ग्वालियर

70 वर्ष से बैकुंठ आश्रम के सेवादार कर रहे पशु-पक्षियों की सेवा

बेजुबानों के लिए करते हैं भोजन-पानी की व्यवस्था
 

ग्वालियरMay 19, 2019 / 07:32 pm

प्रशांत शर्मा

70 वर्ष से बैकुंठ आश्रम के सेवादार कर रहे पशु-पक्षियों की सेवा

ग्वालियर। पर्यावरण में संतुलन के लिए सभी जीवों का संरक्षण किया जाना आवश्यक है। इसके लिए चिटनिस की गोठ लश्कर में स्थित बैकुंठ आश्रम के सेवादार 70 वर्ष से अपने गुरु के आदेश पर लगातार काम कर रहे हैं। गाय, क ौआ, मोर, कबूतर एवं अन्य पक्षियों के साथ ही श्वान, बंदर आदि के भोजन-पानी की व्यवस्था के लिए आश्रम से जुड़े हुए सेवादार प्रतिदिन निकलते हैं। इनके द्वारा छतों पर दाना-पानी रखकर हजारों पक्षियों की गर्मी में भूख और प्यास से रक्षा की जा रही है। वहीं सुबह सेवादार शहर के अलग-अलग क्षेत्रों में स्ट्रीट डॉग्स के लिए ब्रेड के पैकेट लेकर निकलते हैं। आश्रम के सेवादारों को देखकर ही कबूतर, चिडिय़ा और अन्य पक्षियों तथा बंदरों का झुंड आ जाता है।

बैकुंठ आश्रम के सेवादारों ने बताया कि जिस तरह समाज और वातावरण में परिवर्तन हो रहा है, उससे हमारा भविष्य अंधकार में होता जा रहा है। इसको लेकर आश्रम के गुरु के आदेशानुसार हम लोगों द्वारा सेवा का कार्य किया जा रहा है। बेजुबानों द्वारा अपनी परेशानी बयां नहीं की जा सकती है, जिस कारण वह हादसों का शिकार हो जाते हैं। हमें अपने जीवन में पशु-पक्षियों की सेवा करते रहना चाहिए, क्योंकि वह भी प्रकृति की देन हैं। आश्रम के सेवादारों द्वारा शीतला माता मंदिर रोड, बहोड़ापुर रोड एवं अन्य मार्गों पर जहां स्ट्रीट डॉग्स बहुत अधिक संख्या में मौजूद हैं, वहां जाकर उनके लिए ब्रेड रखी जाती है। वहीं सर्दियोंं के दिनों में शहर में निराश्रित गोवंश को गुड़ आदि खिलाकर सर्दी से बचाव किया जाता है। आश्रम के सेवादारों द्वारा समाजसेवा के क्षेत्र में किए जा रहे कार्य से प्रेरित होकर समाज के अन्य लोगों द्वारा भी आश्रम में पहुंचकर पशु-पक्षियों के संरक्षण के लिए कार्य किया जा रहा है।
पशु-पक्षियों की घटती संख्या बन रही चिंता का कारण
मोबाइल टॉवर, विद्युत लाइन एवं प्रदूषण आदि से शहर और उसके आसपास के एरिया में पशु-पक्षियों की संख्या में तेजी से कमी आ रही है। ऐसे हालात में जरूरी है कि शहर में दूसरे आश्रम और मंदिर भी इस प्रकार के अभियान की शुरुआत करें, ताकि शहर के आसपास पर्यावरण में संतुलन बना रहे। पशु-पक्षियों की घटती संख्या भविष्य में हानिकारक साबित हो सकती है। इसके लिए हम सभी को प्रयास करते रहना चाहिए। इसी उद्देश्य को लेकर आश्रम के सेवादारों द्वारा इस क्षेत्र में कार्य किया जा रहा है।
चिटनिस की गोठ में है वर्षों पुराना आश्रम

बैकुंठ आश्रम चिटनिस की गोठ लश्कर में स्थित है। यहां के गुरुदेव ब्रह्मचारी आतमदास महाराज का जन्म 1912 में हुआ था। उन्होंने मात्र 11 वर्ष की आयु में ही सन्यास ले लिया था और 2001 में बृह्मलीन हुए। आश्रम से जुड़े भागचंद कुंदवानी ने बताया कि गुरुदेव शुरू से ही जीवों की सेवा की प्रेरणा आश्रम पर आने वाले सदस्यों को देते थे। उन्हीं के आदेश पर 1950 से जीव जंतुओं की सेवा का काम आश्रम द्वारा किया जा रहा है। अध्यक्ष मनोहर काकवानी, सचिव मुरलीधर गंगवानी, संरक्षक चंद्रलाल राम प्रिया, रमेश जेसवानी, किशनलाल माखीजा, विजय काकवानी, डॉ. दर्शनलाल हवलानी, अर्जुन, विजय कुमार, मोहनदास वासवानी, सतीश राजानी, इंद्रा बहन जी मिलकर निरंतर प्रयास में जुटे हुए हैं।
चित्रकूट तक जाती हैं शहर से रोटियां- आश्रम द्वारा शहर ही नहीं वरन चित्रकूट में भी सेवा की जा रही है। एक माह में कम से कम 4 दिन चित्रकूट के बंदरों के लिए रोटी और दाना भेजा जाता है। इसके लिए रोटी बनाने के लिए आटा आश्रम से सेवादार महिलाओं को दिया जाता है, जो अगले दिन रोटियां बनाकर आश्रम में पहुंचा देती हैं। फिर यहां से रोटियां इक_ी कर चित्रकूट भेजी जाती हैं। जहां बंदर और लंगूरों को परिक्रमा मार्ग में सेवा उपलब्ध कराई जाती है। सेवादारों को देखते ही यहां बंदरों का झुंड आ जाता है।
स्टेशन की छत पर होती थी बड़ी सेवा
पूर्व में रेलवे स्टेशन की छत पर पक्षियों को दाना चुगाने की सेवा आश्रम से जुड़े सेवादार ही करते थे, लेकिन बाद में रेलवे की आपत्ति और हाईटेश्ंान लाइन के चलते सेवा के कार्य को दूसरी जगहों पर शिफ्ट कर दिया गया। अगर शहर में ऐसे स्थान जहां पक्षियों की संख्या अधिक है। वहां के लोग आश्रम के सेवादारों को सूचना देकर अपने क्षेत्र में भी पशु-पक्षियों की सेवा का काम शुरू करा सकते हैं। इसके लिए आश्रम से जुड़े हुए सेवादार हमेशा ही तैयार रहते हैं।

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