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हमारे योग को विश्व ने अपनाया, सिंधु घाटी सभ्यता की खुदाई में भी प्रमाण

locationग्वालियरPublished: Jan 20, 2019 07:02:28 pm

Submitted by:

Harish kushwah

सिंधु घाटी सभ्यता में खुदाई से योगासन की विभिन्न मुद्राओं की मूर्तियां प्राप्त हुई हैं जिससे इसकी गरिमा का पता चलता है। योग 11500 वर्ष पुराना है तथा इसके उल्लेख श्रीमदभगवत गीता तथा रामायण में भी हुआ है। भारत में योग दर्शन से अब अंतरराष्ट्रीय जगत भी लाभान्वित हो रहा है।

National conference

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ग्वालियर. सिंधु घाटी सभ्यता में खुदाई से योगासन की विभिन्न मुद्राओं की मूर्तियां प्राप्त हुई हैं जिससे इसकी गरिमा का पता चलता है। योग 11500 वर्ष पुराना है तथा इसके उल्लेख श्रीमदभगवत गीता तथा रामायण में भी हुआ है। भारत में योग दर्शन से अब अंतरराष्ट्रीय जगत भी लाभान्वित हो रहा है। इसका प्रमाण है कि भारत के प्रयासों से संयुक्त राष्ट्र ने 21 जून को योग दिवस मनाना प्रारम्भ कर दिया है। यह बात मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित भारतीय योग संस्थान दिल्ली के जनरल सेक्रेटरी देशराज ने दो दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन के शुभारंभ अवसर पर कही। यह सेमिनार जीवाजी यूनिवर्सिटी के योगिक विज्ञान केंद्र की ओर से गालव सभागार में आयोजित किया जा रहा है। कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के रूप में सवयस योग विश्वविद्यालय बेंगलुरु के प्रो. एमके श्रीधर गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय के डीन प्रो. ईश्वर भारद्वाज मौजूद रहे। अध्यक्षता जीवाजी विश्वविध्यालय की कुलपति प्रो. संगीता शुक्ला ने की।
सही तरीके से नहीं हो रहा योग का प्रस्तुतिकरण

कार्यक्रम की अगली कड़ी में देशराज ने बताया कि विभिन्न महाविद्यालयों तथा विश्वविद्यालयों में योग शिक्षण से यह विद्या अगली पीढ़ी को हस्तांतरित तो हो रही है। परंतु इसका प्रस्तुतीकरण काफ ी अलग तरह से किया जा रहा है। योग को वर्तमान में एक उपचारात्मक पैथी के तौर पर ही देखा जा रहा है, जबकि योग का आध्यात्मिक व मनौवैज्ञानिक महत्व कहीं अधिक है। कार्यक्रम के अगले तकनीकी सत्र में श्रीधर द्वारा ध्यान, धारणा, समाधि व मन की चंचलता को योग से एकाग्र करने की विधि पर प्रकाश डाला गया।
योग से व्यक्ति की सोच में सुधार

देशराज ने बताया कि मनरूक्षेत्र की विषमता को समता में बदलने की जो कला है, उसे योग कहते हैं। योग से मनुष्य में समत्व की भावना का विकास होता है। उन्होंने बताया कि योग सिर्फ आसनों व प्राणायामों तक ही सीमित नहीं होता, बल्कि योग से व्यक्तित्व में कुशलता का भी विकास भी होता है। योग से व्यक्ति की सोच में सुधार होता है। लोगों में व्यव्हार करने की कला का विकास होता है। इसके अतिरिक्त मनुष्य के कर्मों, संस्कारों, वृत्तियों व मनोभावों में सकारात्मक गुणों का समावेश होने लग जाता है।

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