माता-पिता नहीं थे तैयार मेघा बताती हैं कि ऐसे कई बच्चे तलाशे, लेकिन उनके माता-पिता राजी नहीं थे। उन्हें समझाया कि पढ़ाई के लिए कोई शुल्क नहीं लिया जाएगा। इसके बावजूद कई परिजन ने कहा कि सरकार तो दिव्यांग बच्चों को तमाम सहायता मुहैया कराती है, फिर हम इस स्कूल में क्यों पढ़ाएं। उन्हें समझाया कि सिर्फ मुआवजा ही जिंदगी में काम नहीं आएगा, बच्चों के लिए शिक्षा भी जरूरी है।
तीन लोगों की टीम संभाल रही स्कूल अब स्कूल उनके अलावा रिचा शिवहरे, रानू नाहर की टीम संभाल रही है। रिचा के मुताबिक सरकार से स्कूल को कोई मदद नहीं मिलती, दानदाताओं के जरिए शिक्षकों की फीस और स्कूल का खर्च निकलता है। बड़ी परेशानी है कि स्कूल की चार क्लास एक ही कमरे में लग रही हैं। करीब 23 बच्चे स्कूल में पढ़ते हैं। एक ही रूम में चार क्लास संचालित करना मुश्किल होता है। प्रशासन से यही मांग है कि स्कूल को संचालित करने के लिए पर्याप्त जगह दी जाए तो शहर और जिले के तमाम मूक बधिर बच्चों को पढ़ाया जा सके।
एक दिन बड़े स्कूलों में जाते बच्चे रिचा बताती हैं कि इन बच्चों में आत्म विश्वास बढ़े, इसलिए अपने संपर्कों से बच्चों को शहर के बड़े स्कूलों में ले जाते हैं। वहां दूसरे बच्चों के साथ इन्हें भी पढ़ाया जाता है। जिससे शारीरिक रूप से कमजोर बच्चों को आगे बढ़ने की हिम्मत मिले।