सही तरीके से नहीं हो रहा योग का प्रस्तुतिकरण कार्यक्रम की अगली कड़ी में देशराज ने बताया कि विभिन्न महाविद्यालयों तथा विश्वविद्यालयों में योग शिक्षण से यह विद्या अगली पीढ़ी को हस्तांतरित तो हो रही है। परंतु इसका प्रस्तुतीकरण काफ ी अलग तरह से किया जा रहा है। योग को वर्तमान में एक उपचारात्मक पैथी के तौर पर ही देखा जा रहा है, जबकि योग का आध्यात्मिक व मनौवैज्ञानिक महत्व कहीं अधिक है। कार्यक्रम के अगले तकनीकी सत्र में श्रीधर द्वारा ध्यान, धारणा, समाधि व मन की चंचलता को योग से एकाग्र करने की विधि पर प्रकाश डाला गया।
योग से व्यक्ति की सोच में सुधार देशराज ने बताया कि मनरूक्षेत्र की विषमता को समता में बदलने की जो कला है, उसे योग कहते हैं। योग से मनुष्य में समत्व की भावना का विकास होता है। उन्होंने बताया कि योग सिर्फ आसनों व प्राणायामों तक ही सीमित नहीं होता, बल्कि योग से व्यक्तित्व में कुशलता का भी विकास भी होता है। योग से व्यक्ति की सोच में सुधार होता है। लोगों में व्यव्हार करने की कला का विकास होता है। इसके अतिरिक्त मनुष्य के कर्मों, संस्कारों, वृत्तियों व मनोभावों में सकारात्मक गुणों का समावेश होने लग जाता है।