नल तरंग से निकले स्वर मैहर वाद्य वृंद द्वारा राग बसंत में विलंबित रचना पेश की, एक और रचना के बाद उन्होंने ग्वालियर और दतिया में लोकप्रिय बुंदेली धुन लेद सुनाई। नाल तरंग वादन डॉ. प्रभु दयाल द्विवेदी ने वायोलिन पर जीपी पाण्डेय, सुरेश चतुर्वेदी वाद वृंद प्रमुख इसराज, विजय कुमार शर्मा वायोलिन, रवीन्द्र भागवत व कमल किशोर माहौर तबला, गुणाकर सावले हारमोनियम, सौरभ कुमार चौरसिया, सितार, डॉ अशोक बढ़ोलिया तबला, बृजेन्द्र द्विवेदी सरोद, गौतम भारतीय हारमोनियम की प्रस्तुति दी। उस्ताद अलाउद्दीन खां साहब ने १९१८ में इस वाद्यवृन्द की स्थापना मैहर में बच्चों को संगीत से जोड़ा।
सरोद से झंकृत हो गए श्रोता
पद्मविभूषण अमजद अली खां के भाई उस्ताद रहमत अली खां गुरु शिष्य परंपरा के तहत सरोद सीख रहे ग्वालियर घराने के युवा सरोद वादक आमिर खां का सरोद वादन श्रोताओं के दिल को छू गया। उनके सरोद से निकले सुर मिठास लिए हुए थे। उन्होंने राग रामकली में आलाप जोड झाला और विलंबित तीन ताल में अपनी तैयारी का बखूबी प्रदर्शन किया। बिलंबित बंदिश आगरा घराने के उस्ताद फैयाज खां द्वारा रचित है। वादन का समापन एक दु्रत बंदिश के साथ किया। आमिर खां के साथ तबले पर उस्ताद सलीम अल्लाह वाले ने शानदार संगत की।
प्रकृति में समाया है रशिया संगीत रशिया से आए मिखैल युशैनिन के बांसुरी वादन से निकले सुरीले सुर कभी एेसा लगता जैसे किसी पाश्चात्य फिल्म का बैक ग्राउंड संगीत बज रहा हो तो कभी उनका संगीत लोक संगीत के करीब ले जा रहा था। विश्व संगीत की यह अब तक की श्रेष्ठ प्रस्तुति थी। भारतीय और रशियन बांसुरी में फर्क इतना है कि भारतीय बांसुरी बांस की होती है और रशियन बांसुरी धातु की होती है। एक बार तो उनकी एक धुन में एेसा लगा जैसे वे मेरा जूता है जापानी गीत की धुन बजा रहे हो। उनके साथ पियानों पर नागालैंड के देनेबो रिंता ने संगत की। उन्होंने रशिया की कई लोकधुने भी पेश की। सभा की शुरुआत महारुद्र मंडल संगीत महाविद्यालय के ध्रुपद गायन से हुई। जिसमें महाविद्यालय के शिक्षकों एवं आचार्यों ने राग भैरव में चौताल में ध्रुपद विष्णु चरणन प्रस्तुत किया।
नई दिल्ली से आए पंडित रामचतुर मलिक के शिक्ष्य नवल किशोर मलिक ने तानसेन द्वारा रचित राग मियां की तोड़ी में अपना ध्रुपद गायन पेश किया। उन्होंने राग चौताल में निबद्ध बंदिश मेरे तो अल्लाह नाम का गायन किया। इसके बाद उन्होंने राग भटियार में धमार प्रस्तुत किया जिसके बोल थे कुंज बिहारी राधा प्यारी । उनके साथ उनके पुत्र नीलेश कुमार व निकेश कुमार ने संगत की जबकि पखावज पर दिल्ली के नीलेश कुमार झा ने संगत की।
रात्रिकालीन सभा का आगाज राजा मानसिंह संगीत विश्वविद्यालय के शिक्षक एवं छात्र-छात्राआंे के ध्रुपद गायन से हुआ उन्होंने राग बिहाग में ताल चौताल में रचना प्रस्तुत की जिसके बोल थे प्रथम नाद सरस्वती, गणपति, संगीत निर्देशन विभागाध्यक्ष डॉ रंजना टोणपे का था। हारमोनियम पर विवेक जैन ने पखावज पर जयवंत गायकवाड व सारंगी पर अब्दुल हमीद खां ने संगत की। इसके बाद दिल्ली से आए सुरेश गंधर्व ने राग यमन में अपना गायन पेश किया। रात्रि के प्रथम प्रहर के इस राग में बडा ख्याल के बोल थे कजरा कैसे डारुं पिया नहीं आए व छोटा ख्याल पिया की नजरिया जादू भरी प्रस्तुत किया। उनके साथ तबले पर उस्ताद अख्तर हुसैन और हारमोनियम पर जाकिर धौलपुरी ने संगत की।
मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ की कर्नाटक के संगीतज्ञों से जुड़ी एकमात्र वायोलिन वादिका दुर्गा शर्मा जो कि ख्याल अंग की वादन शैली में विशेषज्ञता रखती है उनका वादन दक्षता से परिपूर्ण था, लेकिन वायोलिन के बार-बार उतरने से वादन में परेशानी हो रही थी। इस कारण एक-दो स्वर अपना स्थान नहीं ले पा रहे थे। उन्होंने राग चारुकेशी में एक ताल में विलंबित रचना प्रस्तुत की। दक्षिण भारत का राग है जो उत्तर-दक्षिण को जोड़ता है। उनके साथ तबले पर भोगीराम रतोनिया ने संगत की। उन्होंने अपने वादन का समापन राग देश में एक धुन से किया।
इंदौर की सुविख्यात गायिका कल्पना झोकरकर ने राग जौगकौंस में अपना गायन पेश किया । उन्होंने विलंबित रचना मंगल तेरो आयो के बाद द्रुत रचना फिर एक टप्पा पेश किया। उन्होंने अपने कार्यक्रम का समापन एक बंदिश से किया। उनके गायन से श्रोता मंत्रमुग्ध हो गए।उनके साथ तबले पर उल्हास राजहंस ने व हारमोनियम पर विजय बंसोड ने संगत की।
ध्रुपद गायक अफजल हुसैन ने अपना गायन पेश किया। उन्होंने राग चन्द्रकौंस में धमार चलो सखी बृज में धूम मची की प्रस्तुति दी। उनके साथ पखावज पर अखिलेश गुंदेचा ने संगत की। उन्होंने अपने गायन का समापन राग सोहनी में एक बंदिश आवन कह गए अजहुन आए से की।
ग्वालियर घराने के गायक विजय सप्रे ने अपने गायन की शुरुआत मालकौंस से की। उन्होंने अपने गुरु राम मराठे की बंदिश संतन के पग धरिए की सुंदर प्रस्तुति दी। इसके बाद उन्होंने ग्वालियर घराने की दिन निकत बीते जाते हैं की प्रस्तुति दी। उन्होंने अपने गायन का समापन एक भजन सियाराम बिना दुख कौन हरे की प्रस्तुति दी।