पूरी हिस्ट्री जानने के बाद होती है काउंसिलिंग
डॉ. मानसी ने कहा कि जेनेटिक काउंसलर और डॉक्टर में यही फ र्क होता है कि डॉक्टर किसी बीमार व्यक्ति की केवल क्लीनिकल काउंसिलिंग ही करता है, जबकि जेनेटिक काउंसलर किसी बीमार व्यक्ति की क्लीनिकल हिस्ट्री के साथ- साथ उसकी फैमिली हिस्ट्री के बारे में जानने के बाद पहले उसकी जेनेटिक टेस्टिंग करता है, अंत में उसकी जेनेटिक काउंसिलिंग करता है। इससे उस व्यक्ति की बीमारी का पूरी तरह से इलाज करने में यह महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
अगली पीढ़ी के रिस्क का कर सकते हैं पता
-जेनेटिक टेस्टिंग के माध्यम से यह भी पता लगाया जा सकता है कि किसी बीमारी का अगली पीढ़ी में पहुंचने में कितना प्रतिशत रिस्क है। इस आधार पर काउंसिलिंग करके पहले से ही उस पर नियंत्रण रखने में मदद मिल सकती है। बच्चों को होने वाली बीमारी को इसके माध्यम से आसानी से डिटेक्ट किया जा सकता है। जेनेटिक बीमारियों में इंटैलेक्चुअल डिस्एबिलिटीज, कैंसर और मस्कुलर डिस्ट्रोफ ीज को शामिल किया गया है। इनकी पहचान करके जेनेटिक काउंसिलिंग आसानी से की जा सकती है।