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प्रदूषण जांच चलित वाहन केन्द्र खुद फैला रहे प्रदूषण

locationग्वालियरPublished: Jan 04, 2019 01:27:51 am

शहर में अभी भी प्रदूषण की स्थिति चिंताजनक बनी हुई है। वाहनों से निकलने वाला धुआं और धूल के कारण हवा में पीएम 2.5 पार्टिकल्स की मात्रा अधिक बढ़ गई है।

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प्रदूषण जांच चलित वाहन केन्द्र खुद फैला रहे प्रदूषण

ग्वालियर. शहर प्रदूषण के मामले में हमेशा सुर्खियों में रहता है। यह राज्य या देश ही नहीं, बल्कि विश्व में भी सबसे प्रदूषित शहरों की सूची में स्थान बना चुका है। शहर में अभी भी प्रदूषण की स्थिति चिंताजनक बनी हुई है। वाहनों से निकलने वाला धुआं और धूल के कारण हवा में पीएम 2.5 पार्टिकल्स की मात्रा अधिक बढ़ गई है, इसके बावजूद धुआं छोडऩे वाले वाहनों के खिलाफ कोई कार्रवाई ही नहीं की जाती है। यहां तक कि प्रदूषण जांचने के लिए जो चलित केन्द्र बनाए गए हैं, वही पुराने कंडम वाहनों में संचालित हैं, जिससे इन वाहनों की फिटनेस पर ही सवालिया निशान लग गया है। इसके साथ ही शहर में बिना रजिस्टे्रशन के ही प्रदूषण केन्द्र संचालित हो रहे हैं।
शहर में 50 से अधिक प्रदूषण जांच केन्द्र संचालित हैं, इनमें से अधिकांश बिना रजिस्ट्रेशन के चल रहे हैं। इनमें से करीब एक दर्जन चलित प्रदूषण जांच केन्द्र हैं, जो वैन में संचालित हो रहे हैं। इन वैन की हालत खुद खराब है, इन्हें देखकर लगता ही नहीं है कि यह फिट हैं। खराब हो चुके पुराने वाहनों में इन केन्द्रों को संचालित किया जा हा है। नियमों की बात करें तो प्रदूषण जांच केन्द्र के लिए प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड और परिवहन विभाग से पंजीयन कराना अनिवार्य है। इसके साथ ही समय-समय पर इनकी जांच पड़ताल भी करनी होती है, जिसमें यह देखना होता है कि जिन मशीनों से जांच की जा रही है वह सही हैं या नहीं, लेकिन न तो परिवहन विभाग के अधिकारी और न ही प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड के अधिकारियों द्वारा इनकी जांच पड़ताल की जाती है। यदि मशीन खराब हो जाती हैं तो भी यह रिपोर्ट जारी करती रहती हैं, जिससे ग्राहकों के साथ धोखाधड़ी होती है, साथ ही शहर में प्रदूषण भी नियंत्रित नहीं हो पा रहा है।
नहीं होती कार्रवाई
शहर में हजारों की संख्या में ऐसे वाहन दौड़ रहे हैं जो कि 10 साल से अधिक पुराने हो चुके हैं, जिसके कारण यह जहरीला धुआं छोड़ते हैं जो शहर की आबो-हवा के लिए हानिकारक हैं, जिससे पीएम 2.5 पार्टिकल की मात्रा अधिक बढ़ जाती है। पीएम 10 की तुलना में पीएम 2.5 अधिक खतरनाक होते हैं। दरअसल, यह फेफड़ों के जरिए ब्लड तक पहुंच जाते हैं।
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