बदरवास से 35 किमी दूर ग्राम खैराई में भरने वाले इस मेले में जहां 20 हजार से ज्यादा आदिवासी इस मेले में मनोरंजन व खरीदारी कराने आएंगे। 20 साल पहले तक यह परंपरा थी कि जिन युवक-युवती का दिल मिल जाता था, वे इस मेले में आते थे और यहीं से भाग जाते थे। इसलिए इसका नाम भगोरिया मेला है। युवाओं द्वारा उठाए जाने वाले इस कदम से जब परिवारों में विवाद होता था, तो इस झगड़े को शांत करने राशि तय की जाती थी। पंचों द्वारा मामला हल कराया जाता था और विवाह पूर्ण हो जाता था। लेकिन समय के साथ बदलाव आया और अब परिजन रिश्ते तय कराते हैं। लेकिन मेले का आकर्षण आज भी वैसा ही है।
क्या है भगोरिया मेला
आदिवासी समुदाय में प्रचलित भगोरिया मेला होली पर भरता है, जहां आदिवासी समुदाय में आने वाले भील, भिलाला, पटेलिया, बारेला समाज के लोग बाजार करने पहुंचते हैं। 20 साल पहले यहां समाज के युवक-युवती एक-दूसरे को पसंद करते और भाग जाते थे। अब ये प्रचलन कम हो गया है, लेकिन मेला की अन्य परम्मराओं में कोई कमी नहीं आई है। समाज की युवतियां आकर्षक श्रृंगार करके मेले में आती हैं, युवा पान खिलाते हैं, नृत्य होते हैं।
ये भी होता है मेले में