scriptस्मार्ट सिटी के निर्माण में गुणवत्ता का अभाव | Poor quality in smart city construction | Patrika News

स्मार्ट सिटी के निर्माण में गुणवत्ता का अभाव

locationग्वालियरPublished: Aug 27, 2019 07:20:27 pm

स्मार्ट सिटी के अंतर्गत शहर में करोड़ों रुपए के काम कराए जा रहे हैं। इन कामों में गुणवत्ता का ध्यान न रखे जाने की बजाय यह ध्यान दिया जा रहा है कि ज्यादा से ज्यादा पैसे कैसे खर्च किया जाए।

स्मार्ट सिटी के निर्माण में गुणवत्ता का अभाव

स्मार्ट सिटी के निर्माण में गुणवत्ता का अभाव

ग्वालियर. स्मार्ट सिटी के अंतर्गत शहर के लगभग 15 लाख लोगों की जरूरत को ध्यान में रखकर करोड़ों रुपए के काम कराए जा रहे हैं। इन कामों में गुणवत्ता का ध्यान न रखे जाने की बजाय यह ध्यान दिया जा रहा है कि ज्यादा से ज्यादा पैसे कैसे खर्च किया जाए। परिणाम यह है कि शहर में जहां भी सौंदर्यीकरण के काम कराए गए हैं, वे एक साल भी पूरा नहीं कर पा रहे और दरकने लगे हैं। बुजुर्गों के लिए जो वॉकिंग ट्रैक बनाए गए हैं, वे भी खराब हो गए हैं। बच्चों और महिलाओं के लिए बनाए गए पार्कों का काम ज्यादातर जगह कागजों में ही नजर आ रहा है।
लेडीज पार्क में 2.41 करोड़ रुपए की लागत से काम कराया गया है, यह काम पूरा होने के बाद भी लोकार्पण भी हो चुका है, लेकिन गुणवत्ताविहीन काम होने की वजह से दो बार मरम्मत कराई जा चुकी है। 39 लाख रुपए की लागत से तैयार हुआ वन सिटी वन एप 15 दिसंबर 2017 से शुरू होकर 30 अप्रैल 2018 को पूरा होना था। अधिकारियों ने इसका लाभ उठाने के लिए बातें तो बहुत कीं, लेकिन लाभ लेने का सही तरीका आमजन तक नहीं पहुंचाया गया, हर बार कुछ न कुछ नया जोडऩे का बहाना करके इसकी सही जानकारी आम जन तक नहीं पहुंची। परिणाम यह है कि समस्या समाधान के लिए अधिकतर लोग एप पर जाने की बजाय निगम मुख्यालय के ही चक्कर काटते नजर आते हैं। इस एप के यूजर न के बराबर हैं।
कटोरा ताल का 2.17 करोड़ रुपए की लागत से सौंदर्यीकरण कराने का काम किया गया था। 26 मार्च 2017 से यह काम शुरू हुआ था और 2018 में पूरा हुआ। अब स्थिति यह है कि लाल पत्थर से हुआ सौंदर्यीकरण एक साल भी पूरा नहीं चल पाया पत्थर उखडऩे और टूटने लगे हैं। सुंदरता के लिए कराए गए कामों की रंगत खराब हो गई है और यह काम बस दिखावा बनकर रह गया है। 59 लाख रुपए से स्मार्ट क्लास रूम तैयार कराने के लिए सिविल वर्क हुआ है, बच्चों को स्मार्ट बनाने के लिए बेहतर शिक्षा का वातावरण तैयार नहीं हो सका है। पब्लिक बाइक शेयरिंग के लिए 5.6 करोड़ रुपए से प्लान तैयार किया गया था, इसकी वास्तविक हालत यह है कि कुछ जगह स्टैंड तो नजर आते हैं, बाइक शेयरिंग कांसेप्ट को लागू करने के लिए तीन साल जारी प्रयास अभी भी भलीभूत नहीं हो सका है।
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