ग्वालियर

मेडिकल स्टोरों से गायब हुई टीबी की दवा, मरीजों से हो रहा विवाद

मरीज का रिकॉर्ड रखने के झंझट से बचने स्टोर नहीं रख रहे दवा

ग्वालियरSep 03, 2018 / 06:45 pm

प्रशांत शर्मा

मेडिकल स्टोरों से गायब हुई टीबी की दवा, मरीजों से हो रहा विवाद

ग्वालियर। पिछले दिनों टीबी की दबा बेचने पर मरीज का रिकॉर्ड रखने का आदेश टीबी मरीजों के लिए परेशानी भरा साबित हो रहा है। आदेश आने के बाद मेडिकल स्टोर संचालकों ने परेशानी से बचने के लिए दबा ही रखना बंद कर दिया है। ऐसे में जब डॉक्टर दबा लिखते हैं तो वह मेेडिकल स्टोर संचालकों पर उपलब्ध नहीं होती। जिसके चलते मरीजों का डॉक्टर के साथ-साथ मेडिकल स्टोर संचालकों से झगड़ा हो रहा है। लेकिन मेडिकल स्टोर संचालकों का कहना है कि अगर रिकॉर्ड जरा भी इधर से उधर हो गया तो सजा कौन भुगतेगा, इससे अच्छा है कि हम दवा रखें ही नहीं। गौरतलब है कि जो मेडिकल स्टोर मरीज की जानकारी दिए बिना दबा बेचेगा उसे 2 साल तक की सजा का प्रावधान है।
देश को 2025 तक टीबी से मुक्त कराने के उद्देश्य से सरकार ने 1 साल पहले आदेश जारी किए थे कि मेडिकल स्टोर संचालक मरीज के आधार कार्ड, बैंक खाता व मोबाइल नंबर व अन्य जानकारी लिए बिना उन्हें दवा न बेचें। इस रिकॉर्ड को जिम्मेदार अधिकारी कभी भी चेक कर सकते हैं। इस आदेश पर पिछले तीन माह से सख्ती बरती जा रही है। सख्ती बरतने के चलते अब हालात यह हो गए हैं कि मेडिकल स्टोर संचालकों ने पचड़ों से बचने से लिए टीबी की दवा ही रखना बंद कर दिया है। जब इस संबंध में कुछ मेडिकल स्टोर संचालकों से बात की गई तो उन्होंने कहा कि वह मरीज का रिकॉर्ड कहां तक रखेंगे। ऐसे में अगर कोई भूल हो गई तो सजा हो सकती है।
यह थे आदेश
-मेडिकल स्टोर्स में खुलेआम नहीं बेची जा सकेगी टीबी की दवाई, लेनी होगी इजाजत
– जिस मरीज को दवा बेचेंगे, उसकी पूरी जानकारी दवा दुकानदारों को देना होगा जरूरी
– ड्रग इंस्पेक्टर और सुपरवाइजर करेंगे मॉनिटरिंग, टीबी डिपार्टमेंट ने जारी किए गाइडलाइन
सुपरवाइजर कर रहे निगरानी
टीबी के इलाज में दी जाने वाली रिफांपसीन दवा लेप्रोसी के ट्रीटमेंट में भी इस्तेमाल की जाती है. ऐसे में इस दवा की बिक्री पर रोक नहीं लगाई जा सकती, लेकिन मेडिकल स्टोर वालों को यह बताना होगा कि ये दवा किस मरीज को दी गई है. इस बाबत निगरानी के लिए जोनल स्तर पर सुपरवाइजरों को तैनात किया गया है, जो आन द स्पॉट मेडिकल शॉप्स में जाकर यह वेरीफाई करेंगे कि दवा टीबी के मरीज को ही दी गई है अथवा किसी और को. वहीं दवा दुकानदारों पर नजर रखने की जिम्मेवारी ड्रग इंस्पेक्टरों के कंधों पर होगी. हर जोन के ड्रग इंस्पेक्टर्स को सख्त निर्देश दिया गया है. उन्हें दवा दुकानों के बारे में बताना होगा कि किस-किस दुकान में टीबी की दवा बिक रही है.
2025 में टीबी को करना है जड़ से खत्म
हर साल मरीजों की बढ़ती संख्या को देखते हुए स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों की चिंता बढ़ गई है. ऐसे में डॉट सेंटर के अलावा प्राइवेट सेंटरों में आने वाले टीबी मरीजों का भी डिटेल डिपार्टमेंट के पास उपलब्ध हो, इसके लिए कई कदम उठाए जा रहे हैं. गौरतलब है कि 2025 तक टीबी का नामों निशान खत्म करने की तैयारी है.
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