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MP ELECTION 2018 : साहित्यकारों ने कविता से मतदाताओं को किया जागरुक

locationग्वालियरPublished: Nov 11, 2018 03:16:57 pm

Submitted by:

monu sahu

MP ELECTION 2018 : साहित्यकारों ने कविता से मतदाताओं को किया जागरुक

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ग्वालियर। राजनीति साहित्यकारों व कवियों का भी प्रिय विषय रहता है। ऐसे में यदि मौसम चुनाव का हो तो लेखनी धनी लोगों की तीखी टिप्पणियां आना स्वाभाविक है। पत्रिका द्वारा यहां मुरैना में आयोजित काव्य गोष्ठी में भी साहित्यकारों ने चुनावी चकल्लस पर आधारित प्रभावी रचनाओं का पाठ किया। इस दौरान किसी ने राजनीति की विसंगतियों व विकृतियों पर कविता के माध्यम से प्रहार किया तो किसी ने अपनी रचना के माध्यम से नेताओं को आदर्श राजनीति का पाठ पढ़ाने का प्रयास किया।
काव्यगोष्ठी का संयोजन कवि देवेंद्र सिंह तोमर ने किया।जीवाजी गंज के पार्क में गुरुवार की शाम चार बजे शुरू हुई काव्य गोष्ठी में शहर के सक्रिय साहित्यकार शरीक हुए। गोष्ठी की शुरूआत दाताराम स्वदेशी ने सरस्वती वंदना के साथ की। इसके बाद उन्होंने अपनी रचना कुछ यूं पढ़ी-
‘ले के सपने सुहाने जनाब आ गए,
अपने चेहरे पर रखकर नकाब आ गए।
पेश आने लगे तर्ककी की तरह,
लग रहा है शहर में चुनाव आ गए।’
दाताराम स्वदेशी ने स्थानीय भाषा में लिखी एक रचना के माध्यम से भी चुनावी माहौल का बखान किया। इसके बाद रविराज सिंह चौहान ने ‘करूंगा-करूंगा वोट के लिए सब कुछ करूंगा, भैया से भैया लड़वा दूं, मां के आंचल चिथड़े कर दूंगा।’ रचना के माध्यम से वर्तमान राजनीति की हकीकत का चित्रण किया। कवि मुरारीलाल प्रजापति ने ‘राजनीति के बड़े खिलाड़ी करते बंदरबांट’ रचना का पाठ गोष्ठी में किया। युवा कवि मनोज मधुर ने अपनी कविता यूं पढ़ी- ‘गली गली में मेंढक टर्राने लगे हैं, भाइयो-बहनो चुनाव आने लगे हैं। अपने दिलों को पत्थरों का कर लो, मगरगच्छ आंसू बहाने लगे हैं।’ वरिष्ठ साहित्यकार नरेश श्रीवास्तव ने अपनी व्यंग्य रचना के माध्यम से वर्तमान राजनीति की कलई खोली। बानगी देखिए-‘सात धोती में बाल्टी,
क्या कहा, क्वालिटी?
क्वालिटी उनकी नहीं देखी
जिन्हें वोट देते हो,
पहनने को सत्ता का कोट देते हो।’
साहित्यकार देवेन्द्र तोमर ने चुनाव के दौरान आमजन को होने वाली परेशानी तथा इसके नतीजों पर आधारित गजल पढ़ी-
‘गांव में चर्चा छिड़ी है, वोट डारे जाएंगे,
पास निविदाएं हुईं वोटर सुधारे जाएंगे।
काट के कच्ची फसल रख लो कहा डीएम ने,
खेत में अब साहबों के रथ उतारे जाएंगे।’

गोष्ठी में विशिष्ट अतिथि की हैसियत से मौजूद वरिष्ठ कवियत्री भारती जैन दिव्यांशी ने भी राजनीति की हकीकत बयां करतीं रचनाओं का पाठ किया। उनकी एक कविता की बानगी देखें- निराधार, बीमार, आचरणहीन विचारों ने, घेर लिया चंदनवन सारा खरपतवारों ने। गोष्ठी के मुख्य अतिथि प्रहलाद भक्त ने राजनीतिक परिदृश्य मे आम आदमी की स्थिति कुछ यूं बयां की-
‘आम आदमी तो आम होता है,
जिसकी झोली में पड़ जाए वही चूसता है।
चुनाव है तो घर जाकर पूछ रहे नेता,
वर्ना गरीब आदमी को कौन पूछता है।’
नोटबंदी पर भी ली चुटकी

केन्द्र सरकार द्वारा की गई नोटबंदी को ८ नवम्बर को दो वर्ष पूरे होने पर कवियत्री संध्या सुरभि ने अपनी रचना पढ़ी- ‘नोट की ले के गठरिया, चल दई हमरी डुकरिया। कछु साया में धरे हैं, कछु सलूखा में धरे हैं। मौड़ा-मौड़ी सोइ जाएं तो, कोठाऊ में धरे हैं। धीरे से खोली किवरिया, चल दई हमरी डुकरिया।’ इसके अलावा उन्होंने अपनी एक रचना के माध्यम से शहीदों को भी नमन किया।
वोटर्स को दिया जागरुकता संदेश
पत्रिका द्वारा आयोजित काव्य गोष्ठी में साहित्यकारों ने कविताओं के माध्यम से मतदाताओं को जागरुक बनाने का प्रयास भी किया। इसके लिए कवियत्री वर्षा श्रीवास्तव ने यूं कहा- ‘वोट देने जा रहे हो इतना तो ध्यान रखो, जाति-धर्म देखकर न वोट कभी दीजिए। नेता चुनो ऐसा जो देशहित सोचता हो, छोटे-छोटे स्वार्थों पर वोट मत दीजिए।’ गोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ साहित्यकार भगवतीप्रसाद कुलश्रेष्ठ ने भी अपनी रचना में मतदाताओं से कहा-‘फिर चुनाव का बिगुल बजा है, सोए देशवासियो जागो। उत्तरदायी रहे देश के, उनसे लेखा-जोखा मांगो।’
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