वो पांडित्य मुझे क्लिष्ट कर देता जो रुचिपूर्ण नहीं रहता..
- मैं बचपन में डॉक्टर बनना चाहता था। उसमें सेवा का भाव जरूर रहता, लेकिन केंद्र में अपना स्वार्थ रहता। ठाकुरजी ने यह कार्य मेरे लिए चुना इसलिए संजोग ऐसे बने। मुझे प्रसन्नता और संतोष है। ईश्वर से प्रार्थना रहती है कि मैं मानवता और राष्ट्र के काम आ सकूं, सही सेवा कर सकूं। सीधे सीधे संस्कृत पाठशाल में शास्त्री या आचार्य कर लेता या किसी विषय में डॉक्टरेट कर लेता है, तो यह वाला पांडित्य मुझे ज्यादा क्लिष्ट बना देता, जनसाधारण के लिए रुचिपूर्ण नहीं रहता।
- मैं बचपन में डॉक्टर बनना चाहता था। उसमें सेवा का भाव जरूर रहता, लेकिन केंद्र में अपना स्वार्थ रहता। ठाकुरजी ने यह कार्य मेरे लिए चुना इसलिए संजोग ऐसे बने। मुझे प्रसन्नता और संतोष है। ईश्वर से प्रार्थना रहती है कि मैं मानवता और राष्ट्र के काम आ सकूं, सही सेवा कर सकूं। सीधे सीधे संस्कृत पाठशाल में शास्त्री या आचार्य कर लेता या किसी विषय में डॉक्टरेट कर लेता है, तो यह वाला पांडित्य मुझे ज्यादा क्लिष्ट बना देता, जनसाधारण के लिए रुचिपूर्ण नहीं रहता।
धर्म की प्रत्येक बातों को विज्ञान की दृष्टि से देखता हूं...
बचपन से मेरी रुचि विज्ञान के प्रति रहने से धर्म की प्रत्येक बातों को विज्ञान की आंखों से देखने का अभ्यास सा हो गया है। इसका परिणाम यह निकला कि हमारे ग्रंथों में हम जिसे धार्मिक बातें कहते हैं उन बातों की वैज्ञानिकता को समझने का मौका मिला। इससे मेरी श्रद्धा और बलवती हुई, ग्रंथों के प्रति आदर हुआ, संतों व महर्षियों के के प्रति अहोभाव उत्पन्न हुआ। मुझे युवाओं के साथ ज्यादा आंनद आता है। अभी युवा पीढ़ी इतनी मात्रा में कथा में नहीं मिलती।
बचपन से मेरी रुचि विज्ञान के प्रति रहने से धर्म की प्रत्येक बातों को विज्ञान की आंखों से देखने का अभ्यास सा हो गया है। इसका परिणाम यह निकला कि हमारे ग्रंथों में हम जिसे धार्मिक बातें कहते हैं उन बातों की वैज्ञानिकता को समझने का मौका मिला। इससे मेरी श्रद्धा और बलवती हुई, ग्रंथों के प्रति आदर हुआ, संतों व महर्षियों के के प्रति अहोभाव उत्पन्न हुआ। मुझे युवाओं के साथ ज्यादा आंनद आता है। अभी युवा पीढ़ी इतनी मात्रा में कथा में नहीं मिलती।
युवाओं को धर्म से जोडऩा क्यों आवश्यक है?
संभवत: युवाओं के लिए कथा वाली पैकेजिंग की एक्सेप्टेंस (स्वीकार्यता) नहीं है। इसके लिए मुझे पैकेजिंग चेंज करनी होगी, युवाओं के पास जाने के लिए। युवा पीढ़ी सुनिश्चित करना होगा कि इस अद्भुत चीज से हमारी आने वाली पीढ़ी वंचित न रह जाए। अगर धर्म से वंचित रह गए तो वे समृद्ध होकर भी वैचारिक और चारित्रिक रूप से समाज व राष्ट्र के लिए सार्थक नहीं होंगे। अपना मकान, गाड़ी, बैंक बैलेंस जैसी क्षुद्र बातों के लिए नही हैं, उनमें बड़ी संभावनाएं हैं।
संभवत: युवाओं के लिए कथा वाली पैकेजिंग की एक्सेप्टेंस (स्वीकार्यता) नहीं है। इसके लिए मुझे पैकेजिंग चेंज करनी होगी, युवाओं के पास जाने के लिए। युवा पीढ़ी सुनिश्चित करना होगा कि इस अद्भुत चीज से हमारी आने वाली पीढ़ी वंचित न रह जाए। अगर धर्म से वंचित रह गए तो वे समृद्ध होकर भी वैचारिक और चारित्रिक रूप से समाज व राष्ट्र के लिए सार्थक नहीं होंगे। अपना मकान, गाड़ी, बैंक बैलेंस जैसी क्षुद्र बातों के लिए नही हैं, उनमें बड़ी संभावनाएं हैं।
युवाओं में क्या परिवर्तन हो जो वे राष्ट्र की ताकत बनें?
