सस्टेनेबिलिटी फैशन स्टेटमेंट नहीं कहा जा सकता
वेबिनार के दौरान फस्र्ट ईयर के स्टूडेंट मनु और अंकेश ने पोस्टर द्वारा पर्यावरण को बचाने का संदेश दिया। थर्ड ईयर की स्टूडेंट स्वानीत ने अर्बन एग्रीकल्चर और चंद्रिका ने कल्चरल सस्टेनेबिलिटी का महत्व बताया। इस मौके पर स्कूल ऑफ आर्किटेक्चर की डीन प्रो रेबेका जादौन ने कहा कि सस्टेनेबिलिटी फैशन स्टेटमेंट नहीं कहा जा सकता। ये जीने का ही एक तरीका होना चाहिए। वेबिनार के आखिर में आभार प्रदर्शन आर्किटेक्चर अंजलि गुप्ता ने किया।
पर्यावरण के प्रति लोगों की बदली सोच
पर्यावरण के प्रति अब लोगों की सोच बदली है। इसलिए भारत में अब ग्रीन बिल्डिंग का ट्रेंड तेजी से उभर रहा है। एक्सपर्ट श्रीवार्सिनी ने कहा कि अधिक से अधिक घरों को लोग ईकोफ्रेंडली और सस्टेनेबल हाउस की ओर ले जा रहे हैं। वे ऐसे ही घर अब बनाने की इच्छा रखते हैं, जो जेब के लिये अच्छे हैं, उनके स्वास्थ्य के लिये अच्छा है और वास्तु के हिसाब से भी बेहतर है। ईकोफें्रडली होम को किसी अन्य नवनिर्मित आवास से अलग नहीं दिखते बल्कि ज्यादा खूबसूरत और प्रकृति के करीब लगते हैं।
30-40 फीसदी बिजली और 30-70 फीसदी पानी की बचत
एक्सपर्ट ने बताया कि अंतरराष्ट्रीय उर्जा एजेंसी के मुताबिक 40 प्रतिशत बिजली की खपत और 24 प्रतिशत कार्बन डाईऑक्साइड उत्सर्जन के लिए परंपरागत तरीके से निर्मित हो रहीं बिल्डिंग जिम्मेदार हैं। ऐसे में अपने नाम के अनुरूप ग्रीन बिल्डिंग वह इमारतें हैं, जो निर्माण के दौरान न केवल पर्यावरण को कम से कम नुकसान पहुंचाती हैं, बल्कि इन भवनों के निर्माण में साधारण भवनों की तुलना में कम पानी लगता है, प्राकृतिक ऊर्जा का ज्यादा उपयोग होता, प्राकृतिक संसाधनों की बचत होती है, कम से कम वेस्ट उत्पन्न होता है और रहने वालों को स्वस्थ वातावरण मिलता है। ग्रीन बिल्डिंग एक साधारण घर के मुकाबले 30 से 40 फीसदी बिजली की बचत करता है। वहीं 30 से 70 फीसदी तक पानी की बचत भी करता है।