विजय सिंह ने 2010 में हिंदी के सम्मान में रथ यात्रा निकाली थी, जिसमें पूरे मप्र को कवर किया था। यह यात्रा 7 हजार किमी की थी। साथ ही राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा जी को ज्ञापन भी दिया था। उनका हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने का प्रयास जारी है। इसके लिए वह संसद तक जा चुके हैं।
उन्होंने बताया कि मेरे पिता हरनाम सिंह साहित्य प्रेमी थी। उनका हिंदी से बहुत गहरा लगाव था। वो मैंने सुना और देखा। तभी से हिंदी के प्रति मेरा प्रेम और आकर्षण बढ़ा। मैं हिंदी का प्रचार देश के साथ ही अन्य देशों में भी कर रहा हूं। अभी तक मैं देश-विदेश में 56 हिंदी सम्मेलन करा चुका हूं।
हिंदी से युवाओं को जोडऩे के लिए विजय 2000 हिंदी की किताबें लिख चुके हैं। इनमें से 100 पब्लिश हो चुकी हैं। इसमें उन्होंने हिंदी को सरल बनाने का भी प्रयास किया है।
एडवोकेट विजय ने कई साल पहले हाईकोर्ट में हिंदी में काम कराने की मुहिम उठाई थी, जिसे सफलता 10 साल के कड़े संघर्ष के बाद 2005 में मिली। उनका साथ शहर के कई एडवोकेट एवं आम नागरिक ने दिया था।