सोनचिरैया यानी Great Indian bustard को प्रकृति के संरक्षण की अंतरराष्ट्रीय संस्था IUCN ने विलुप्त प्राय: पक्षियों की लाल सूची में रखा है। इसीलिए अब इस पक्षी को बचाने के लिए बड़े पैमाने पर प्रयास किए जा रहे हैं। पक्षी विशेषज्ञों की मानें तो मध्यप्रदेश के ग्वालियर के सोनचिरैया अभयारण्य में ही यह 12 साल से नजर नहीं आई है। 2017 की गणना में मध्यप्रदेश में इसे नहीं पाया गया था। गुजरात में यह 15 थीं, लेकिन अब वहां सिर्फ 3 बची हैं। इसी तरह कर्नाटक और महाराष्ट्र में भी एक-एक ही शेष है।
जैसलमेर के सोनचिरैया अभयारण्य से जुड़े पक्षी विशेषज्ञ राधेश्याम पैमानी बताते हैं कि देश में सबसे अधिक संख्या में यह पक्षी राजस्थान में ही है। यहां इसकी संख्या करीब सौ है। मौजूदा स्थिति में इस पक्षी को कोटा में बसाने की कवायद की जा रही है। राजस्थान का यह राज्य पक्षी है। इसको अब कोटा में कैप्टिव ब्रीडिंग और हैचिंग के जरिए बसाने के प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन मध्यप्रदेश को अभी इसे देने का कोई प्रस्ताव सामने नहीं आया है।
पत्थर माफिया के लिए अवैध उत्खनन का सुरक्षित क्षेत्र बन चुके सोनचिरैया अभयारण्य में आखिरी बार यह चिडिय़ा 2007 में दिखाई देने का दावा किया गया था, इसके चार साल बाद यहां उसके अंडे मिलने की बात सामने आई थी, लेकिन सोनचिरैया कहीं नजर नहीं आई। इसे दोबारा बसाने की योजना को अभी तक धरातल पर नहीं उतारा जा सका। यहां न तो सोनचिरैया के अंडे ही आ सके हैं और न ही उनको बसाने की कोई कवायद हुई है। हालत यह है कि सोन चिरैया का पुनर्वास करने के लिए कूनो से लाई गई घास भी गायब हो गई है।
तिघरा क्षेत्र सोनचिरैया क्षेत्र में आवास पुनर्वास के लिए चारागाह प्लांटेश विकसित किए गए थे। इसकी फैंसिंग की गई थी और कूनो से विशेष घास लाने की योजना भी बनाई गई थी। यह घास लगाने के लिए साथ ही 50 से 100 हैक्टेयर में सात चारागाह विकसित करने की योजना तैयार की गई थी। इस योजना के माध्यम से प्लांटेशन करके प्राकृतिक चारागाह तैयार किए जाने थे। सोनचिरैया के लिए जिस तरह का चारा जैसलमेर में उगता है, उसे तिघरा मेंं भी उगाने की तैयारी की गई थी। लेकिन यह सब फाइलों मे ही सिमट कर रह गया और अभी तक न तो चारागाह विकसित हो पाए हैं, न ही जमीन को अतिक्रमण से बचाने की कोशिश की जा रही है।
बृजेन्द्र श्रीवास्तव, डीएफओ ग्वालियर
इकलौता सोनचिरैया अभयारण्य
हाईटेंशन लाइन : हाईटेंशन लाइन को सबसे प्रमुख वजह माना जाता है। यही कारण है कि इस मामले में शीर्ष अदालत ने सोनचिरैया को संरक्षित करने के लिए राजस्थान व गुजरात में केबल को भूमिगत करने का आदेश दिया था। इस पर केंद्र की तरफ से इस आदेश को शिथिल करने का आवेदन दिया गया है।