फूलबाग पर गुब्बारे बेचकर गुजर बसर करने वाली सुनीता और उनका परिवार कहता है, लॉकडाउन लगा है। सब कुछ बंद है। खाने के लिए जो कुछ था वह लॉकडाउन के पहले दिन खत्म हो गया। अब खाली हाथ हैं। इसलिए भूखे सोते हैं और उसी हाल में उठकर किसी तरह दिन काटते हैं। यहां तक की पानी का इंतजाम भी मुश्किल हो रहा है। सुनीता का कहना है कि उनकी तरह फूलबाग पर कई परिवार हैं। कोई तो हमारे बारे में भी सोचो, बच्चे भूख से बिलखते हैं। उनका पेट भरने के लिए आसपास की कॉलोनी में आटा, दाल मांगने भी गए तो लोगों ने दरवाजे नहीं खोले। अब क्या करें। सरकारी विभाग या समाज सेवी कोई मदद के लिए नहीं आया है। समझ में नहीं आता अभी लॉकडाउन में चार दिन और बाकी हैं कैसे जिंदा रहेंगे। सुनीता की पड़ोसन की भी यही परेशानी थी, उनका कहना था बच्चे भूखे हैं। कैसे जिएं क्या खाएं कुछ समझ में नहीं आ रहा है। कोरोना से तो बचे हैं लेकिन भूख से मर जाएंगे। एक गाड़ी वाला था 10 रुपए में बच्चों को चावल, दाल दे जाता था। लॉकडाउन में उसका आना भी बंद हो गया है। हमारा गांव भी दूर है। वहां जाने की स्थिति नहीं है। क्या करें कुछ समझ में नहीं आ रहा है।
पड़ाव के नए आरओबी के नीचे, फूलबाग, गोला का मंदिर, कटोराताल के पास, एबी रोड, शिवपुरी लिंक रोड, अचलेश्वर, महाराज बाड़ा, खेड़ापति रोड सहित भिंड रोड सहित शहर में कई जगहों पर ऐसे परिवार सड़क किनारे गुजर बसर कर रहे हैं। उनका कहना है कि रोज जो कमाते हैं उससे ही खाते हैं। कोरोना से बचने के लिए काम बंद है तो बर्तन और पेट दोनों खाली हो चुके हैं।
पहले फेज में यह थे इंतजाम
कोरोना के पहले फेज में प्रशासन ने गरीबों के लिए खाने का इंतजाम किया था। इसके अलावा समाज सेवी भी आगे बढ़कर बेसहाराओं और जानवरों तक के लिए खाने का इंतजाम कर रहे थे।