एक्सपर्ट के अनुसार सिलिका खनिज पदार्थ कठोर होता है, जो सीसे को भी खुरच सकता है। यह नर्मदा नदी और हिमालय की तरफ से आने वाली नदियों की रेत में अधिक मात्रा में होता है। उक्त स्थानों से आई रेत को प्लांट के फिल्टर मीडिया के रूप में उपयोग किया जाता है।
पानी को साफ करने के लिए प्लांट पर कई प्रकार के कैमिकल का उपयोग किया जाता है, जो एसिड की तरह काम करते हैं। सामान्य रेत कैमिकल के सामने टिक नहीं पाती और घुल कर तेजी से खत्म होने लगती है, इसके चलते फिल्टर मीडिया में सामान्य रेत का उपयोग नहीं किया जाता, इसके लिए होशंगाबाद और चंड़ीगढ़ से सिलिका की करीब 70 से 80 प्रतिशत मात्रा वाली रेत को ही मंगाया जाता है। इसी प्रकार अन्य पत्थरों के कण जो नदियों से बहरकर आते हैं, उनका भी फिल्टर मीडिया में उपयोग किया जाता है।
उक्त फिल्टर मीडया को बदलने में 15 से 20 लाख रुपए का खर्च बताया गया है। जारी किया है नोटिस
अमृत योजना का काम देख रही कंपनी को नोटिस जारी किया गया है कि वह लैब से टेस्ट कराकर रिपोर्ट लाए, तब तक पुराने फिल्टर मीडिया को नहीं बदला जा सकता। कार्य में लापरवाही बरतने पर संबंधित के खिलाफ कार्रवाई करेंगे।
आरएलएस मौर्य, अधीक्षण यंत्री पीएचई।
करा रहे हैं जांच
शहर में स्थित लैबों में इसकी जांच नहीं हो पा रही है, इसलिए जांच कराने के लिए रेत को बाहर भेजा है। रिपोर्ट आने के बाद काम शुरू हो जाएगा। यह रेत होशंगाबाद से हमने मंगाई है, सभी 22 फिल्टर मीडिया को बदलने में करीब तीन माह का समय लग जाएगा।
दिलीप शर्मा, प्रोजेक्ट मैनेजर पुंगलिया कंपनी अमृत योजना