scriptबीमारी की पहचान से लेकर इलाज तक में जेनेटिक काउंसलर का रोल | Role of genetic counselor from disease detection to treatment | Patrika News

बीमारी की पहचान से लेकर इलाज तक में जेनेटिक काउंसलर का रोल

locationग्वालियरPublished: Oct 24, 2019 12:09:18 pm

Submitted by:

Mahesh Gupta

जेयू के जूलॉजी विभाग में वर्कशॉप

बीमारी की पहचान से लेकर इलाज तक में जेनेटिक काउंसलर का रोल

बीमारी की पहचान से लेकर इलाज तक में जेनेटिक काउंसलर का रोल

किसी बीमारी की पहचान करने से लेकर उसके पूरी तरह से इलाज करने तक में जेनेटिक काउंसलर का अहम रोल होता है। वह पेशेंट के साथ-साथ उसकी पूरी फैमिली के लिए भी हेल्पफु ल होता है। जेनेटिक काउंसलर ही आपसे आपकी बीमारी के संबंध में फ्यूचर रिस्क प्रीडिक्शन पर बात करता है। साथ ही यह भी बताता है कि उस बीमारी के अगली पीढ़ी में ट्रांसमिट होने के कितने प्रतिशत चांस हैं। हमारे देश में जेनेटिक काउंसलर की काफ ी कमी है। हालांकि कई बड़े शहरों में जेनेटिक काउंसलर्स दिखाई देने लगे हैं। यह बात अहमदाबाद से आईं जेनेटिक्स काउंसलर डॉ. मानसी विशाल ने कही। वह जीवाजी यूनिवर्सिटी में ‘जेनेटिक डिसीज एंड जेनेटिक काउंसिलिंगÓ विषय पर हुए व्याख्यान के दूसरे दिन बोल रही थीं। इस दौरान डॉ. मानसी ने पॉवर प्वॉइंट प्रजेंटेशन से भी विषय के बारे में जानकारी दी। इस अवसर पर विभाग के हेड डॉ. पीके तिवारी सहित कई स्टूडेंट्स मौजूद रहे।

पूरी हिस्ट्री जानने के बाद होती है काउंसिलिंग
डॉ. मानसी ने कहा कि जेनेटिक काउंसलर और डॉक्टर में यही फ र्क होता है कि डॉक्टर किसी बीमार व्यक्ति की केवल क्लीनिकल काउंसिलिंग ही करता है, जबकि जेनेटिक काउंसलर किसी बीमार व्यक्ति की क्लीनिकल हिस्ट्री के साथ- साथ उसकी फैमिली हिस्ट्री के बारे में जानने के बाद पहले उसकी जेनेटिक टेस्टिंग करता है, अंत में उसकी जेनेटिक काउंसिलिंग करता है। इससे उस व्यक्ति की बीमारी का पूरी तरह से इलाज करने में यह महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।


अगली पीढ़ी के रिस्क का कर सकते हैं पता
-जेनेटिक टेस्टिंग के माध्यम से यह भी पता लगाया जा सकता है कि किसी बीमारी का अगली पीढ़ी में पहुंचने में कितना प्रतिशत रिस्क है। इस आधार पर काउंसिलिंग करके पहले से ही उस पर नियंत्रण रखने में मदद मिल सकती है। बच्चों को होने वाली बीमारी को इसके माध्यम से आसानी से डिटेक्ट किया जा सकता है। जेनेटिक बीमारियों में इंटैलेक्चुअल डिस्एबिलिटीज, कैंसर और मस्कुलर डिस्ट्रोफ ीज को शामिल किया गया है। इनकी पहचान करके जेनेटिक काउंसिलिंग आसानी से की जा सकती है।

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