'फागुन की फाग' में रंगों की फुहार
संस्कार मंजरी ग्वालियर और मप्र लेखक संघ के संयुक्त तत्वावधान में 'फागुन की फाग काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया।

ग्वालियर. सखी कैसे खेलूं मैं फाग, व्याकुल तन है, मन अनमन है, खतरे में आज अमन है, सखी कैसे खेलूं मैं फाग। कविता सुनाकर कवि सुबोध चतुर्वेदी ने श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। अवसर था संस्कार मंजरी ग्वालियर और मप्र लेखक संघ के संयुक्त तत्वावधान में 'फागुन की फाग काव्य गोष्ठी का। जिसमें मुख्य अतिथि के रूप में बृजेश श्रीवास्तव एवं विशिष्ट अतिथि लक्ष्मी नारायण गुप्ता उपस्थित रहे। कार्यक्रम की अध्यक्षता अनुरागी जी एवं राधा कृष्ण खेतान ने की। संस्कार मंत्री अध्यक्ष संध्या राम मोहन त्रिपाठी ने सभी कवियों का स्वागत किया। कार्यक्रम का संचालन प्रतिभा द्विवेदी ने किया एवं आभार सुरेंद्र कुशवाह ने व्यक्त किया।
इन्होंने सुनाई रचनाएं
बनकर नगर में सुबह का सूरज रहा करो
हर शख्स फैज पाए कुछ ऐसे जिया करो।
- मीत बनारसी
हरे बांस की बांसुरी, मेरे मन को करे बेचैन।
सात स्वरों की रागिनी, मन में बसे दिन रैन।।
-पुष्पा मिश्रा
चिराग जलाओ तो कोई बात बने,
आप मुस्कुराओ तो कोई बात बने।
-डॉ मुक्ता सिकरवार
हर सिंगार हंसने लगा, मुस्काई कचनार,
फ ागुन रसमय हो गया, ये सारा संसार।
- प्रतिभा द्विवेदी
क्यूं अपनी मुस्कानों को हमने पीर बना ड़ाला,
पावन यमुना को इन आंखों का नीर बना डाला,
जहां साथ मनाया करते थे हम दीवाली और ईद,
उस अपनी दिल्ली को क्यूं कश्मीर बना ड़ाला।
-आलोक शर्मा
निजी मसला तुम्हारा है जमीं पर क्या उगाओगे,
हरी कर दोगे या बंजर यहां क्या छोड़ जाओगे।
-आशा पाण्डे
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