शहर के १३ लाख से अधिक लोगों के लिए लाइफ लाइन तिघरा डैम और वन क्षेत्र के दो दर्जन गांवों की सिंचाई का सहारा बने पगारा डैम का कैचमेंट खनन माफिया के लालच का शिकार होकर हमेशा खतरे में रहेगा। खास बात यह है कि जिन गांवों को डीनोटिफाई किया गया है, वहां निवासरत ग्रामीणों ने अभी तक कभी मुखर होकर विरोध नहीं जताया, न अभयारण्य को लेकर आपत्ति की है, इसके बावजूद प्रदेश सरकार ने वन क्षेत्र की १२ सडक़ों और जमीनों की खरीद फरोख्त में आ रही समस्या को आधार
बनाकर डीनोटिफाई कराने का प्रस्ताव
भेजा था।
बनाकर डीनोटिफाई कराने का प्रस्ताव
भेजा था।
लगातार शिकार और पत्थर के लालच ने देश की विलुप्त प्रजाति में शामिल सोन चिरैया को वास्तव में विलुप्त होने के कगार पर ला दिया है। १९७० में हुई गणना के समय इनकी संख्या १३०० थी, जबकि २००६ में यह घटकर ३०० रह गई। इसके बाद सोन चिरैया की संख्या का सही आंकड़ा विभाग के पास ही मौजूद नहीं है। इसी अवधि में अवैध उत्खनन की गतिविधियां घाटीगांव क्षेत्र में बढऩे लगी थीं।
सफेद पत्थर की आड़ में खत्म होंगी पहाडिय़ां
अभयारण्य की सीमा में बेशकीमती सफेद पत्थर है। इस पत्थर को क्षेत्रीय खनन माफिया अवैध रूप से निकाल रहा है। डीनोटिफिकेशन होने के बाद वन क्षेत्र की पहाडिय़ों को वैध तरीके से आंवटित कर दिया जाएगा, जिससे पारिस्थितीय संतुलन को बनाए रखने वाली पहाडिय़ों के खत्म होने का खतरा बढ़ जाएगा। शहरी क्षेत्र से सटे गिरवाई, प्रयागपुर, खितैरा, समेड़ी, नयागांव, रायपुर, पनिहार में भू माफिया के पैर पसारने का भी खतरा है।
अभयारण्य की सीमा में बेशकीमती सफेद पत्थर है। इस पत्थर को क्षेत्रीय खनन माफिया अवैध रूप से निकाल रहा है। डीनोटिफिकेशन होने के बाद वन क्षेत्र की पहाडिय़ों को वैध तरीके से आंवटित कर दिया जाएगा, जिससे पारिस्थितीय संतुलन को बनाए रखने वाली पहाडिय़ों के खत्म होने का खतरा बढ़ जाएगा। शहरी क्षेत्र से सटे गिरवाई, प्रयागपुर, खितैरा, समेड़ी, नयागांव, रायपुर, पनिहार में भू माफिया के पैर पसारने का भी खतरा है।
एक नजर बांधों की स्थिति पर
तिघरा डैम : शहर की १३ लाख से अधिक आबादी की प्यास बुझाने का सहारा १०० साल से तिघरा डैम ही है। इस बांध का कैचमेंट एरिया अभयारण्य की सीमा में ही सबसे ज्यादा है। तीन ओर से पहाडि़यों से घिरे इस बांध में सांक नदी का पानी आता है। २४ मीटर ऊंचे और १३४१ मीटर लंबाई में फेले इस बांध का निर्माण १९१६ में हुआ था। वर्तमान में बांध की जलभराव क्षमता ४.९ क्यूबिक फीट है। शहर के पेयजल और आसपास के ११ गांवों की सिंचाई भी इस बांध पर निर्भर है। हाल ही में किए गए डीनोटिफिकेशन से कैचमेंट एरिया से अभयारण्य की शर्तें हट जाएंगी और पत्थर निकालने वाले कैचमेंट एरिया को खतरा पैदा करेंगे।
तिघरा डैम : शहर की १३ लाख से अधिक आबादी की प्यास बुझाने का सहारा १०० साल से तिघरा डैम ही है। इस बांध का कैचमेंट एरिया अभयारण्य की सीमा में ही सबसे ज्यादा है। तीन ओर से पहाडि़यों से घिरे इस बांध में सांक नदी का पानी आता है। २४ मीटर ऊंचे और १३४१ मीटर लंबाई में फेले इस बांध का निर्माण १९१६ में हुआ था। वर्तमान में बांध की जलभराव क्षमता ४.९ क्यूबिक फीट है। शहर के पेयजल और आसपास के ११ गांवों की सिंचाई भी इस बांध पर निर्भर है। हाल ही में किए गए डीनोटिफिकेशन से कैचमेंट एरिया से अभयारण्य की शर्तें हट जाएंगी और पत्थर निकालने वाले कैचमेंट एरिया को खतरा पैदा करेंगे।
पगारा बांध : आसन नदी पर बना यह डैम वन क्षेत्र में मौजूद एक दर्जन गांवों की सिंचाई का सहारा है। जल स्तर को भी स्थिर रखता है। बांध का कैचमेंट एरिया ५ से ७ किलोमीटर तक वन क्षेत्र में फैला है। अभयारण्य की सीमा का डीनोटिफिकेशन होने से बांध के कैचमेंट में अवैध उत्खनन की गतिविधियां और बढ़ जाएंगी, क्योंकि बांध के आसपास सैकड़ों हैक्टेयर भूमि पर अवैध उत्खनन जारी है।
एन्क्लेव के तौर पर रखे जाएंगे गांव
अभयारण्य के 23 गांवों को डी-नोटिफाइड किए जाने से 111.73 वर्ग किलोमीटर में फैली जमीन को राजस्व में शामिल किया जाएगा।
इस प्रस्ताव में अभयारण्य के बाकी के 32 गांव को एन्क्लेव के तौर पर रखे जाने का निर्णय लिया गया है।
यह प्रस्ताव राज्य सरकार ने भारत सरकार के पर्यावरण-वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को भेजा है।
– हमारी कोशिश है कि यह प्रस्ताव केन्द्र सरकार से जल्द स्वीकृत हो जाए ताकि अभयारण्य में निवासरत लोगों को बेहतर सुविधाएं मिल सकें।
उमंग सिंघार, वन मंत्री
उमंग सिंघार, वन मंत्री