ग्वालियर से चलने वाली सभी ट्रेनों में धुलाई के बाद पानी भी भरा जाता है। यार्ड में धुलने वाली ट्रेनों के एक कोच में लगभग डेढ़ सौ लीटर पानी लग जाता है। इसके बाद हर कोच के टॉयलेट के लिए लगभग 1800 लीटर पानी भरा भी जाता है।
ग्वालियर से लगभग 11 ट्रेनें इन दिनों चल रही हैं। जिसमें अहमदाबाद और ताज एक्सप्रेस अभी कुछ माह पहले ही ग्वालियर से शुरू हुई है। इससे पहले ताज एक्सप्रेस झांसी से बनकर चलती थी और अहमदाबाद एक्सप्रेस आगरा से बनकर चलती थी। रेलवे अधिकारियों की माने तो इन ट्रेनों में धुलाई में ज्यादा पानी नहीं लगता है, लेकिन इसके टॉयलेट में पानी भरा जाता है। वहीं यार्ड में एक सफाई कर्मचारी का कहना था कि ट्रेनों में भी सफाइ करनी पड़ती है। इसमें पानी का भी इस्तेमाल होता है।
(ट्रेन और कोच)
– बुंदेलखंड एक्सप्रेस- 18
– चंबल एक्सप्रेस – 20
– रतलाम इंटरसिटी – 24
– बरौनी एक्सप्रेस – 21
– भोपाल इंटरसिटी – 11
– कोटा पैसेंजर – 11
– पूना ग्वालियर – 17
– ग्वालियर आगरा शटल – 12
– ग्वालियर भिंड – 10
– ताज एक्सप्रेस – 21
– अहमदाबाद एक्सप्रेस- 21
शहरों में पानी की कमी को देखते हुए कुछ समय पूर्व ही हाईकोर्ट ने सभी सरकारी कार्यालय में वॉटर हार्वोटिंग कराने का आदेश दिया था। अगर पानी की कमि से बचने रेलवे समय रहते वॉटर हार्वोस्टिंग करा ले तो लाखों गैलन पानी नालियों में बहने से बचाया जाता है।
रेलवे के यार्ड में जहां ट्रेनों की धुलाई होती है। उसके आसपास पानी के री-साइकिल के लिए रेलवे ने बड़े-बड़े गड्ढे तो किए, लेकिन उनका सही इस्तेमाल नहीं करने से यह गड्ढे अब तक अपना काम नहीं कर सके हैं।
ट्रेनों की धुलाई के लिए पानी की आवश्यकता पड़ती है, लेकिन यार्ड में काफी समय से री-साइकिल का काम किया जा रहा है। संभवत: दो से तीन महीने में री-साइकिल का काम पूरा कर लिया जाएगा। इससे पानी की बर्बादी भी नहीं हो सकेगी।
मनोज कुमार सिंह, पीआरओ झांसी मंडल