सूत्रों के अनुसार ग्वालियर जिले में लगभग 210 राशन की दुकानें हैं। जहां से जिले के लगभग 80 हजार राशन कार्ड धारियों को राशन मिलता है। शहर की एक दुकान ढाई सौ से तीन सौ राशन कार्ड से संबद्ध है। ग्रामीण क्षेत्र की एक दुकान से लगभग पांच सौ से आठ सौ लोग संबद्ध है। इसकी वजह यह है कि ग्रामीण क्षेत्र में किसानों को शासन की ओर से राशन दिए जाने की व्यवस्था है। इन कन्ट्रोलों का संचालन सोसायटी कर रही हैं। यह बात अलग है कि यह सोसायटी अधिकतर भाजपा नेताओं की हैं। सन् 2003 में कांग्रेसी संचालकों को हटाकर भाजपा नेताओं को तत्कालीन सरकार ने अपनी सरकार के कार्यकर्ताओं को समूह बनाकर कन्ट्रोल दे दी थी।
शासन की ओर से राशन बंटने की ये व्यवस्था है कि अति गरीबी रेखा वाले एक व्यक्ति को चार किलो गेहूं, एक किलो चावल और दो लीटर कैरोसिन मिलता है। ये कैरोसिन तभी मिलेगा जब उसके यहां गैस नहीं होगी। इसके लिए उसको एक शपथ पत्र भी देना होगा। ऐसे ही राशन गरीबी रेखा वाले को मिलता है। पूर्व में मध्यम वर्ग यानि एपीएल कार्ड धारकों को भी राशन मिलने की व्यवस्था थी, जिसको सरकार ने बंद कर दिया है। ऐसे ही पहले बीपीएल वाले राशनकार्ड धारकों को शक्कर मिलती थी जो लगभग डेढ़ वर्ष पहले बंद हो गई है। जब सेवानगर स्थित राशन की दुकान पर एकत्रित कुछ लोगों से चर्चा की तो उनका कहना था कि एक आदमी एक माह में कम से कम दस किलो गेहूं खाता है, जबकि दुकान से एक आदमी को मात्र चार किलो गेहूं और एक किलो चावल मिल रहे हैं जो अपर्याप्त हैं। राशन की मात्रा तो बढ़ाया जाना चाहिए।
गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वालों ने बताया कि राशन लेने के समय बायोमीट्रिक हाजिरी अनिवार्य कर दी है। आपागंज निवासी साठ वर्षीय रामबाई बताती हैं कि उनके अंगूठे की रेखाएं मिट सी गई हैं, इसके बाद भी कन्ट्रोल वाला बगैर अंगूठे के राशन नहीं देता है, इसकी मैं शिकायत भी कर चुकी हूं, इसके बाद भी उसे दो माह से राशन नहीं मिला। जबकि राशन की दुकान के संचालकों को आदेश है कि जिसका थम्ब न लगे उसे आधार कार्ड देखकर और रजिस्टर में एन्ट्री करके दिया जा सकता है, लेकिन राशन की दुकान के संचालक इस आदेश को न मानकर गरीबों का राशन डकार कर बाजार में ठिकाने लगा रहे हैं। इसके अलावा राशन की दुकान खुलने का समय सुबह आठ बजे का है, लेकिन कई दुकानें दस बजे तक भी नहीं खुल रही हैं।