स्वयं की जिम्मेदारी को समझें स्टूडेंट्स को संबोधित करते हुए मुख्य अतिथि डॉ. परिहार ने कहा कि यह समाज भी परिवार की तरह है, जरूरत है उसके प्रति स्वयं की जिम्मेदारी को समझने की। हर दिन महसूस करें कि आपने ऐसा क्या किया, जो कि समाज के लिए फायदेमंद है। फर्स्ट सेशन यूजी के स्टूडेंट्स के लिए रखा था, जिसमें फार्मेसी, एलएलबी, इंजीनियरिंग, बीसीए, बीजेएमसी के स्टूडेंट्स थे, जबकि सेकंड सेशन पीजी स्टूडेंट्स के लिए था, जिसमें एमबीए बिजनेस इकोनोमिक्स, बीलिब, एमलिब, एमकॉम, बीपीएड और एमपीएड के स्टूडेंट्स शामिल थे। कार्यक्रम में स्टूडेंट्स वेलफेयर डीन डॉ. केशव गुर्जर और प्रोक्टर डॉ. एसके सिंह और लाइब्रेरी साइंस के हेड प्रो. हेमंत शर्मा मौजूद रहे। संचालन प्रोग्राम को-ऑर्डिनेटर जर्नलिज्म विभाग के हेड डॉ. शांतिदेव सिसोदिया किया।
बेटियां आज बेटों से आगे वीसी प्रो. संगीता शुक्ला ने कहा कि समय के बदलाव के साथ अब बेटा-बेटी में अंतर की कोई बात नहीं रही। बेटियां हर क्षेत्र में बेटों से आगे हैं। उन पर जिम्मेदारी भी अधिक होती है, लेकिन इसके बावजूद कुछ लोगों की सोच और नजरिए को बदलने की जरुरत है। हालांकि युवाओं में पहले की अपेक्षा लिखने और पढ़ने की आदत में कमी आई है, क्योंकि एक क्लिक पर ही स्क्रीन पर सारी जानकारी उपलब्ध हो जाती है। समाज में सुधार के लिए अच्छी किताबों को पढ़ने की आदत डालनी होगी।
इन बदलावों की जरूरत बेटा हो या बेटी दोनों को ऐसी शिक्षा दें कि समाज के प्रति जिम्मेदार बन सकें। चाहे विषय कोई भी हो, सभी को कम्युनिटी बनाकर काम करना होगा।
नुक्कड़ नाटक, वर्कशॉप आदि के माध्यम से लोगों को बेटा-बेटी संबंधी भेदभाव को मिटाने के लिए जागरूक करने की जरूरत है। स्वयं ये करें स्वयं के अंदर जिम्मेदारी की भावना को विकसित करें, जहां भी भेदभाव की स्थिति दिखे, आगे बढ़कर काम करें।
अपनी सोच और नजरिए को बदलने की कोशिश करें। घर में ऐसा माहौल बनाएं कि आपकी बेटी या बहू के लिए सकरात्मक वातावरण तैयार हो सके। कानून संबंधी जानकारी कई ऐसे लोग हैं, जिन्हें समानता संबंधी कानूनों का ज्ञान नहीं है, वहां कैंप लगाकर उन्हें ंजागरूक करना होगा।
अधिक जानकारी के लिए उन घटनाओं व व्यक्तियों के बारे में पढ़ना होगा, जिनके कारण कानून में बदलाव हुआ।