दुर्गाबाई मूलत: डिंडोरी जिले के सनपुरी की रहने वाली हैं. सन 1976 में दुर्गाबाई अपने पति सुभाष के साथ भोपाल आ गईं जहां कला से उनका जुड़ाव ज्यादा हो गया. यहां उन्होंने अपने जीजा जनगढ़ सिंह श्याम से कला की बारीकियां सीखीं. इस दौरान वित्तीय समस्याएं भी सामने आईं. मामूली पैसों में घर चलाना कठिन होता जा रहा था. ऐसे में घर का खर्च चलाने के लिए उन्होेंने लोगों के घरों में झाड़ू-पोंछा भी किया.
दुर्गा बाई बताती हैं कि मुझे ठिगना और मिट्टी से कृति बनाना बचपन से ही पसंद था. प्रारंभ में पैसे कमाने की ही बात दिमाग में थी. हम मजदूरी के बाद कुछ पैसे एकत्रित कर वापस गांव जाना चाहता थे, लेकिन देखते ही देखते पेंटिंग ही जीवन का हिस्सा बन गई. शुरु में उन्हें खासी दिककत आईं पर बाद में धीरे—धीरे उनकी कला की कद्र की जाने लगी.
दुर्गा बाई ने डॉ. भीमराव अंबेडकर की जीवन कथा को पेंटिंग के माध्यम से दिखाया है. दुर्गाबाई की यह स्टोरी 11 अलग-अलग भाषाओं में भी प्रकाशित हो चुकी है. दुर्गाबाई वर्तमान में कोटरा सुल्तानाबाद में रह रहीं हैं. दुर्गाबाई बताती हैं कि लॉकडाउन में जब सभी काम धंधे बंद हो गए तो फिर एक बार आर्थिक समस्यायों ने घेर लिया.
हालांकि उन्होंने हार नहीं मानी. वे बताती हैं कि लॉकडाउन में जब ज्यादा दिक्कत आने लगी तो उन्हें कर्ज लेकर जीवन व्यापन करना पड़ा. इसके बावजूद वे निराश नहीं हुईं. अब पद्मश्री पुरुस्कार मिल जाने की घोषणा के बाद वे बहुत खुश हैं और अपनी कला के प्रति देश व देशवासियों की रुचि दिखाने के लिए आभार भी व्यक्त करती हैं.