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तिघरा नहर को नष्ट कर 179 परिवारों को बसाने की नियम विरुद्ध दी अनुमति, हाईकोर्ट ने दिए जांच के आदेश

locationग्वालियरPublished: Jun 09, 2019 12:53:15 am

Submitted by:

Rahul rai

उच्च न्यायालय ने जल संसाधन विभाग के इंजीनियर इन चीफ को आदेश दिए हैं कि मामले की जांच कर तय करें कि जमीन के आवंटन के लिए कौन जिम्मेदार है। उन्हें तीन माह में रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कहा गया है।

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तिघरा नहर को नष्ट कर 179 परिवारों को बसाने की नियम विरुद्ध दी अनुमति, हाईकोर्ट ने दिए जांच के आदेश

ग्वालियर। राज्य शासन एवं टाउन एंड कंट्री प्लानिंग की अनुमति के बिना तिघरा नहर को नष्ट कर उसकी जमीन पर 179 परिवारों को बसाने की अनुमति दिए जाने के मामले में उच्च न्यायालय ने जल संसाधन विभाग के इंजीनियर इन चीफ को आदेश दिए हैं कि मामले की जांच कर तय करें कि जमीन के आवंटन के लिए कौन जिम्मेदार है। उन्हें तीन माह में रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कहा गया है।
न्यायमूर्ति संजय यादव एवं न्यायमूर्ति विवेक अग्रवाल की युगलपीठ ने राकेश सिंह एवं अन्य द्वारा पूर्व अतिरिक्त महाधिवक्ता एमपीएस रघुवंशी के माध्यम से प्रस्तुत जनहित याचिका का निराकरण करते हुए अपने आदेश में कहा कि तथ्यों को देखते हुए जल संसाधन विभाग के अधिकारियों की असंवेदनशीलता प्रकट होती है कि उन्होंने शासन के प्राधिकृत अधिकारी तथा टाउन एंड कंट्री प्लानिंग विभाग की मंजूरी के बिना नहर की जमीन का उपयोग परिवर्तित करने का निर्णय लिया। इतना ही नहीं जमीन आवंटित कर काम भी शुरू करा दिया, जिससे नहर को नष्ट किया जा सके । विभाग के अधिकारी नियम और कानून से बंधे हैं, जब उन्होंने ही ऐसा कार्य किया है तो इसकी विस्तृत जांच जरूरी है।
आसन बैराज के विस्थापितों को बसाने लिया था निर्णय
बरौआ निवासी राकेश सिंह एवं अन्य द्वारा याचिका प्रस्तुत करते हुए कहा गया कि चीफ इंजीनियर जल संसाधन विभाग भोपाल द्वारा गांव गोदल का पुरा के 179 परिवारों के तिघरा नहर की जमीन पर पुनर्वास की सैद्धांतिक रूप से मंजूरी दी गई है। मुरैना जिले में आसन नदी पर निर्माणाधीन आसन बैराज के डूब क्षेत्र में आने से इन परिवारों को यहां बसाने के लिए यह कहते हुए स्वीकृति दी गई कि तिघरा बांध की नहर प्रणाली पिछले 30 साल से बंद पड़ी है। नहर के लिए अधिग्रहित जमीन नहर का संचालन न होने से विभाग के लिए अनुपयोगी हो गई है, इसलिए यहां बसाहट की जा सकती है।
सूखा पडऩे से सूखी नहर
याचिका में कहा गया कि इस नहर का ग्वालियर क्षेत्र में कुछ साल से सूखा पडऩे के कारण उपयोग नहीं हो सका है। नहर का निर्माण 1947 में बानमोर तक पानी पहुंचाने के लिए किया गया था। इसका उपयोग हजारों हैक्टेयर जमीन की सिंचाई के लिए किया जाता है। यह नहर ग्वालियर शहर को पानी की सप्लाई के लिए भी बनाई गई। जल संसाधन विभाग द्वारा जो स्थिति बताई गई है, तथ्य उसके विपरीत हैं। याचिका पर राज्य शासन की ओर से कार्यपालन यंत्री ओपी गुप्ता जल संसाधन विभाग द्वारा 20 नवंबर 2018 को जवाब प्रस्तुत कर कहा गया कि आसन बैराज के निर्माण के कारण ग्राम पुरा हथरिया की जमीन अधिग्रहित की गई है, जिसमें 179 परिवार विस्थापित हो गए हैं। उन्हें जमीन का मुआवजा देने के साथ ही भूमि अधिग्रहण एवं पुनर्वास एक्ट 2013 की धारा 32 के तहत उनका पुनर्वास किया जाना है। इसे देखते हुए चीफ इंजीनियर यमुना कछार जल संसाधन विभाग भोपाल ने यह अनुमति दी है। यह अनुमति नगर निगम एवं ग्राम पंचायत की अनुमति के बाद दी गई है। वहीं जवाब में एक याचिका 902/23 जनवरी 2013 का हवाला देते हुए कहा गया कि उच्च न्यायालय ने ग्वालियर शहर में पानी की कमी को देखते हुए तिघरा के पानी का उपयोग सिंचाई के लिए नहीं करने के आदेश दिए हैं। याचिकाकर्ता का कहना था नहर का उपयोग केवल पीने के पानी की आपूर्ति के लिए ही किया जाएगा ऐसा कोई प्रतिबंध नहीं लगाया गया।
किसी से स्वीकृति नहीं ली, लैंड यूज बदल दिया
याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि इस जमीन के उपयोग के बदलाव के लिए न तो राज्य सरकार ने, न ही टाउन एंड कंट्री प्लानिंग ने कोई अनुमति दी है। यह भी कहा गया कि इस नहर का उपयोग नगण्य है। राज्य की ओर से यह कहा गया कि यह नहर बानमोर ग्राम तक है। यदि नहर को ध्वस्त भी कर दिया जाए तो भी सिंचाई पर विपरीत प्रभाव नहीं पड़ेगा, क्योंकि किसानों के पास व्यक्तिगत स्त्रोत हैं, इसलिए याचिका खारिज करने का आग्रह किया गया।
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