कुलदीप सिंह तोमर एमबीए करने के बाद नौकरी के लिए भटक रहे थे। बाद में उन्होंने अपने दोस्तों के साथ आत्मनिर्भर होने की योजना बनाई। उन्होंने घर की छत पर मशरूम की खेती करना सीखा और मशरूम के लिए बाजार की तलाश की। जब ग्वालियर में इसका बाजार नहीं मिला तो दवा फैक्ट्रियों से संपर्क किया। मांग अधिक व सप्लाई कम होने पर उन्होंने ऐसे बेरोजगार युवाओं की तलाश की जो नौकरी के लिए भटक रहे थे। ऐसे शिक्षित युवाओं को प्रशिक्षित किया, फिर उन्हें मशरूम की खेती करके स्वावलंबी बनाया। इसके बाद कई युवाओं ने मुरैना, सेंवढ़ा, दतिया और ग्वालियर के शहरी व ग्रामीण क्षेत्र में मशरूम उत्पादन के छोटे-छोटे प्लांट लगाए। यह युवा हर साल दो से तीन लाख रुपए का मशरूम बेचकर आत्मनिर्भर हो गए हैं।
मशरूम की खेती से कम लागत में ज्यादा मुनाफा कमाने वाली टीम में कुलदीप के साथ अरविंद सिंह तोमर, हरिचरण गोस्वामी, महावीर ङ्क्षसह सिकरवार शामिल हैं। यह ग्वालियर और चंबल संभाग के 40 से अधिक युवाओं के साथ जुड़कर खेती कर रहे हैं। वही इनके द्वारा युवाओं को जोड़ने के लिए राजस्थान के भीलबाड़ा, श्योपुर जिला, भितरवार, यूपी के अलीगढ़, पीलीभीत, उत्तराखंड के ऋषिकेश जिले में प्रशिक्षण दिया है। इस प्रशिक्षण में मशरूम से पापड़, अचार जैसे प्रोडेक्ट को घरों पर तैयार करने की विधि भी बताते हैं।