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हिंदी को राष्ट्र भाषा की पहचान दिलाने निकाली रथ यात्रा, बनवाया विश्व का इकलौता हिंदी माता मंदिर

locationग्वालियरPublished: Sep 14, 2021 05:23:45 pm

Submitted by:

Mahesh Gupta

देश-विदेश में करा चुके 56 हिंदी सम्मेलन, छप चुकीं हिंदी में 100 से अधिक किताबें

हिंदी को राष्ट्र भाषा की पहचान दिलाने निकाली रथ यात्रा, बनवाया विश्व का इकलौता हिंदी माता मंदिर

हिंदी को राष्ट्र भाषा की पहचान दिलाने निकाली रथ यात्रा, बनवाया विश्व का इकलौता हिंदी माता मंदिर

ग्वालियर.

दुनिया का हर देश अपनी भाषा बोलने, लिखने और सुनने में गर्व महसूस करता है। वह अपनी भाषा को सबसे आगे रखता है, लेकिन हमारा देश अपनी ही मातृ भाषा से दूर है। हिंदी में बात करने में आज की युवा पीढ़ी शर्म महसूस करती है। हिंदी को राज्य भाषा का दर्जा तो मिल गया, लेकिन आज वह राष्ट्र भाषा नहीं बन पाई। इसी हिंदी को देश-दुनिया में पहचान दिलाने का काम ग्वालियर के एडवोकेट विजय सिंह चौहान कर रहे हैं। उन्होंने सन् 1995 में सत्य नारायण की टेकरी में हिंदी माता मंदिर स्थापित कराया। यह विश्व का इकलौता हिंदी माता मंदिर है।
हिंदी के सम्मान में निकाली थी रथ यात्रा
विजय सिंह ने 2010 में हिंदी के सम्मान में रथ यात्रा निकाली थी, जिसमें पूरे मप्र को कवर किया था। यह यात्रा 7 हजार किमी की थी। साथ ही राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा जी को ज्ञापन भी दिया था। उनका हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने का प्रयास जारी है। इसके लिए वह संसद तक जा चुके हैं।
पिता की मिली प्रेरणा से बढ़ा हिंदी प्रेम
उन्होंने बताया कि मेरे पिता हरनाम सिंह साहित्य प्रेमी थी। उनका हिंदी से बहुत गहरा लगाव था। वो मैंने सुना और देखा। तभी से हिंदी के प्रति मेरा प्रेम और आकर्षण बढ़ा। मैं हिंदी का प्रचार देश के साथ ही अन्य देशों में भी कर रहा हूं। अभी तक मैं देश-विदेश में 56 हिंदी सम्मेलन करा चुका हूं।
पब्लिश हो चुकीं 100 हिंदी की किताबें
हिंदी से युवाओं को जोडऩे के लिए विजय 2000 हिंदी की किताबें लिख चुके हैं। इनमें से 100 पब्लिश हो चुकी हैं। इसमें उन्होंने हिंदी को सरल बनाने का भी प्रयास किया है।
10 साल के कड़े संघर्ष के बाद मिली सफलता
एडवोकेट विजय ने कई साल पहले हाईकोर्ट में हिंदी में काम कराने की मुहिम उठाई थी, जिसे सफलता 10 साल के कड़े संघर्ष के बाद 2005 में मिली। उनका साथ शहर के कई एडवोकेट एवं आम नागरिक ने दिया था।
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