श्रीराम लीला समारोह समिति द्वारा छत्री मंडी प्रांगण को अयोध्या नगरी के स्वरूप में रंगा गया। श्रीराम जन्मोत्सव में भाग लेने के लिए शहरवासी बड़ी तादाद में उपस्थित हुए। उन्होंने राम जन्मोत्सव की लीला का आनंद लेते हुए एक दूसरे को बधाई दी। मंच पर मिठाइयां बांटी गई एवं आकर्षक आतिशबाजी कराई गई। बैंड-बाजों की धुन पर जन्मोत्सव के गीतों का गायन कराया गया।
रामलीला के मंचन के दौरान दर्शाया गया कि मनु-सत्रूपा ने तपस्या कर भगवान हरि को प्रसन्न किया। तप के दौरान भगवान हरि ने खुश होकर वरदान मांगने को कहा। मनु-सतरूपा ने भगवान को पुत्र के रूप में मांगा। तप से खुश होकर भगवान हरि ने त्रेता युग में पुत्र जन्म लेने की बात कही। यही मनु अयोध्या के राजा दशरथ बने और सतरूपा रानी कौशल्या थी।
रावण, कुंभकरण और विभीषण की तपस्या की लीला का मंचन किया गया। रावण ने कुबेर के वैभव को देख ब्रह्मा जी की घोर तपस्या करते हैं। इसके बाद ब्रह्मा जी रावण, कुंभकरण और विभीषण को वरदान देते हैं। उसी समय लंकनी को भी तपस्या करते देखकर राक्षस वंश के उद्धार का रहस्य बताते हुए वरदान देकर ब्रह्म लोक के लिए चले जाते हैं।
दृश्य-3
दूसरे दृश्य में दर्शाया गया कि राजा दशरथ के तीनों रानियों के कोई संतान न होने से वे बड़े दुखी हुए। उन्होंने कुल गुरु वशिष्ठ के आश्रम में जाकर पूरी पीड़ा बताई। गुरू वशिष्ठ ने पुत्र जन्म के लिए यज्ञ का आयोजन रखा है। अग्नि देव ने यज्ञ से प्रसन्न होकर खीर का कटोरा दिया। यह खीर को तीनों रानियों को खिलाने को दिया गया। इसके कुछ समय बाद तीनों रानियों के पुत्र प्राप्ति हुई।