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डिजिटल शिक्षा पद्धति से प्राइमरी रिसर्च आई कमी

locationग्वालियरPublished: Jul 28, 2019 07:44:42 pm

Submitted by:

Avdhesh Shrivastava

जीवाजी विश्वविद्यालय के बायोटेक्नोलॉजी पर्यावरण विज्ञान विभाग की ओर से न्यू टूल्स एंड टेक्नीक्स फॉर टीचिंग इन बायोटेक्नोलॉजी एंड एनवायर्मेंटल साइंस विषय पर एक दिवसीय वर्कशॉप आयोजित की गई।

 Workshop

डिजिटल शिक्षा पद्धति से प्राइमरी रिसर्च आई कमी

ग्वालियर. इंटरनेट और डिजिटल शिक्षा पद्धति के चलते प्राइमरी रिसर्च कम और सेकेंडरी रिसर्च अधिक हो रही है। यदि कोई रिसर्च पेपर लिखना चाहता है तो उसे आईएमआरडीएस मेथड का प्रयोग करना चाहिए। यह बात इलाहबाद विश्वविद्यालय के प्रोफेसर बेचन शर्मा ने कही। वे यहां जीवाजी विश्वविद्यालय के बायोटेक्नोलॉजी पर्यावरण विज्ञान विभाग की ओर से न्यू टूल्स एंड टेक्नीक्स फॉर टीचिंग इन बायोटेक्नोलॉजी एंड एनवायर्मेंटल साइंस विषय पर आयोजित एक दिवसीय वर्कशॉप में उद्बोधन दे रहे थे।
अपने उद्बोधन में उन्होंने आगे कहा कि पुरातनकाल से ऋषि-मुनियों द्वारा श्रुति के माध्यम से शिक्षा दी जाती थी। हमारी शिक्षा व्यवस्था क्लास रूम पैटर्न से होते हुए अब डिजिटल क्लास रूम और पॉवरपॉइंट प्रेजेंटेशन मेथड पर पहुंच गयी है। जिसके कारण छात्रों को जो विषय वह पढ़ा रहे हंै, उसकी गहन जानकारी नहीं मिल पा रही। शिक्षक क्लास में लैपटॉप लेकर आते हैं, एक लेक्चर में प्रेजेंटेशन से पॉइंट वाइज पढ़ाकर चले जाते है। जिसके कारण उन्हें उस विषय में सिर्फ ऊपरी ज्ञान प्राप्त होता है, विषय की गहन जानकारी से वह वंचित रह जाते है। इसलिए जब भी बड़े साक्षात्कार रिसर्च में जाने का मौका मिलता है तो उनमे आत्मविश्वास की कमी रहती है और वह बेहतर ढंग से परफॉर्म नहीं कर पाते।
वर्कशॉप में जेयू की कुलपति संगीता शुक्ला ने कहा कि शिक्षण कार्य में एक जुनून होता है, हम सभी को छात्रों को पूरे जुनून के साथ पढ़ाना चाहिए। वर्कशॉप के दूसरे व्याख्यान में जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय से आये प्रो.डॉ.अरुण श्रीवास्तव ने इंडोर एयर पोल्यूशन और उसके प्रभाव के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने बताया की किस तरह से यह इंडोर पोल्यूशन हमारे लिए नुक्सान दायक है और इससे हमारे स्वास्थ्य पर क्या क्या हानिकारक प्रभाव पड़ते हैं। मौसम विज्ञानं केंद्र के उमाशंकर चौकसे ने मानसून कैसे निर्मित होता है और कैसे आता है किस प्रकार पूरे देश में फैलता है। उन्होंने प्री मानसून, पोस्ट मानसून, साउथवेस्ट मानसून और नार्थवेस्ट मानसून के बारे में बताया। इस मौके पर प्रो.अविनाश तिवारी, डॉ.हरेंद्र शर्मा, वायके जैसवाल आदि मौजूद थे।
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