यह खबर भी पढ़ें: पटवारी भर्ती परीक्षा इतिहास में सबसे बड़ी परीक्षा बनने जा रही है,अभी नहीं तो कभी नहीं यह विश्व प्रसिद्ध रामायणकालीन शनि मंदिर पर मेला शुक्रवार सुबह से शुरू हो जाएगा जो कि आधी रात तक चलेगा। १८ नवंबर को अगहन मास में शनिवारी अमावस्या पर देश और विदेश से लाखों श्रद्धालु दर्शन व पूजा के लिए यहां आएंगे। प्रशासन ने वीआईपी पास, प्रसाद, पार्किंग, भंडारे, तेल अर्पण के लिए विशेष इंतजाम किए हैं। प्रशासन ने इस बार मेले में व्यवस्थाओं के मार्गदर्शन के लिए एक मैप भी तैयार कराया है।
यह खबर भी पढ़ें: ढैया-साढ़े साती की दशा-शांति के लिए ऐसे करें पूजा व अनुष्ठान, इन राशियों को मिलेगा लाभ,ये करें उपाय यह मैप प्रमुख स्थानों पर श्रद्धालुओं के मार्गदर्शन के लिए उपलब्ध रहेगा। पूरे परिसर में आठ स्थानों पर श्रद्धालुओं के लिए वाहन पार्किंग की व्यवस्था की गई है। नौ ड्रॉप गेट बनाए गए हैं। पेयजल की आपूर्ति करने वाली दो बड़ी टंकियों के अलावा सात स्थानों पर सादा पीने के पानी का इंतजाम किया गया है। तीन स्थानों पर वाटरकूलर लगाए गए हैं। पुरुषों के लिए तीन व महिलाओं के लिए दो स्नानागार का इंतजाम भी किया गया है।
यह खबर भी पढ़ें: गोडसे की प्रतिमा के खिलाफ हिंदू महासभा नेता को नोटिस पूरे मेला परिसर में दो सुुलभ शौचालय व चार सामान्य शौचालय का इंतजाम किया गया है। ग्राम पंचायत ऐंती में शनि पर्वत पर स्थित यह मंदिर विश्व का मूल मंदिर माना जाता है। यही वजह है कि यहां बड़ी संख्या में मप्र के अलावा उत्तरप्रदेश, राजस्थान, गुजरात, बिहार, हरियाणा व दिल्ली के अलावा नेपाल, श्रीलंका व भूटान के नागरिक भी कई बार यहां शनि पूजा व दर्शन लिए आते हैं। शनि की ढैया, साढ़े-साती से पीडि़त भक्त मुंडन, स्नान, प्रसाद और सरसों का तेल अर्पण कर शनि शांति के विधान करते हैं। शनिदेव के भक्त देशभर से यहां आकर शनिवारी अमावस के मेले में भंडारे आयोजित करते हैं।
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ऐसी मान्यता है कि ऐंती स्थित शनि पर्वत पर स्वयं शनिदेव ने तपस्या कर अपनी खोई हुई शक्तियों को प्राप्त किया था। शनिदेव को रावण ने बंधक बनाकर अपने पैरों का आसन बना लिया था। जब हनुमानजी ने लंका दहन का प्रयास किया तो कामयाब नहीं हुए। कारण खोजने पर पता चला कि शनिदेव लंका में मौजूद हैं। हनुमानजी ने अपने बुद्धि चातुर्य ने उन्हें मुक्त कराया और लंका छोडऩे को कहा।
ऐसी मान्यता है कि ऐंती स्थित शनि पर्वत पर स्वयं शनिदेव ने तपस्या कर अपनी खोई हुई शक्तियों को प्राप्त किया था। शनिदेव को रावण ने बंधक बनाकर अपने पैरों का आसन बना लिया था। जब हनुमानजी ने लंका दहन का प्रयास किया तो कामयाब नहीं हुए। कारण खोजने पर पता चला कि शनिदेव लंका में मौजूद हैं। हनुमानजी ने अपने बुद्धि चातुर्य ने उन्हें मुक्त कराया और लंका छोडऩे को कहा।
यह खबर भी पढ़ें: यह है एमपी का अस्पताल जहां डॉक्टर नहीं आते और अंधेरे में रहती हैं प्रसूताएं सालों से रावण के पैरों के नीचे पड़े रहने से शनिदेव दुर्बल हो गए थे। उन्होंने तुरंत लंका छोडऩे में असमर्थता जाहिर कर दी। हालांकि शनिदेव ने उपाय बताया कि हनुमानजी उन्हें पूरे वेग से भारत भूमि की ओर फेंक दें। शनिदेव के लंका छोडऩे के बाद ही हनुमानजी उसे दहन कर पाए। शनिदेव ऐंती पर्वत पर आकर गिरे और यहीं तपस्या कर अपनी सिद्धियां दोबारा से प्राप्त कीं। वहीं से हनुमानजी और शनिदेव की मित्रता हो गई। यही वजह है कि शनिवार को हनुमानजी की पूजा करने से भी शनि कष्टों से मुक्ति मिलती है। एसडीएम प्रदीप सिंह तोमर के अनुसार मेले की तैयारियां पूरी की जा चुकी हैं। भिण्ड और ग्वालियर के बीच विशेष ट्रेन चलाई जाएंगी।