युवाओं पर आक्षेप नहीं है, निर्णायक के तौर पर नहीं कहता, लेकिन आज की परिस्थिति में युवा सिर्फ अपने कॅरियर और स्वयं को स्थापित करने पर सोच रहा है। इसमें इतना व्यस्त है कि उसके पास समाज व राष्ट्र के लिए सोचने का समय नहीं है। स्प्रिचुअल अपलिफ्टमेंट के लिए विचार नहीं है। अपने को उन्नत करना अच्छा है, उनके लक्ष्य में साथ हूं, लेकिन वे अपनेआप को मजबूत करने में दूसरों के कल्याण का भाव लाएं। धर्मशास्त्र में भी वैयक्तिक लाभ के प्रति ऋषियों ने बल नहीं दिया है। कुटुम्ब का सोचें, उससे ऊपर समाज और राष्ट्र और फिर विश्व मानवता के कल्याण का भाव बनाएं।
युवाओं पर आक्षेप नहीं है, निर्णायक के तौर पर नहीं कहता, लेकिन आज की परिस्थिति में युवा सिर्फ अपने कॅरियर और स्वयं को स्थापित करने पर सोच रहा है। इसमें इतना व्यस्त है कि उसके पास समाज व राष्ट्र के लिए सोचने का समय नहीं है। स्प्रिचुअल अपलिफ्टमेंट के लिए विचार नहीं है। अपने को उन्नत करना अच्छा है, उनके लक्ष्य में साथ हूं, लेकिन वे अपनेआप को मजबूत करने में दूसरों के कल्याण का भाव लाएं। धर्मशास्त्र में भी वैयक्तिक लाभ के प्रति ऋषियों ने बल नहीं दिया है। कुटुम्ब का सोचें, उससे ऊपर समाज और राष्ट्र और फिर विश्व मानवता के कल्याण का भाव बनाएं।
समाज के लिए धर्म कैसे कल्याणकारी है?
धर्म की सही रूप में व्याख्या करना आवश्यक है। कर्मकांड या पूजा पद्धति नहीं है, यह धर्म का एक अंग है लेकिन यही धर्म नहीं है। धर्म की विशाल और सर्वसमावेशी व्याख्या की गई है। इस लोक में शैक्षणिक, सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक जैसे सभी पहलुओं में उन्नति के लिए संघर्ष हैं। इसमें सफलता और निष्फलता दोनों ही हैं। धर्म व्यवहार में तो निष्फल होने पर आपको कमजोर नहीं होने देगा और सफल होने पर अंहकार में पडक़र उडऩे से रोकेगा। यह तभी संभव है जब धर्म हो यह धर्म के माध्यम से हो सकता है तो धर्म अनिवार्य है। धर्म से रहित मनुष्य पशु के समान है।
सरलता से इसे कैसे समझ सकते हैं?
आप मोबाइल चौबीस घंटे चार्ज नहीं करते। ऐसा सिर्फ 15-20 मिनट करते हैं जिससे यह चौबीस घंटे काम करता है। इसी तरह धर्म या पूजापाठ में चौबीस घंटे नहीं देना है। 15-20 मिनट धर्म को देने से अध्यात्मिक चेतना आपको चौबीस घंटे अच्छा काम करनी की ऊर्जा देगी।
इंसान धर्म से जुडक़र भी गलती क्यों करता है?
संसार में बहुत सारी शक्तियां अपना अपना काम करती हैं, तत्कालिक सामाजिक और पारिवारिक परिस्थिति के चलते इंसान कमजोर होकर समझौते करने को तैयार हो जाता है। फिर उसे ही जीवन का हिस्सा मानकर वैसा ही करता जाता है। कथा सत्संग के माध्यम से उसमें गलत को गलत और सही को सही समझने का विवेक आता है। मैं गलत कर रहा हूं यह समझ लेगा तो सार्थकता होगी। कथा सतसंग के माध्यम से लोगों में इतनी जागृति बनी रहे तो वहां उद्धार की संभावना रहती है।
धर्म और राजनीति को कैसे समझा जाए?
