दरअसल, चीता प्रोजेक्ट के अस्तित्व में आने के पहले सिंह परियोजना के लिए कूनो क्षेत्र से 24 गांवों के 1545 परिवारों का विस्थापन किया जा चुका है। विस्थापित हुए गांवों के लोग अभी भी पुराने गांव को भूल नहीं सके हैं और जिस नई जगह ग्रामीणों को बसाया गया है वह प्रकृति से दूर हैं। अब आखिरी गांव बागचा केे विस्थापन को अंतिम रूप दिया जा चुका है। यहां निवासरत परिवारों को पैसा या जमीन दो विकल्प दिए गए थे। 170 ग्रामीणों ने जमीन के विकल्प को चुना। इसके बाद सभी को दो हेक्टेयर खेती की जमीन और रहने के लिए घर बनाने को निश्चित धनराशि देने का वादा किया गया था।
यह हुआ अब तक
-223 परिवारों में 53 को प्रति परिवार 15 लाख रुपए एकमुश्त राशि दी गई है।
-170 परिवारों को घर बनाने के लिए तीन लाख रुपए और दो हेक्टेयर भूमि देने का वादा किया गया है।
यहां बस रहा नया बागचा
कूनो में बसे आखिरी गांव बागचा को अब शहर से 12 किमी दूर रामबाड़ी और चकबमूलिया के बीच नया बागचा के नाम से बसाया जा रहा है। आदिवासी ग्रामीणों को नहर किनारे की जमीन इसलिए दी गई है ताकि खेती के लिए सिंचाई का पानी मिल सके। खेती के लिए जो जमीन दी गई है, उसमें पत्थर हैं और उसको उपजाऊ बनाने के लिए तीन से चार वर्ष का समय लग जाएगा। इसके अलावा भूमि को सही करने में ही आदिवासियों की अच्छी खासी राशि खर्च हो जाएगी।
यह हैं परेशानियां
-बसाहट वाली जगह पेयजल का स्थाई इंतजाम नहीं किया गया। पंचायत का टैंकर आता है, उसके लिए भी परिवारों को इंतजार करना पड़ता है।
-असामाजिक तत्वों से परिवारों की सुरक्षा का कोई इंतजाम नहीं है, झोपडिय़ां चारों ओर से खुली हैं, खुली जगह में ही लोगों की ग्रहस्थी रखी है।
-72 परिवारों को नहर के एक ओर और 95 परिवारों को रामबाड़ी पंचायत के सामने नहर के दूसरी ओर रहने के लिए जगह दी गई है।
-जंगल से जड़ी बूटियां लेकर आने से परिवारों को खेती के अलावा भी आमदनी हो जाती थी, अब यह आमदनी खत्म हो जाएगी।
-भूखंड आवंटन कर दिया गया है, कृषि भूमि भी बता दी गई है, लेकिन मालिकाना हक अभी तक नहीं दिया गया।