• बालाजी धाम काली माता मंदिर के ज्योतिषाचार्य डॉ. सतीश सोनी के अनुसार मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को काल भैरव का जन्म शिव के अंश के रूप में हुआ था। भगवान काल भैरव को दंडावती भी कहा जाता है। देवी के 52 शक्तिपीठों की रक्षा भी काल भैरव अपने 52 स्वरूपों में करते हैं। अष्टमी तिथि 27 नवंबर शाम 5.43 से प्रारंभ होकर 28 नवंबर सुबह छह बजे तक रहेगी। काल भैरव जयंती पर पदम नामक योग रहेगा।
काल भैरव के पूजन से मिलता है तत्काल फल
काल भैरव का नाम उच्चारण, जाप, आरती फल तत्काल ही मिलता है, मनुष्य की दैहिक, दैविक, भौतिक एवं आर्थिक समस्याएं समाप्त हो जाती हैं। कलयुग में हनुमान जी के अलावा काल भैरव की पूजा उपासना ही तत्काल प्रभाव को देने वाली बताई गई है।
शत्रु पर विजय प्राप्त होगी
लाल किताब के अनुसार काल भैरव को शनि का अधिपति देव बताया गया है, और शनि पीड़ा से मुक्ति के लिए एवं राहु, केतु से प्राप्त हुई पीड़ा और कष्ट की मुक्ति के लिए भैरव उपासना से ही बढ़कर कोई दूसरा उपाय नहीं है। शत्रु की पीड़ा के नाश में भी काल भैरव सर्वोपरि है और कभी-कभी तो देखने में आता है कि शत्रु अपने शत्रु भाव को त्याग कर मित्र भाव में आ जाते हैं। भगवान भैरव को फूलमाला, नारियल, दही बड़ा, इमरती, पान, मदिरा, सिंदूर, धूपबत्ती, अगरबत्ती, दीप, चांदी का वर्क आदि अर्पित करने से काल भैरव प्रसन्न होते हैं। वही बटुक भैरव पंजर का पाठ करने से शरीर की रक्षा, लक्ष्मी प्राप्ति, गृह बाधा, शत्रु नाश और सर्वत्र विजय प्राप्त होती है।
सराफा बाजार में है 118 साल प्राचीन मंदिर
ग्वालियर में वैसे तो काल भैरव के कई मंदिर हैं, लेकिन सबसे पुराना मंदिर बक्षराज का बाड़ा सराफा बाजार में है। यह मंदिर 118 साल पुराना बताया जाता है। यहां भैरव अष्टमी पर काफी संख्या में श्रद्धालु दर्शन करने पहुंचते हैं। इसके अलावा बालाजी धाम गरगज कॉलोनी बहोड़ापुर, माधौगंज, कटी घाटी व थाटीपुर में भी भैरव मंदिर हैं।