धर्म की सही रूप में व्याख्या करना आवश्यक है। कर्मकांड या पूजा पद्धति नहीं है, यह धर्म का एक अंग है लेकिन यही धर्म नहीं है। धर्म की विशाल और सर्वसमावेशी व्याख्या की गई है। इस लोक में शैक्षणिक, सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक जैसे सभी पहलुओं में उन्नति के लिए संघर्ष हैं। इसमें सफलता और निष्फलता दोनों ही हैं। धर्म व्यवहार में तो निष्फल होने पर आपको कमजोर नहीं होने देगा और सफल होने पर अंहकार में पडक़र उडऩे से रोकेगा। यह तभी संभव है जब धर्म हो यह धर्म के माध्यम से हो सकता है तो धर्म अनिवार्य है। धर्म से रहित मनुष्य पशु के समान है।
सरलता से इसे कैसे समझ सकते हैं?
आप मोबाइल चौबीस घंटे चार्ज नहीं करते। ऐसा सिर्फ 15-20 मिनट करते हैं जिससे यह चौबीस घंटे काम करता है। इसी तरह धर्म या पूजापाठ में चौबीस घंटे नहीं देना है। 15-20 मिनट धर्म को देने से अध्यात्मिक चेतना आपको चौबीस घंटे अच्छा काम करनी की ऊर्जा देगी।
इंसान धर्म से जुडक़र भी गलती क्यों करता है?
संसार में बहुत सारी शक्तियां अपना अपना काम करती हैं, तत्कालिक सामाजिक और पारिवारिक परिस्थिति के चलते इंसान कमजोर होकर समझौते करने को तैयार हो जाता है। फिर उसे ही जीवन का हिस्सा मानकर वैसा ही करता जाता है। कथा सत्संग के माध्यम से उसमें गलत को गलत और सही को सही समझने का विवेक आता है। मैं गलत कर रहा हूं यह समझ लेगा तो सार्थकता होगी। कथा सतसंग के माध्यम से लोगों में इतनी जागृति बनी रहे तो वहां उद्धार की संभावना रहती है।
धर्म और राजनीति को कैसे समझा जाए?
धर्म और राजनीति को मिलकर जनकल्याण का काम करना होता है। राजनीति जनता पर शासन होता है, धर्म जन के ह्दय पर शासन करता है। राजनीतिक व्यवस्था के चलते प्रशासक कानून व्यवस्था के लिए जो अनिवार्य है वो करता है। यह लादा जाता है, लेकिन धर्म को स्वीकारा जाता है। लादा जाए वह धर्म नहीं, कई जगह धर्म भी लादा जाता है, यह सभी प्रजा के प्रति समर्पित है। इसलिए राजा हमेशा धर्म का आदर करता है।
सभी दल व नेता धर्म से जोडऩा चाहते हैं?
शास्त्रों मेंं राजा को विष्णु रूप माना गया है। जब चक्रवर्ती राजा का अभिषेक होता था तो वह राजदंड लेकर कहता था मुझे कोई दंड नहीं दे सकता। तब उसका राजतिलक करने वाले राजगुरु धर्म दंड का स्पर्श कराकर कहते थे धर्म दंड दे सकता है। राजदरबार में विष्णुरूप राजा से धर्मगुरु भी एक फीट नीचे बैठते और जब वही राजा आश्रम या गुरुकुल जाता तो धर्मगुरु से एक फीट नीचे बैठता। अद्भुत व्यवस्था थी। इसलिए जब धर्म क्षेत्र में कुछ गड़बड़ हो तो राजा को सक्रिय हो जाना चाहिए और जब राजनीति में कुछ गड़बड़ हो तो धर्म को जागृत होकर उसे ठीक करने के लिए सक्रिय हो जाना चाहिए।
धर्मपीठ से राजा बनने का आशीर्वाद दिया जा रहा है?
