पूजा ने बताया कि शादी के बाद मैंने कई ऐसी महिलाओं को देखा जो रोजगार के लिए यहां वहां भटक रही थीं, लेकिन उन्हें सही दिशा नहीं मिल पा रही थी। ऐसी महिलाओं को देखते हुए मैंने एक संस्था ‘पहल’ की शुरुआत की। आज मेरे साथ महिलाओं की पूरी टीम है, जो थैले, पर्स, सूट बनाने में माहिर हैं। वह अब सशक्त बन चुकी हैं।
आज 50 महिलाओं का समूह कर रहा काम
महिलाओं के बने प्रोडक्ट को सबसे ज्यादा परेशानी बाजार में बेचने में आई, लेकिन धीरे-धीरे मेहनत की और वह भी सॉल्व हो गया। जैसे-जैसे माल बना, बिका, वैसे-वैसे उन महिलाओं को पैसा मिलता गया। एक के बाद एक आज 50 से अधिक महिलाओं का समूह काम कर रहा है। बैग बनाने के साथ ही वे वेस्ट से बेस्ट बनाने में भी माहिर हो गई हैं।
महिलाओं के बने प्रोडक्ट को सबसे ज्यादा परेशानी बाजार में बेचने में आई, लेकिन धीरे-धीरे मेहनत की और वह भी सॉल्व हो गया। जैसे-जैसे माल बना, बिका, वैसे-वैसे उन महिलाओं को पैसा मिलता गया। एक के बाद एक आज 50 से अधिक महिलाओं का समूह काम कर रहा है। बैग बनाने के साथ ही वे वेस्ट से बेस्ट बनाने में भी माहिर हो गई हैं।
कोविड काल में मिला फायदा
कोविड काल में जब शहर लॉक था। उस समय इन महिलाओं की बचत काम आई। बैग से कमाया पैसा से घर परिवार चल सका। क्योंकि पति का काम धंधा सब बंद हो गया था। लंबे समय तक परिवार ने बैठकर खाया। यही कारण है कि दुख के समय काम आया यह प्रशिक्षण अब वह कभी छोडऩा नहीं चाहतीं।
कोविड काल में जब शहर लॉक था। उस समय इन महिलाओं की बचत काम आई। बैग से कमाया पैसा से घर परिवार चल सका। क्योंकि पति का काम धंधा सब बंद हो गया था। लंबे समय तक परिवार ने बैठकर खाया। यही कारण है कि दुख के समय काम आया यह प्रशिक्षण अब वह कभी छोडऩा नहीं चाहतीं।
उनके चेहरे की खुशी मुझे देती है सुकून
पूजा बताती हैं कि मेरी शादी को अभी छह साल हुए। कॉलेज टाइम से मैं जरूरतमंद महिलाओं के लिए कुछ करना चाहती थी, जो अब अपने परिवार की मदद से कर पा रही हूं। महिलाओं के चेहरे पर जब मैं खुशी देखती हूं तो मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहता।
पूजा बताती हैं कि मेरी शादी को अभी छह साल हुए। कॉलेज टाइम से मैं जरूरतमंद महिलाओं के लिए कुछ करना चाहती थी, जो अब अपने परिवार की मदद से कर पा रही हूं। महिलाओं के चेहरे पर जब मैं खुशी देखती हूं तो मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहता।