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शिक्षा की शक्ति देकर मूक बधिरों को दे रहे जिंदगी में आगे बढ़ने की ताकत

locationग्वालियरPublished: Jan 25, 2020 07:38:12 pm

Submitted by:

Harish kushwah

जन्म के साथ मूक बधिरों को शारीरिक रूप से जो कमजोरी मिली है, वह जिंदगी में रोडा नहीं बने, इसलिए एक टीम उन्हें शिक्षित करने के लिए चार साल से एक कमरे में स्कूल चला रही है।

शिक्षा की शक्ति देकर मूक बधिरों को दे रहे जिंदगी में आगे बढ़ने की ताकत

शिक्षा की शक्ति देकर मूक बधिरों को दे रहे जिंदगी में आगे बढ़ने की ताकत

ग्वालियर. जन्म के साथ मूक बधिरों को शारीरिक रूप से जो कमजोरी मिली है, वह जिंदगी में रोडा नहीं बने, इसलिए एक टीम उन्हें शिक्षित करने के लिए चार साल से एक कमरे में स्कूल चला रही है। इन्हें नि:शुल्क जिंदगी का पाठ पढ़ाने वालों को सरकार से स्कूल के लिए पर्याप्त जगह की दरकार है। इस स्कूल की शुरुआत करीब चार साल पहले महिला पॉलिटेक्निक कॉलेज पड़ाव में हुई। इसे शुरू करने वाली मेघा गुप्ता बताती हैं कि 2013 में सर्वे किया था, तब सामने आया कि मूक बधिर बच्चों को शिक्षा की बहुत जरूरत है। इसलिए तत्कालीन कलेक्टर पी नरहरि को बताया। उन्होंने महिला पॉलिटेक्निक कॉलेज में एक हॉल बच्चों को पढ़ाने के लिए मुहैया कराया। उस वक्त जगह की जरूरत तो पूरी हो गई, लेकिन मूक बधिरों को पढ़ाने के लिए मूक बधिर शिक्षकों की भी जरूरत थी, तो उनका इंतजाम किया। चार शिक्षक पढ़ाने के लिए राजी हुए।
माता-पिता नहीं थे तैयार

मेघा बताती हैं कि ऐसे कई बच्चे तलाशे, लेकिन उनके माता-पिता राजी नहीं थे। उन्हें समझाया कि पढ़ाई के लिए कोई शुल्क नहीं लिया जाएगा। इसके बावजूद कई परिजन ने कहा कि सरकार तो दिव्यांग बच्चों को तमाम सहायता मुहैया कराती है, फिर हम इस स्कूल में क्यों पढ़ाएं। उन्हें समझाया कि सिर्फ मुआवजा ही जिंदगी में काम नहीं आएगा, बच्चों के लिए शिक्षा भी जरूरी है।
तीन लोगों की टीम संभाल रही स्कूल

अब स्कूल उनके अलावा रिचा शिवहरे, रानू नाहर की टीम संभाल रही है। रिचा के मुताबिक सरकार से स्कूल को कोई मदद नहीं मिलती, दानदाताओं के जरिए शिक्षकों की फीस और स्कूल का खर्च निकलता है। बड़ी परेशानी है कि स्कूल की चार क्लास एक ही कमरे में लग रही हैं। करीब 23 बच्चे स्कूल में पढ़ते हैं। एक ही रूम में चार क्लास संचालित करना मुश्किल होता है। प्रशासन से यही मांग है कि स्कूल को संचालित करने के लिए पर्याप्त जगह दी जाए तो शहर और जिले के तमाम मूक बधिर बच्चों को पढ़ाया जा सके।
एक दिन बड़े स्कूलों में जाते बच्चे

रिचा बताती हैं कि इन बच्चों में आत्म विश्वास बढ़े, इसलिए अपने संपर्कों से बच्चों को शहर के बड़े स्कूलों में ले जाते हैं। वहां दूसरे बच्चों के साथ इन्हें भी पढ़ाया जाता है। जिससे शारीरिक रूप से कमजोर बच्चों को आगे बढ़ने की हिम्मत मिले।
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