scriptसमाज में बदलाव लाने के लिए खुद का नजरिया बदलना होगा | To change society, one must change his her own perspective | Patrika News

समाज में बदलाव लाने के लिए खुद का नजरिया बदलना होगा

locationग्वालियरPublished: Sep 13, 2019 08:20:15 pm

Submitted by:

Harish kushwah

यदि समाज को बदलना है तो पहले खुद में बदलाव लाना होगा। यदि बात समानता की करें, तो इसके लिए कई तरह के कानून बने हैं, लेकिन बदलाव लाने के लिए उन कानूनों को व्यवहार में भी लाना होगा। साथ ही अपनी सोच और नजरिए को भी बदलना होगा।

समाज में बदलाव लाने के लिए खुद का नजरिया बदलना होगा

समाज में बदलाव लाने के लिए खुद का नजरिया बदलना होगा

ग्वालियर. यदि समाज को बदलना है तो पहले खुद में बदलाव लाना होगा। यदि बात समानता की करें, तो इसके लिए कई तरह के कानून बने हैं, लेकिन बदलाव लाने के लिए उन कानूनों को व्यवहार में भी लाना होगा। साथ ही अपनी सोच और नजरिए को भी बदलना होगा। यह बात दिल्ली से आईं एक्सपर्ट अनमोल कोहली ने कही। वे जीवाजी यूनिवर्सिटी के गालव सभागार में गुरुवार को हुई वर्कशॉप में बतौर मुख्य वक्ता बोल रही थीं। जेयू के पत्रकारिता व जन संचार अध्ययन केंद्र और विवेल के संयुक्त तत्वाधान में ‘नो योर राइट्स’ विषय पर हुई। इस वर्कशॉप में एक्सपर्ट ने पॉवर प्वॉइंट प्रजेंटेशन के माध्यम से कोर्ट के कुछ केसेस के बारे में भी चर्चा की। इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में भोपाल से निजी विश्वविद्यालय विनियामक आयोग के अध्यक्ष डॉ. एमएस परिहार रहे। कार्यक्रम की अध्यक्षता वीसी प्रो. संगीता शुक्ला ने की।
स्वयं की जिम्मेदारी को समझें

स्टूडेंट्स को संबोधित करते हुए मुख्य अतिथि डॉ. परिहार ने कहा कि यह समाज भी परिवार की तरह है, जरूरत है उसके प्रति स्वयं की जिम्मेदारी को समझने की। हर दिन महसूस करें कि आपने ऐसा क्या किया, जो कि समाज के लिए फायदेमंद है। फर्स्ट सेशन यूजी के स्टूडेंट्स के लिए रखा था, जिसमें फार्मेसी, एलएलबी, इंजीनियरिंग, बीसीए, बीजेएमसी के स्टूडेंट्स थे, जबकि सेकंड सेशन पीजी स्टूडेंट्स के लिए था, जिसमें एमबीए बिजनेस इकोनोमिक्स, बीलिब, एमलिब, एमकॉम, बीपीएड और एमपीएड के स्टूडेंट्स शामिल थे। कार्यक्रम में स्टूडेंट्स वेलफेयर डीन डॉ. केशव गुर्जर और प्रोक्टर डॉ. एसके सिंह और लाइब्रेरी साइंस के हेड प्रो. हेमंत शर्मा मौजूद रहे। संचालन प्रोग्राम को-ऑर्डिनेटर जर्नलिज्म विभाग के हेड डॉ. शांतिदेव सिसोदिया किया।
बेटियां आज बेटों से आगे

वीसी प्रो. संगीता शुक्ला ने कहा कि समय के बदलाव के साथ अब बेटा-बेटी में अंतर की कोई बात नहीं रही। बेटियां हर क्षेत्र में बेटों से आगे हैं। उन पर जिम्मेदारी भी अधिक होती है, लेकिन इसके बावजूद कुछ लोगों की सोच और नजरिए को बदलने की जरुरत है। हालांकि युवाओं में पहले की अपेक्षा लिखने और पढ़ने की आदत में कमी आई है, क्योंकि एक क्लिक पर ही स्क्रीन पर सारी जानकारी उपलब्ध हो जाती है। समाज में सुधार के लिए अच्छी किताबों को पढ़ने की आदत डालनी होगी।
इन बदलावों की जरूरत

बेटा हो या बेटी दोनों को ऐसी शिक्षा दें कि समाज के प्रति जिम्मेदार बन सकें।

चाहे विषय कोई भी हो, सभी को कम्युनिटी बनाकर काम करना होगा।
नुक्कड़ नाटक, वर्कशॉप आदि के माध्यम से लोगों को बेटा-बेटी संबंधी भेदभाव को मिटाने के लिए जागरूक करने की जरूरत है।

स्वयं ये करें

स्वयं के अंदर जिम्मेदारी की भावना को विकसित करें, जहां भी भेदभाव की स्थिति दिखे, आगे बढ़कर काम करें।
अपनी सोच और नजरिए को बदलने की कोशिश करें।

घर में ऐसा माहौल बनाएं कि आपकी बेटी या बहू के लिए सकरात्मक वातावरण तैयार हो सके।

कानून संबंधी जानकारी

कई ऐसे लोग हैं, जिन्हें समानता संबंधी कानूनों का ज्ञान नहीं है, वहां कैंप लगाकर उन्हें ंजागरूक करना होगा।
अधिक जानकारी के लिए उन घटनाओं व व्यक्तियों के बारे में पढ़ना होगा, जिनके कारण कानून में बदलाव हुआ।

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