टीबी (ट्यूबर क्लोसिस) एक गंभीर संक्रामक और बैक्टीरिया जनित बीमारी है, जो फेफड़ों को प्रभावित करती है, यह जानलेवा हो सकती है। कभी लाइलाज मानी जाने वाली इस बीमारी का इलाज अब सहज उपलब्ध है। राष्ट्रीय मुहिम के तहत सरकार ने वर्ष 2025 तक देश को टीबी मुक्त करने का लक्ष्य रखा है, लेकिन टीबी के मरीजों और उन्हें दवा देने वाले कर्मियों के साथ अमानवीय व्यवहार से सवाल खड़े होते हैं कि ऐसे में लक्ष्य कैसे पूर्ण होगा।
सूत्रों ने बताया कि डॉट्स कार्यक्रम के तहत टीबी के मरीजों को सरकार द्वारा नि:शुल्क दवा दी जाती है। स्वास्थ्य विभाग की जनकगंज सिविल डिस्पेंसरी में मरीजों को देने के लिए एक टीबी हेल्थ विजिटर दिनरंजन श्रीवास्तव को पदस्थ किया है, उसे डिस्पेंसरी के बाहर ही खड़ा किया जाता है। मरीजों को भी मजबूरन तेज धूप और गर्मी में दवा खानी पड़ती है। टीबी विजिटर को पहले डिस्पेंसरी में ही बैठक मरीजों को दवाई देने की व्यवस्था थी, लेकिन डिस्पेंसरी में निर्माण कार्य की आड़ में टीबी के मरीज और उन्हें दवा देने वाले कर्मचारी को अस्पताल से बाहर कर दिया।
गेट पर ही भरी दोपहरी में टीबी के मरीजों को दवा देनी पड़ती है। स्टोर कीपर मुझे अंदर नहीं आने देते, इसकी मैं शिकायत डिस्पेंसरी प्रभारी से कर चुका हूं, जिस पर कुर्सी टेबल देने का आश्वासन मिला है।
दिनरंजन श्रीवास्तव, टीबी हेल्थ विजिटर