ऐसा कहा जाता है कि करीब हजार साल पहले ग्वालियर में दक्षिण की राजकुमारी को दक्षिण के ही एक धनाढ्य व्यापारी ने तेली मंदिर में आयोजित एक महोत्सव के दौरान प्रपोज किया था। हालांकि इसका कोई ऐतिहासिक दस्तावेजी प्रमाण नहीं हैं। इसके कुछ उल्लेख तैलीय चैट्टम से जुड़े दक्षिण भारतीय साहित्य में जरूर बताए जाते हैं। तेली मंदिर में उस महोत्सव से जुड़े स्थापत्य के प्रतीक मौजूद हैं। खुद मुख्य तेली मंदिर में उत्कीर्ण प्रतिमाएं प्रेम महोत्सव की साक्षी हैं। समूचे उत्तर भारत में तेली का मंदिर इकलौता ऐसा मंदिर है, जो द्रविड़ शैली का है। इसका निर्माण किसी स्थानीय राजा-महाराजा ने नहीं कराया है। तेल व्यापारियों के एक संघ ने कर राशि में से कुछ हिस्से का प्रयोग कर इस मंदिर का निर्माण कराया था। कहा जाता है कि इस मंदिर के लोकार्पण के लिए संभवत: दक्षिण का एक राज परिवार आया था। महाभारत काल से जुड़े कुछ साहित्यों में केरल के एक राजपरिवार का संबंध मुरैना के पोरसा से भी बताया जाता है।
हालंाकि ऐतिहासिक दस्तावेज में इसका उल्लेख नहीं है। पर्यटन एक्सपर्ट डॉ. चंद्रशेखर बरुआ के मुताबिक ये मंदिर उत्तर दक्षिण भारत का मिलन स्थल और महोत्सव का प्रतीक जरूर है। हालांकि उन्होंने किसी राजकुमारी के प्रपोज से जुड़े घटनाक्रम की पुष्टि नहीं की। वैलेंटाइन सप्ताह की चढ़ी खुमारी में तो ये बताना उचित होगा कि प्रेम हमारे जन जीवन में उत्सव की तरह है। पश्चिम संस्कृति की तरह विशेष अवसर नहीं।