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Republic Day 2018 : इस देशभक्त के नाम से थर-थर कांपते थे अंग्रेज, सामने आते ही कांप जाती थी दुश्मनों की रूह

locationग्वालियरPublished: Jan 26, 2018 02:53:18 pm

Submitted by:

monu sahu

प्रथम युद्ध में चिमना जी अपनी छोटी सी टुकड़ी के साथ अंग्रेजों पर हमला बोलते थे और वे अंग्रेजों क ो पीठ दिखाने के लिए मजबूर हो जाते

26 January alart

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ग्वालियर। झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के साथ लहार क्षेत्र की बौहार रियासत के राजा चिमनाजी ने भी भिंण्ड की धरती से आजादी का बिगुल फंूका था। उन्होंने अंग्रेजों से लड़ते हुए कालपी में मातृभूमि के लिए अपने प्राणों की आहुति दे डाली। जीते जी चिमनाजी ने अंग्रेजियों को सिंध नदी के किनारे पैर नहीं रखने दिए। बौहारा तथा डुबका के भग्नावशेषों से आज भी चिमनाजी की गौरव गाथा सुनाई देती है।१८५७ के प्रथम युद्ध में चिमना जी अपनी छोटी सी टुकड़ी के साथ अंग्रेजों पर हमला बोलते थे और वे अंग्रेजों क ो पीठ दिखाने के लिए मजबूर हो जाते थे। पृथ्वी राज चौहान की तरह ही चिमनाजी को तीरंदाजी में लक्ष्यभेदी माना जाता था।
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राजसी ठाटबाट छोड़कर उन्होंने भारत माता को गुलामी की जंजीरों से मुक्त कराने के लिए अभियान छेड़ दिया। अमायन,मिहोना, दबोह,क्षेत्र में चिमनाजी के नाम से अंग्रेजों की रूह कांपती थी। झांसी की रानी के साथ अंग्रेजो से लड़ते हुए चंबल का यह शेर कालपी में शहीद हो गया था। नाराज अंग्रेजों ने तोपों से बोहरा की गढ़ी को नष्ट कर दिया। १८६१ में उनकी संपत्ति को राजसात कर लिया गया।
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चिमनाजी के परिजनों को सालो तक बागी जीवन जीना पड़ा। अंग्रेजों ने चिमनाजी के पूरे परिवार को मौत की सजा दी थी। चिमनाजी का जन्म बोहरा के राजपरिवार में हुआ था। चिमनाजी के पिता आधार सिह जूदेव ने दो शादियां की थी। चिमनाजी छोटी रानी के सबसे बड़े पुत्र थे। पारिवारिक कलह के कारण चिमनाजी बोहरा छोड़कर डुबका गंाव में जाकर बस गए थे। चिमना की मौत के बाद उनके वंशज दौलतसिंह ने बगावत की बागडोर संभाली।
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मेजर मेकमिलन की टुकड़ी को चटाई थी धूल
चिमनाजी जीवन भर अंग्रेजों से लोहा लेते रहे मराठा चंगुल से मुक्त कछवाहा घार को मुक्त कराने के लिए मेजर मेकमिलन के नेतृत्व में एक टुकड़ी भेजी गई थी। चिमनाजी ने अंग्रेजों की टुकड़ी को नष्ट कर दिया,कुछ ने रहावली,लहार के जमीदारों के सहयोग से अपनी जान बचाई थी।
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बौहरा में उपलब्ध है चिमना की स्मृतियों के अवशेष
रौन से पंाच किमी दूर बौहरा महल में चिमनाजी की स्मृतियों चिन्ह आज भी उपलब्ध है। तलवार,डाल तथा चंवर तथा अन्य वस्तुएं आज भी उपलब्ध हैं। चिरस्थाई बनाने के लिए एक ट्रस्ट बनाने का प्रयास भी किया जा रहा है।
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“चंंबल के लोगों ने गुलामी कभी स्वीकार नहीं की।इसका उन्हें खामियाजा भी उठाना पड़ा। प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में सिंध क्षेत्र की जनता का महत्वपूर्ण योगदान रहा। आजादी तक यहां का लोगों का संघर्ष चलता रहा।”
कुं.देवेंद्रसिंह जेतपुरा मढ़ी
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“चिमनाजी का नाम इतिहास में न होने के पीछे भी राजनीति रही है। भिण्ड के लोगों का दुर्र्भाग्य है कि चिमनाजी जैसे बहादुरों को भुला दिया गया। लेकिन आज भी गंावों में चिमनाजी जीवित है।”
मंगलेश्वर प्रतापसिंह वंशज चिमनाजी परिवार बौहारा

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