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ऐसे में शहर में मिलावटी मावा बिकने के बाद भी कार्रवाई के नाम पर स्थिति शून्य नजर आती है। चूंकि अब त्योहारी सीजन शुरू हो गया है, लिहाजा मावे की खपत भी बढऩा तय है। बावजूद इसके खाद्य सुरक्षा के अफसर गंभीर नजर नहीं आते हैं। एक डेयरी संचालक ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि श्योपुर में स्थानीय बने मावे की खपत कम है, जबकि ग्वालियर और मुरैना से आने वाला मावा ज्यादा बेचा जाता है। ग्वलियर से 100 से 120 रुपए प्रति किलो में डेयरी संचालक ये मावा मंगाते हैं और श्येापुर में 16 0 रुपए प्रति किलो के भाव में बेच रहे हैं। जबकि डेयरी संचालक स्थानीय हलवाइयों द्वारा बनाए जाने वाले मावे को 300 रुपए प्रति किलो में बेचते हैं।
ऐसे में शहर में मिलावटी मावा बिकने के बाद भी कार्रवाई के नाम पर स्थिति शून्य नजर आती है। चूंकि अब त्योहारी सीजन शुरू हो गया है, लिहाजा मावे की खपत भी बढऩा तय है। बावजूद इसके खाद्य सुरक्षा के अफसर गंभीर नजर नहीं आते हैं। एक डेयरी संचालक ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि श्योपुर में स्थानीय बने मावे की खपत कम है, जबकि ग्वालियर और मुरैना से आने वाला मावा ज्यादा बेचा जाता है। ग्वलियर से 100 से 120 रुपए प्रति किलो में डेयरी संचालक ये मावा मंगाते हैं और श्येापुर में 16 0 रुपए प्रति किलो के भाव में बेच रहे हैं। जबकि डेयरी संचालक स्थानीय हलवाइयों द्वारा बनाए जाने वाले मावे को 300 रुपए प्रति किलो में बेचते हैं।
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होली की थी सैंपलिंग, जिसमें मिला सबस्टैंडर्ड
बताया गया है कि शहर में स्थानीय स्तर पर बनाए जाने वाले मावे में भी अन्य पदार्थों की मिलावट की खबरें पूर्व में आई भी हैं। शहर में खाद्य सुरक्षा की टीम ने अंतिम बार गत होली के त्योहार पर मावे की सैंपलिंग की थी, जिसमें ये सैंपल फैल हुआ और मावा सबस्टैंडर्ड(अवमानक) निकला था। बावजूद इसके अफसरों ने बाजार में पुन: सैंपलिंग के लिए मुडक़र नहीं देखा। बताया जाता है कि शहर में मावा बनाने वाले कुछ लोग दूध की क्रीम निकालने के बाद सप्रेटा दूध को गरम कर उसमें वनस्पति तेल मिला देते हैं, जिससे वह गाढ़ा हो जाता है। उसके बाद चमक के लिए रिफाइंड मिलाया जाता है। मावे को चार से पाच दिन तक सुरक्षित रखने के लिए उसमें शकर भी मिलाते हैं ताकि टेस्ट करने पर रिफाइंड या डालडा का असर नहीं दिखे।
होली की थी सैंपलिंग, जिसमें मिला सबस्टैंडर्ड
बताया गया है कि शहर में स्थानीय स्तर पर बनाए जाने वाले मावे में भी अन्य पदार्थों की मिलावट की खबरें पूर्व में आई भी हैं। शहर में खाद्य सुरक्षा की टीम ने अंतिम बार गत होली के त्योहार पर मावे की सैंपलिंग की थी, जिसमें ये सैंपल फैल हुआ और मावा सबस्टैंडर्ड(अवमानक) निकला था। बावजूद इसके अफसरों ने बाजार में पुन: सैंपलिंग के लिए मुडक़र नहीं देखा। बताया जाता है कि शहर में मावा बनाने वाले कुछ लोग दूध की क्रीम निकालने के बाद सप्रेटा दूध को गरम कर उसमें वनस्पति तेल मिला देते हैं, जिससे वह गाढ़ा हो जाता है। उसके बाद चमक के लिए रिफाइंड मिलाया जाता है। मावे को चार से पाच दिन तक सुरक्षित रखने के लिए उसमें शकर भी मिलाते हैं ताकि टेस्ट करने पर रिफाइंड या डालडा का असर नहीं दिखे।
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हम करते हैं सैंपलिंग
खाद्य सुरक्षा अधिकारी गिरीश राजौरिया ने बताया कि भिंड में एसटीएम की टीम ने जैसा सिंथेटिक मावा पकड़ा, वैसा शहर में नहीं है। फिर भी हम नियमित रूप से मावे की सैंपलिंग करते हैं। गत होली पर हमने मावे के सैंपल लिए थे, जिसमें एक सैंपल सबस्टैंडर्ड आया था।
खाद्य सुरक्षा अधिकारी गिरीश राजौरिया ने बताया कि भिंड में एसटीएम की टीम ने जैसा सिंथेटिक मावा पकड़ा, वैसा शहर में नहीं है। फिर भी हम नियमित रूप से मावे की सैंपलिंग करते हैं। गत होली पर हमने मावे के सैंपल लिए थे, जिसमें एक सैंपल सबस्टैंडर्ड आया था।