धर्म पीठ जब सबका कल्याण चाहती है, जब वह ऐसा चाहती है तभी धर्म पीठ है। गुजरात में खड़पीठ होती हैं जहां से अनाज या भूसे का व्यापार होता है। धर्मपीठ व्यापार या व्यवसाय की पीठ नहीं है। इसलिए राजनीतिक क्षेत्र के लोग आते हैं। सभी को आशीर्वाद है उनका आदर है। लेकिन अंदर से आशीर्वाद उन्हीं को होगा जो वास्तव में प्रजा का हित करे या राष्ट्र हित का सोचे। धर्म पीठ किसी को धुत्कारती या पुचकारती नहीं है। स्वस्थ व्यासपीठ वह है जो भी सम्रग समाज की उन्नति और राष्ट्र उत्थान का कार्य करेगा उसका समर्थन करने वाले को आशीर्वाद दे।
शास्त्रों मेंं राजा को विष्णु रूप माना गया है। जब चक्रवर्ती राजा का अभिषेक होता था तो वह राजदंड लेकर कहता था मुझे कोई दंड नहीं दे सकता। तब उसका राजतिलक करने वाले राजगुरु धर्म दंड का स्पर्श कराकर कहते थे धर्म दंड दे सकता है। राजदरबार में विष्णुरूप राजा से धर्मगुरु भी एक फीट नीचे बैठते और जब वही राजा आश्रम या गुरुकुल जाता तो धर्मगुरु से एक फीट नीचे बैठता। अद्भुत व्यवस्था थी। इसलिए जब धर्म क्षेत्र में कुछ गड़बड़ हो तो राजा को सक्रिय हो जाना चाहिए और जब राजनीति में कुछ गड़बड़ हो तो धर्म को जागृत होकर उसे ठीक करने के लिए सक्रिय हो जाना चाहिए।
धर्मपीठ से राजा बनने का आशीर्वाद दिया जा रहा है?
धर्म पीठ जब सबका कल्याण चाहती है, जब वह ऐसा चाहती है तभी धर्म पीठ है। गुजरात में खड़पीठ होती हैं जहां से अनाज या भूसे का व्यापार होता है। धर्मपीठ व्यापार या व्यवसाय की पीठ नहीं है। इसलिए राजनीतिक क्षेत्र के लोग आते हैं। सभी को आशीर्वाद है उनका आदर है। लेकिन अंदर से आशीर्वाद उन्हीं को होगा जो वास्तव में प्रजा का हित करे या राष्ट्र हित का सोचे। धर्म पीठ किसी को धुत्कारती या पुचकारती नहीं है। स्वस्थ व्यासपीठ वह है जो भी सम्रग समाज की उन्नति और राष्ट्र उत्थान का कार्य करेगा उसका समर्थन करने वाले को आशीर्वाद दे।
तीन कार ठीक हों तो सरकार ठीक चलेगी
मैं हमेशा वार्ता के दौरान एक सूत्र के रूप में कहता हूं कि सांस्कृतिक व धार्मिक अवधारणा सत्यम् शिवम् सुंदरम् की है। सत्य हो, सत्य शिव जैसा हो और वो सुंदर भी हो। कई बार सत्य को ऐसे रूप में प्रस्तुत किया जाता है कि उसका सौंदर्य नहीं रहता। इसमें एक बात ध्यान रखने की है कि तीन कार जरूरी हैं जिनपर सरकार का आधार होता है। पत्रकार जो सत्य हो, कथाकार जो शिव के समान औैर कलाकार जो सुंदर हो यानी ललित कला व संस्कृति का सौंदर्य। अगर यह तीनों ठीक हों तो सरकार ठीक चलेगी। यह सरकार को सही रख सकते हैं। इन तीनों का स्वस्थ और मजबूत रहना, प्रजा और प्रजातंत्र दोनों के लिए जरूरी है।
मैं हमेशा वार्ता के दौरान एक सूत्र के रूप में कहता हूं कि सांस्कृतिक व धार्मिक अवधारणा सत्यम् शिवम् सुंदरम् की है। सत्य हो, सत्य शिव जैसा हो और वो सुंदर भी हो। कई बार सत्य को ऐसे रूप में प्रस्तुत किया जाता है कि उसका सौंदर्य नहीं रहता। इसमें एक बात ध्यान रखने की है कि तीन कार जरूरी हैं जिनपर सरकार का आधार होता है। पत्रकार जो सत्य हो, कथाकार जो शिव के समान औैर कलाकार जो सुंदर हो यानी ललित कला व संस्कृति का सौंदर्य। अगर यह तीनों ठीक हों तो सरकार ठीक चलेगी। यह सरकार को सही रख सकते हैं। इन तीनों का स्वस्थ और मजबूत रहना, प्रजा और प्रजातंत्र दोनों के लिए जरूरी है।