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सोनचिरैया अभयारण्य: मध्यप्रदेश में खो गया यह पक्षी, दुनियाभर में चिंता

locationग्वालियरPublished: Feb 14, 2022 11:22:29 pm

Submitted by:

Nitin Tripathi

अभी सूना ही रहेगा प्रदेश का इकलौता सोनचिरैया अभयारण्य… राजस्थान नहीं देगा, क्योंकि वह खुद अपने यहां इसे बचाने में जुटा

सोनचिरैया अभयारण्य:  मध्यप्रदेश में खो गया यह पक्षी, दुनियाभर में चिंता

ग्वालियर के संग्रहालय में देखें सोनचिरैया की ट्रॉफी

ग्वालियर . सोनचिरैया प्रदेश के इकलौते सोनचिरैया अभयारण्य से ही खो गई है। अभयाण्य में सोनचिरैया की मौजूदगी के दावों के आधार पर खर्चा किया जाता है, फिर भी यह दिखाई नहीं देती। राजस्थान के जैसलमेर से यहां अंडे लाकर बसाने की जो योजना बनाई गई थी, लेकिन राजस्थान अभी उसे दूसरे राज्यों को देने की बजाय अपने राज्य में ही इसे संरक्षित करने के लिए सबसे पहले कोटा में इसे बसाने की तैयारी कर रहा है।
वन विभाग अभयारण्य से सोनचिरैया के विलुप्त हो जाने की बात तो नहीं स्वीकारता लेकिन इसकी दोबारा बसाहट की योजनाएं जरूर तैयार करता रहा है। ताज्जुब तो इस बात का है कि अभयारण्य में सोनचिरैया दिखाई देने के आखिरी दावों को भी वर्षों बीत चुके हैं। ऐसी ही करीब दो साल पहले योजना बनी थी। दस साल में 50 करोड़ खर्च कर सोनचिरैया बसाने की योजना थी। इसके तहत वन विभाग राजस्थान के जैसलमेर से सोनचिरैया के अंडे लाकर उसे यहां दोबारा बसाना चाहता था।
मप्र सहित अन्य राज्यों में भी खतरे में है यह
सोनचिरैया यानी Great Indian bustard को प्रकृति के संरक्षण की अंतरराष्ट्रीय संस्था IUCN ने विलुप्त प्राय: पक्षियों की लाल सूची में रखा है। इसीलिए अब इस पक्षी को बचाने के लिए बड़े पैमाने पर प्रयास किए जा रहे हैं। पक्षी विशेषज्ञों की मानें तो मध्यप्रदेश के ग्वालियर के सोनचिरैया अभयारण्य में ही यह 12 साल से नजर नहीं आई है। 2017 की गणना में मध्यप्रदेश में इसे नहीं पाया गया था। गुजरात में यह 15 थीं, लेकिन अब वहां सिर्फ 3 बची हैं। इसी तरह कर्नाटक और महाराष्ट्र में भी एक-एक ही शेष है।
कोटा भेजे जाएंगे अंडे, फिर गुजरात को
जैसलमेर के सोनचिरैया अभयारण्य से जुड़े पक्षी विशेषज्ञ राधेश्याम पैमानी बताते हैं कि देश में सबसे अधिक संख्या में यह पक्षी राजस्थान में ही है। यहां इसकी संख्या करीब सौ है। मौजूदा स्थिति में इस पक्षी को कोटा में बसाने की कवायद की जा रही है। राजस्थान का यह राज्य पक्षी है। इसको अब कोटा में कैप्टिव ब्रीडिंग और हैचिंग के जरिए बसाने के प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन मध्यप्रदेश को अभी इसे देने का कोई प्रस्ताव सामने नहीं आया है।
15 साल में सौनचिरैया नहीं, पत्थर माफिया का राज
पत्थर माफिया के लिए अवैध उत्खनन का सुरक्षित क्षेत्र बन चुके सोनचिरैया अभयारण्य में आखिरी बार यह चिडिय़ा 2007 में दिखाई देने का दावा किया गया था, इसके चार साल बाद यहां उसके अंडे मिलने की बात सामने आई थी, लेकिन सोनचिरैया कहीं नजर नहीं आई। इसे दोबारा बसाने की योजना को अभी तक धरातल पर नहीं उतारा जा सका। यहां न तो सोनचिरैया के अंडे ही आ सके हैं और न ही उनको बसाने की कोई कवायद हुई है। हालत यह है कि सोन चिरैया का पुनर्वास करने के लिए कूनो से लाई गई घास भी गायब हो गई है।
सोनचिरैया बसाने की ये है जमीनी हकीकत
तिघरा क्षेत्र सोनचिरैया क्षेत्र में आवास पुनर्वास के लिए चारागाह प्लांटेश विकसित किए गए थे। इसकी फैंसिंग की गई थी और कूनो से विशेष घास लाने की योजना भी बनाई गई थी। यह घास लगाने के लिए साथ ही 50 से 100 हैक्टेयर में सात चारागाह विकसित करने की योजना तैयार की गई थी। इस योजना के माध्यम से प्लांटेशन करके प्राकृतिक चारागाह तैयार किए जाने थे। सोनचिरैया के लिए जिस तरह का चारा जैसलमेर में उगता है, उसे तिघरा मेंं भी उगाने की तैयारी की गई थी। लेकिन यह सब फाइलों मे ही सिमट कर रह गया और अभी तक न तो चारागाह विकसित हो पाए हैं, न ही जमीन को अतिक्रमण से बचाने की कोशिश की जा रही है।
”सोनचिरैया अभयारण्य में अभी प्राकृतिक रहवास को बेहतर करने का काम किया जा रहा है। तब स्थितियां अनुकूूल होंगी तभी सोन चिरैया रह पाएगी। इसके चारागाह तैयार किए जा रहे हैं। जरूरी काम पूरे होने पर सोन चिरैया लाने की प्रक्रिया पूरी कराई जाएगी।”
बृजेन्द्र श्रीवास्तव, डीएफओ ग्वालियर

इकलौता सोनचिरैया अभयारण्य

हाईटेंशन लाइन : हाईटेंशन लाइन को सबसे प्रमुख वजह माना जाता है। यही कारण है कि इस मामले में शीर्ष अदालत ने सोनचिरैया को संरक्षित करने के लिए राजस्थान व गुजरात में केबल को भूमिगत करने का आदेश दिया था। इस पर केंद्र की तरफ से इस आदेश को शिथिल करने का आवेदन दिया गया है।
अवैध खनन : ग्वालियर में इसकी बड़ी वजह पत्थर माफिया रहा। इसकी वजह से अभयारण्य क्षेत्र में अवैध खुदाई की गई जिससे सोनचिरैया का संरक्षित स्थल ही उसके लिए खतरा बन गया। पत्थर निकालने विस्फोट करने और गहरी खाइयां बन जाने से यह क्षेत्र सोनचिरैया के अनुकूल नहीं रहा।
मौसम : विशेषज्ञों की मानें तो सोनचिरैया के लिए अच्छा मौसम और अनुकूल माहौल बेहद जरूरी होता है। इसी को देखकर वह प्रजनन करती है। अगर संरक्षित क्षेत्र में कम बारिश या उसके लिए उपयुक्त भोजन उपलब्ध नहीं होता है तो वह ब्रीडिंग बंद कर देती है।
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