न्यायमूर्ति जीएस अहलूवालिया ने पुलिस महानिदेशक द्वारा प्रस्तुत जवाब पर विचार करने के बाद यह निर्देश दिए। न्यायालय ने पूछा था कि क्या जांच के दौरान अधिकारियों ने सामान्य लापरवाही बरती है या आपराधिक षड्यंत्र किया है। इस पर डीजीपी ने प्रस्तुत जवाब में कहा था कि अधिकारियों द्वारा कार्य में लापरवाही बरती गई है। न्यायालय ने जवाब पर विचार करते हुए तथा प्रकरण के तथ्यों को देखते हुए उक्त निर्देश दिए हैं।
न्यायालय ने डीजीपी से पूछा था कि कहीं ऐसा तो नहीं है कि आरोपी को बचाने के लिए डायरी पेश नहीं की गई है। इसलिए इस मामले में विभागीय जांच के साथ क्या आपराधिक मामला दर्ज नहीं होना चाहिए। पुलिस ने पीडि़ता से जब्त की थी डायरीजमीन की ठगी के मामले में जांच के दौरान डॉ.अक्षरा गुप्ता से पुलिस ने उनकी निजी डायरी जब्त की थी, जिसमें जमीन की खरीद के एवज में किए गए भुगतान की जानकारी दी गई है।
डॉ. गुप्ता ने मुन्नालाल शर्मा, अनिल शर्मा व अन्य से भितरवार में 7 बीघा जमीन खरीदी थी। इसके एवज में उन्होंने 66 लाख रुपए का भुगतान भी किया था। उन्हें पता चला कि जो जमीन उन्होंने खरीदी है वह अनिल शर्मा की नहीं है। इसके बाद उनकी शिकायत पर आरोपियों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया। इस मामले में सतीश शर्मा ने न्यायालय में जमानत आवेदन प्रस्तुत किया था, जिस पर डॉ.गुप्ता की ओर से आपत्ति की गई। जिसमें उक्त तथ्य सामने आए कि पुलिस ने जब्त डायरी पेश ही नहीं की है।
11 अधिकारी व कर्मचारी पाए गए हैं दोषी
न्यायालय में प्रस्तुत जवाब में बताया गया कि जांच एएसपी से कराई गई है, जिसमें निरीक्षक पंकज त्यागी, धर्मेंद्र शिवहरे, रत्नेश यादव, रमेश शाक्य, संतोष सिंह यादव सहित 11 अधिकारी व कर्मचारियों को कार्य में लापरवाही बरतने का दोषी पाया गया है। इस रिपोर्ट को एडीजीपी को भेज कर सभी के खिलाफ विभागीय जांच की अनुमति मांगी गई है।