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मज़हब-ए-इस्लाम में पवित्र रमज़ान के महीने का आला मुकाम

locationग्वालियरPublished: May 17, 2018 04:06:35 pm

Submitted by:

Gaurav Sen

मज़हब-ए-इस्लाम में पवित्र रमज़ान के महीने का आला मुकाम है। इसे यूं समझिए कि अगर बारह महीनों की ‘मेरिट-लिस्टÓ बनाई जाए तो पवित्र रमज़ान का महीना ‘टॉपर’

ramjaan ka mahina 2018

मज़हब-ए-इस्लाम में पवित्र रमज़ान के महीने का आला मुकाम है। इसे यूं समझिए कि अगर बारह महीनों की ‘मेरिट-लिस्टÓ बनाई जाए तो पवित्र रमज़ान का महीना ‘टॉपरÓ है। यानी नंबर वन पर है। इसकी वजह यह है कि रमज़ान के मुबारक माह में ही इस्लाम धर्म की पवित्र पुस्तक अर्थात पावन कुरआन का नुज़ूल (अवतरण) हुआ। जिस तरह सनातन हिन्दू धर्म में पावन ऋग्वेद अपौरुषेय है अर्थात दिव्यवाणी है, उसी प्रकार इस्लाम धर्म में पवित्र कुरआन भी अपौरुषेय अर्थात दिव्यवाणी है। पवित्र कुरआन की कई आयतों में संयम और रमज़ान का जिक्र है। एक आयत में है ‘ऐ ईमान वालों और अहले किताब (कुरआन) रोज़ा रखना फर्ज है। ‘ खुलासा यह है कि रोज़ा (उपवास) ईमान की रोशनी है। क्योंकि यह सब्र और संयम का पैगाम देता है। रोज़ा दरअसल भूख, प्यास और शहवत (वासनाओं) पर नियंत्रण का नाम है। सब्र की सड़क पर संयम का मुसाफिर है रोज़ेदार, जिसकी मंजिल है अल्लाह की इबादत। खास बात यह है कि इबादत (आराधना) में दिखावा यानी आडंबर नहीं होना चाहिए। इसे यूं कह सकते हैं कि न तो दिखावे की इबादत हो और न इबादत का दिखावा। इबादत दिल से होती है यानी समर्पण भावना से। रोज़ा दरअसल चिराग है, जिसमें अल्लाह की इबादत की लौ से ईमान की रोशनी फैलती है।
-अज़हर हाशमी

नेकी कमाने का माह है रमजान
मुस्लिम समुदाय का पवित्र महीना रमजान का चांद बुधवार को नजर नहीं आया। शहर काजी अब्दुल हमीद कादरी ने बताया बुधवार को चांद नहीं दिखने के कारण अब गुरुवार को चांद दिखेगा, जिसके बाद शुक्रवार से पहला रोजा रखा जाएगा। इस्लामी कैलेंडर के नौवे महीने को रमजान कहते हैं। मुस्लिम धर्म गुरुओं के अनुसार चांद दिखने के बाद पहला रोजा रखा जाता है। बताया जाता है कि इस माह अल्लाह द्वारा नापसंद कामों से तौबा या दूरी बनाना और अपनी जरूरतों और भूख पर काबू करना ही रोजा है। रमजान माह में 30 रोजे पड़ेंगे। इस माह में 5 जुमे आएंगे पहला जुमा 18 मई को व आखरी 15 जून को पड़ेगा जिसे अलविदा का जुमा कहा जाता है। आखिरी रोजे के अगले दिन ईद-उल-फितर त्योहार मनाया जाएगा। कहा जाता है रमजान में रोजदारों द्वारा की गई नेकियों व इबादत का अल्लाह द्वारा इनाम ही ईद-उल-फितर है। जिसे देश और दुनिया में धूम धाम से मनाया जाता है। इस महीने दान पुण्य के कार्यों को प्रधानता दी जाती है। वहीं चांद दिखने के बाद लोग रोजा इफ्तार और सहरी के लिए खरीदारी करने बाजारों में निकल पड़े हैं।

हर घर में रमजान की तैयारियां शुरू हो गई हैं। बाजार में खरीदारी को चहल पहल देखी जा रही है। मुस्लिम धर्म गुरुओं के अनुसार इस महीने में अल्ला की हर नेमत का शुक्र अदा किया जाता है। इसलिए इस महीने को नेकियों और इबादतों का महीना कहा जाता है।


15 घंटे का रोजा
इस बार 18 जून को पडऩे वाला पहला रोजा 15 घंटा 1३ मिनट व अंतिम रोजा 15 घंटा 3६ मिनट का होगा। पहले रोजे में सुबह 3.55 बजे सेहरी और शाम 7.08 बजे इफ्तार किया जायेगा। आखिरी रोजे में सुबह 3.44 बजे सहरी और शाम 7.20 बजे इफ्तार होगा। इन तीस रोजों के बीच एक रात आती है जिसे शब-ए-कद्र कहा जाता है।


पांचवां स्तंभ है रोजा
रोजे को इस्लाम के पांच स्तंभों में से एक माना गया है। इस महीने मुसलमान तकवा हासिल करने के लिए रोजा रखते हैं। तकवा का अर्थ है अल्लाह को नापसंद काम न कर उनकी पसंद के कामों को करना। आसान शब्दों में कहा जाए तो यह महीना मुसलमानों के लिए सबसे खास होता है।

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