरी में तलाक के लिए परिवाद दायर किया। पति ने कोर्ट के समक्ष उन सभी केसों को रखा, जिसे पत्नी ने दर्ज कराया था। हालांकि न्यायालय में सभी केस झूठे निकले। पत्नी ने जो झूठे केस दर्ज कराए, उसे कुटुंब न्यायालय ने क्रूरता माना। इसी आधार पर पति के पक्ष में 29 जून 2015 को तलाक की डिक्री पारित कर दी। इस डिक्री के खिलाफ नीता ने हाईकोर्ट में अपील दायर की। यह अपील 2015 से लंबित थी। बुधवार को कोर्ट ने दोनों पक्षों को बुलाया। अलग रहते हुए दोनों को काफी लंबा समय बीत गया। कोर्ट ने अलग होने की सलाह दी। पत्नी 6.15 लाख रुपए लेकर आपसी सहमति से तलाक के लिए तैयार गई। पति ने 6.15 लाख रुपए का भुगतान पत्नी को कर दिया। कोर्ट ने तलाक को मंजूर कर दिया। गजेंद्र का कहना है कि 17 साल केसों का सामना कर रहा हूं। इस कारण बाबा भी बन गया हूं।