समिति में शास्त्रीय गायक पंडित सत्यजीत देशपाण्डे, पखावज वादक पंडित डालचन्द शर्मा, गिटार वादिका डॉ. कमला शंकर, संगीत समीक्षक मंजरी सिन्हा एवं रवीन्द्र मिश्र शामिल थे। उन्हें पद्मश्री, संगीत नाटक अकादमी सम्मान, बसवराज राजगुरु आदि कई सम्मानों से अलंकृत किया जा चुका है।
ग्वालियर संगीत की गंगोत्री है
शास्त्रीय संगीत के सुविख्यात गायक पद्मश्री उल्लास कशालकर का कहना है ग्वालियर संगीत की गंगोत्री है। ग्वालियर में जिसे संगीत की राजधानी कहा जाता है यहां कभी हर गली से संगीत निकलता था, मैं ग्वालियर घराने का ही हूं और यही चाहता हूं कि यहां की हर गली से संगीत की धाराएं बहें।
मध्यप्रदेश शासन द्वारा पंडित उल्लास कशालकर को वर्ष 2017 के राष्ट्रीय तानसेन सम्मान से विभूषित किए जाने की घोषणा की है। इस घोषणा के बाद ढाका से हुई उनसे चर्चा उन्होंने यह बात कही। कशालकर ने कहा कि उन्होंने संगीतकार गजानन राव जोशी तथा ग्वालियर के प्रसिद्ध गायक स्व. बाला साहब पूछवाले, पं. राम मराठे से भी संगीत में बहुत कुछ सीखा है। ग्वालियर में ही गोहदकर से भी उन्हें सीखने को मिला। इसके लिए उनका अक्सर ग्वालियर आना होता था। पंडित कशालकर ने कहा कि परिवार के सांगितिक वातावरण से ही संगीत से लगाव हो गया। प्रारंभिक शिक्षा पिता एनडी कशालकर से प्राप्त की। एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि संगीत के प्रति युवा वर्ग जिस प्रकार आकर्षित हो रहे है उससे बहुत खुशी होती है।
तानसेन सम्मान का महत्व अलग है
पंडित कशालकर ने कहा कि संगीत सम्राट तानसेन के नाम से मिलने वाले राष्ट्रीय सम्मान का विशेष महत्व है। उन्होंने बताया कि वे ग्वालियर से संगीत सीखने के बाद मुंबई गए। उन्होंने कहा कि वे कहीं भी संगीत की प्रस्तुति दें उसे ग्वालियर घराने के नाम से ही जाना जाता है।
ढाका में गुरु ? कुल पद्धति से दे रहे हैं शिक्षा
पंडित कशालकर ने बताया कि वे ढाका में बंगाल फाउंडेशन के जरिए गुरुकुल पद्धति से बच्चों को शिक्षा दे रहे हैं। उनके साथ यहां सुरेश तलवलकर एवं उदय भावलकर भी यहां आते हैं। उन्होंने बताया कि वहां भी संगीत के प्रति लोगों का विशेष प्रेम है। वे हर माह छह दिन ढाका में शिक्षा देने जाते हैं। उन्होंने युवाओं से कहा कि संगीत में रुचि होने पर संगीत को जितना सुनेंगे, उसके बाद उन्हें उसका आनंद भी मिलेगा। दुबई, स्वीटजरलैंड, ओमान और यूरोप सहित अन्य देशों में संगीत समारोहों में अपने कार्यक्रम की प्रस्तुति दे चुके पं कशालकर का कहना है कि विदेशों में भी भारतीय संगीत के प्रति लोगों में काफी रुचि है। हम लोग उन्हें पहले जानकारी देते हैं फिर प्रस्तुति जिससे वे उसे समझ सकें। हमारे यहां इसकी जरुरत नहीं होती है।