वे ग्वालियर में संघ के मध्य प्रांत द्वारा आयोजित स्वर साधक संगम शिविर में प्रवास पर हैं। इसके समापन अवसर पर रविवार को उन्होंने कहा कि हमारा मानना है कि बदलना है तो गुणवत्ता से, आचरण से बदलाव हो। अपने राष्ट्र को परम वैभव संपन्न राष्ट्र बनाने के लिए संपूर्ण समाज भागीदार बनेगा, संघ का ऐसा ध्येय है। कुछ लोग होते हैं कि स्वयं कुछ नहीं करते, दूसरों को सुधारने का ठेका लेते हैं। हमारे समाज में भी यह आदत है कि स्वयं कुछ भले न करें लेकिन दूसरे में सुधार की उम्मीद लगाता है। जबकि जाग्रत रहकर स्वयं अपने भाग्य का निर्माण करने वाले समाज को अपने आप प्रभावित करते हैं। इसलिए यही संघ की कार्यशक्ति है इसलिए संघ बना है। संघ को ठेका नहीं लेना है, संघ तो धर्म का संरक्षण करते हुए समाज को तैयार कर देगा। समाज अपने आप आगे बढ़ेगा।
संघ पैरामिलिट्री फोर्स नहीं
उन्होंने संघ कार्य में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष सहयोग का आह्वान करते हुए कहा कि स्वतंत्र विचार के साथ देश का निर्माण, सबको अपना मानकर सबको साथ लेकर चलने वाला समाज बनाना संघ का काम है। हम जहां हैं, जैसे हैं वहीं से संघ कार्य में सहयोग करें। संघ में अनेक प्रकार के कार्यक्रम होते हैं। कार्यक्रमों से संघ का अनुमान नहीं लगाया जा सकता। हर जगह घोष है और इसके हिसाब से यह तय नहीं किया जा सकता कि संघ कोई अखिल भारतीय कार्यशाला है। संघ में मार्शल आर्ट के तहत शारीरिक क्रियाकलाप होते हैं। इसका मतलब यह नहीं कि संघ कोई व्यायाम शाला है। कहीं कहीं कहा जाता है कि संघ पैरामिलिट्री फोर्स की तरह है लेकिल संघ पैरामिलिट्री फोर्स भी नहीं है। इस तरह की विविध गतिविधियां संघ की कार्य पद्धति में हैं। ये सारे कार्यक्रम मनुष्य की गुणवत्ता बढ़ाने वाले हैं और गुणवत्ता वाले मनुष्य ही सभी जगह खड़े हो जाएंगे और समाज की चिंता करेंगे। समाज उन पर विश्वास करेगा। यह संघ का मूल काम है।
संघ सबको मिलाकर जोड़कर काम कर रहा, जरूरत पड़ी तो देश के लिए मरेंगे भी
ग्वालियर . राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने मध्य प्रांत के स्वर साधक संगम (घोष) शिविर में कहा कि देश का भाग्य बदलना आसान काम नहीं है, हम कई बार फालतू टीका-टिप्पणी में उलझ जाते हैं। जैसे हम आजादी 1947 में मिली लेकिन इसके लिए प्रयास 1857 से शुरू करना पड़े। हमारे ही घर में यह प्रयास चला कि हम विदेशियों से घर में ही हार गए। इस हार के कारण को जानने के लिए सामूहिक प्रयास हुए, जिसका फल 1947 में आजादी के रूप में मिला। संघ सबको जोड़कर, सबको मिलाकर काम कर रहा है और जरूरत पड़ी तो देश के लिए मरेंगे भी। ऐसे समाज का निर्माण संघ का उद्देश्य है।
धर्म सिर्फ पूजा नहीं है, यह पुरुषार्थ है
आजकल हम पूजा को ही धर्म मानते हैं। जबकि धर्म में चार पुरुषार्थ हैं, जिनसे मिलकर धर्म बना है। सबकी पूजा, साधना अलग-अलग हो सकती है लेकिन इस मार्ग पर अकेले ही चलना पड़ता है। धर्म वह पुरुषार्थ है जो व्यक्ति को अनुशासन में लाता है। धर्म सबके कर्तव्य का निर्वहन करने वाला, खोया हुआ संतुलन वापस करके सृष्टि का संतुलन करना वाला है। हमारा धर्म पराई स्त्री को माता-बहन मानना है, दूसरे के धर्म को नहीं हड़पना है। कुछ मूल्यों का आधार धर्म है। एकांत में आत्म साधना करना और लोकाचार में सद्वृत्ति रखना धर्म माना गया है। इस धर्म का संरक्षण करते हुए हमें इसे राष्ट्र का निर्माण करना है। संघ को बढ़ाकर समाज में प्रभाव पैदा करना नहीं है बल्कि एक संपूर्ण समाज का निर्माण करना है।
संगीत सिर्फ मनोरंजन का साधन नहीं, अनुशासन है
कदम से कदम मिलाने से मन से मन मिलते हैं और देश को बढ़ा बनाने के लिए जब इस तरह के कार्यक्रम करते हैं तो ताल मिलते हैं। इसलिए संघ में घोष का वादन शुरू हुआ। भारतीय संगीत की प्राचीन परम्परा में सुर और साधना शामिल हैं। ग्वालियर स्वयं संगीत की धरा है। पहले घोष वादन में ब्रिटिश संगीत पर आधारित रचना बजती थीं। बाद में भारतीय संगीत के आधार पर संगीत रचनाएं बनीं और वादन शुरू हुआ। संगीत केवल मनोरंजन का साधन नहीं है बल्कि हमारे यहां संगीत मन को शांति देने वाला है। मन को सम अवस्था में लाने वाला है। हम ठीक से गायन या वादन का अभ्यास शुरू करें तो समाज को जोडऩे के सारे गुण संगीत में मिलते ह