हैरान करने वाली बात यह है कि जब सिंधिया इसकी मंजूरी की कोशिश में जुलार्ई से सितंबर 2021 से जुटे थे, जबकि उसके बाद प्रदेश में विधानसभा के दिसंबर में शीतकालीन सत्र तक सरकार इससे अनजान थी। इसमें क्षेत्रीय विधायक लखन यादव के प्रश्न पर उन्होंने यह तो माना कि सडक़ खराब है। यही भी स्वीकार किया कि उसपर चलना संभव नहीं है, लेकिन इसे बनाने पर उन्होंने ऐसी किसी योजना के होने से ही इनकार कर दिया था। आगे की कार्ययोजना पर भी उन्होंने कहा कि इसकी भविष्यवाणी संभव नहीं है। जाहिर है मंत्री गोपाल भार्गव और उनका महकमा इससे पूरी तरह बेखबर थे।
विधायक 2008 से पूछ रहे सरकार! कब सुधरेगी सडक़ विधानसभा के शीतकालीन सत्र में 23 दिसंबर को कांग्रेस विधायक लाखन सिंह यादव के प्रश्न में पूछा था कि क्या चीनौर-करहिया मार्ग चलने लायक भी नहीं है? 2008 से प्रत्येक सत्र में सडक़ निर्माण के लिए प्रश्न लगाए जाते रहे हैं? इस रोड को स्वीकृत कराकर निर्माण कब तक करा लिया जाएगा? इस पर लोक निर्माण मंत्री गोपाल भार्गव ने लिखित जवाब में इसके निर्माण की योजना नहीं होने की जानकारी दी थी। अब उनके लोक निर्माण विभाग के क्षेत्रीय एसडीओ राजेंद्र शर्मा कहते हैं, मंजूरी आ गई है। टेंडर प्रक्रिया के बाद निर्माण कार्य शुरू होगा।
13 साल से 15 किमी का चक्कर लगा रहे 18 करोड़ रुपए की लागत से 15 किलोमीटर लंबी और करहिया, आरोन, कोलार घाटी को जोडऩे वाली सडक़ बन चुकी है। करहिया से ग्वालियर आने वाले लोग चीनोर तक सडक़ खराब होने की वजह से करीब 15 किलोमीटर लम्बा चक्कर होने के बाद भी इसी सडक़ का उपयोग कर रहे हैं। अब उम्मीद जागी है, भले ही सडक़ निर्माण का काम भले ही शुरू नहीं हो पाया लेकिन इसके निर्माण के लिए केंंद्र सरकार से 74 करोड़ 81 लाख रुपए स्वीकृत हुए हैं। अब यह सडक़ ग्रामीणों को ग्वालियर से जोड़ देगी और सिंधिया खेमा इसे उनकी उपलब्धि में गिनाएगा।
ठेकेदार ही भाग गया था ब्लैक लिस्ट करना पड़ा कलेक्टर ने इसे तत्काल सुधारने के निर्देश दिए गए लेकिन एक मंत्री के विभाग इसे बनाने तैयार नहीं थे। लोक निर्माण विभाग इसे अपना नहीं मानता था और एमपीआरडीसी इसे पराई सडक़ बताता रहा। इससे पहले प्रधानमंत्री सडक़ योजना से इसे बनाया गया था, लेकिन घटिया निर्माण से सडक़ पूरी तरह जर्जर हो गई। ठेका कंपनी ब्लैक लिस्ट कर दिया गया। इसके बाद कोई सडक़ की जिम्मेदारी लेने तैयार नहीं था। लोक निर्माण विभाग इसे अपना मान नहीं रहा था और मध्यप्रदेश रोड डेवलपमेंट कारपोरेशन इसे पराया बताता रहा।