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पान की खेती करने वाले अब रह गए दस, बर्बाद हो गया किसान

locationग्वालियरPublished: Jan 25, 2018 06:31:14 pm

Submitted by:

shyamendra parihar

पानी की कमी के चलते पान की खेती हो गई बर्बाद, सरकार के पास खेती बचाने की कोई योजना नहीं

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ग्वालियर. कभी बिलौआ में 1000 हजार पान के किसान थे अब सिर्फ 10 किसान ही पान की खेती कर रहे हैं। बिगड़ते पर्यावरण व पानी की कमी ने पान की खेती को बर्बाद कर दिया है।पान की फरवरी मार्च में बोवनी की जाती है। पान की बोवनी मैं कलम लगाई जाती है जिस कलम को धान की घास से ढका जाता है और 1 दिन में तीन बार पानी के छींटे इस पर दिए जाते हैं।
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यह क्रम 2 माह तक रहता है उसके बाद इसमें हर 2 दिन के बाद पानी दिया जाता है और 4 माह में इसकी वेल बनने लगती है जब बेल 4 से 5 फुट की लंबाई पर एक लकड़ी के सहारे ऊपर पहुंचाई जाती है पान की बेल को नागवेल भी कहा जाता है जब वह अपनी लंबाई पूर्ण कर लेती है तब उसमें से पान तोडऩा शुरू हो जाता है पान की तुडाई केवल वर्ष में दो या तीन बारी की जाती है।
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इसलिए किसानों का रुझान हो गया कम

पान की खेती खत्म होने के कारण पहला कारण सन 1996 में बर्फ पढऩे इसके कारण सारे बिलौआ नगर की पान की खेती खेती नष्ट हो गई थी। इसके बाद बारिश न होने से वर्षा का स्तर घटता चला गया और वर्ष 2002 से लेकर 2004 तक लगातार 3 वर्षों तक पान की खेती में पान बरेजा में पर्याप्त पानी ना मिलने की वजह से खेती पूरी तरह नष्ट हो गई
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किसानों ने जो अपनी जमा पूंजी और कर्ज से लेकर पान की खेती की थी वह लगातार 3 वर्ष तक खराब होती चली गई इससे पान की खेती करने वालों की कमर लगभग टूट गई और उन्होंने पूरी तरह से पान की खेती को बंद कर दूसरी खेती को अपना लिया है।
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झांसी, आगरा और अलीगढ़ में मांग

पूर्व में बिलौआ का पान पाकिस्तान तक जाता था बिलौआ में पूर्व से ही देसी पान की पैदावार की जाती रही ह।ै पान की किस्म देसी बंगला, कपूरी, बनारसी, मिठुआ है। सबसे महंगा मिठुआ और सबसे सस्ता कपूरी पान है। बिलौआ के देसी पान की मांग सबसे ज्यादा रही है। बिलौआ के पानी की मांग झांसी, आगरा, अलीगढ़, मेरठ और समेत अन्य शहरों में आज भी बनी हुई है । लेकिन पान की कम आवक के अभाव में बिलौआ के किसान बरई संदलपुर से पान मंगाकर इस मांग को पूरा करते हैं।
पान उत्पादक किसानों के लिए उद्यानिकी विभाग में खेती की लागत पर सब्सिडी की योजना है। अगर किसान 500 वर्ग मीटर में पान की खेती करता है तो उस पर 1 लाख 20 हजार की लागत की 35 प्रतिशत सब्सिडी विभाग देता है।
सुरेन्द्र सिंह तोमर, सहायक संचालक, उद्यानिकी विभाग
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