जानकारों के अनुसार ग्वालियर के दक्षिण में स्थित नाग शासकों की राजधानी पद्मावती से नाग शासकों के कई राजाओं के सिक्के प्राप्त हुए हैं। इसी क्षेत्र से कुषाण व गुप्त साम्राज्य के शासकों के सिक्के भी काफी मात्रा में मिल चुके हैं। चंदेल कालीन, प्रतिहार शासनकालीन,कच्छपघात कालीन सिक्के भी इस क्षेत्र में बहुतायत से मिले हैं। सिक्कों का इस क्षेत्र में मिलना यह बताता है कि इस क्षेत्र का इन राजवंशों से घनिष्ठ संबंध रहा हैं।
जानकारों के अनुसार शेरशाह सूरी ने ग्वालियर दूर्ग पर विधिवत दुर्ग पर विधिवत टकसाल की स्थापना कर चांदी व तांबे के सिक्के ढालना शुरू किया था और वर्तमान में चलने वाले रुपये का नाममकरण भी ग्वालियर में ही हुआ था।
CLICK HERE – दरअसल शेरशाह सूरी द्वारा एक तौला वजन के चांदी के सिक्के का नाम रुपया दिया गया था,
जो संस्कृत के ‘
रौप्य‘
शब्द का हिन्दी रूपांतरण था। इस सिक्के पर हिन्दी में ‘
श्री शेरशाह‘
अंकित था,
इन सिक्कों में ही पहली बार ‘
ग्वालियर‘
शब्द भी लिखा गया था। ये भी पढ़ें – ऐसी थी सिंधिया स्टेट की करेंसी,जानिये किसने छापा था 10 हजार का नोट इसके बाद मुगल बादशाह अकबर ने भी ग्वालियर टकसाल से सिक्के जारी करने में शेरशाह की नीति का पालन किया था। शेरशाह सूरी द्वारा ग्वालियर में एक तौला चांदी का रुपया व चौसठ तांबे के पैसे का रूपया सिद्धांत ग्वालियर में लागू किया गया था। जो भारत में सन 1956
ई.
तक जारी रहा था। मुगलबादशाह औरंगजेब, मोहम्मद शाह,फरूखसिपर, आलमगीर, शाह आलम आदि के शासनकाल में ग्वालियर टकसाल से चांदी व तांबे के सिक्के ढाले जाते रहे थे। गोहद के जाट शासकों व ईस्ट इंडिया कंपनी के ग्वालियर दुर्ग पर आधिपत्यकाल में यहां से मुगलबादशाहों के नाम से चांदी के सिक्के ढाले जाते थे।
ये भी पढ़ें – 1770 में जारी हुआ था देश का पहला करेंसी नोट सिंधिया शासकों में महादजी,
दौलतराव,
बैजाबाई,
जनकोजी,
जयाजीराव,
माधवराव और जीवाजीराव द्वारा इस टकसाल से सोने,
चांदी,
तांबे के सिक्के ढलवाए गए थे। सिंधिया राज्यकाल में ग्वालियर टकसाल के अलावा श्योपुर,
नरवर,
लश्कर,
सीपरी,
ईसागढ़,
चंदेरी,
मंदसौर,
गढ़ाकोटा,
उज्जेन,
बजरंगगढ़,
बसौदा,
विदिशा आदि कई जगहों पर भी टकसालें जारी की गई थी। यहां से आवश्यकतानुसार सोने,
चांदी व तांबे के सिक्के ढ़ाले जाते थे। इनमें से लश्कर स्थित टकसाल तो सन 1948
ई.
तक जारी रही।