scriptार को होटल की तरह खूब सजाना, लेकिन दिल के महलों में बुजुर्गों का ठिकाना रखना… | To decorate a lot like a hotel, but to keep the whereabouts of the eld | Patrika News

ार को होटल की तरह खूब सजाना, लेकिन दिल के महलों में बुजुर्गों का ठिकाना रखना…

locationग्वालियरPublished: Feb 02, 2020 12:24:47 am

Submitted by:

Mahesh Gupta

ग्वालियर व्यापार मेला में अखिल भारतीय कवि सम्मेलन

ार को होटल की तरह खूब सजाना, लेकिन दिल के महलों में बुजुर्गों का ठिकाना रखना...

ार को होटल की तरह खूब सजाना, लेकिन दिल के महलों में बुजुर्गों का ठिकाना रखना…


ग्वालियर.

ग्वालियर व्यापार मेला में शनिवार की शाम हास्य, व्यंग्य और प्रेम के इन्द्रधनुषी रंगों के नाम रही। देशभर से आए कवियों ने शहर के बाशिंदों को हंसाया, गुदगुदाया और जमकर मोहब्बत की बौछार की। हास्य क्षणिकाओं ने शहर को जमकर लोटपोट किया, तो प्यार में डूबे गीत सीधे दिल में उतर गए। मस्ती में डूबे श्रोताओं की ओर से वंस मोर वंस मोर की आवाज ने कवियों को बार-बार मंच पर आने को विवश कर दिया। कार्यक्रम का संचालन कर रहे जौरा के तेज नारायण बेचैन का अंदाज भी निराला रहा, उन्होंने कवियों के मंच पर आने से पहले उनका इस्तकबाल अलग अंदाज में किया, जिससे रसिकजन तालियां बजाने को विवश हो गए।

हास्य कवि शंभू शिखर ने देश के राजनीतिक समीकरणों पर व्यंग्य करते हुए पढ़ा तुम तोड़ो वादा और हम निभाते रहेंगे, नाराजगी ऐसे ही हम जताते रहेंगे। जब तक नहीं आते 15 लाख खाते में, तब तक मोदी जी हम तुम्हें जिताते रहेंगे। शहरवासियों को जोड़ते हुए डॉ. सुरेश अवस्थी ने यूवा पीढ़ी को नसीहत देते हुए कहा अपनी ख्वाहिश के परिंदे पर निशाना रखना, जिंदगी का जो सफर है वो सुहाना रखना, घर को होटल की तरह खूब सजाना, लेकिन दिल के महलों में बुजुर्गों का ठिकाना रखना…।

कार्यक्रम को आगे बढ़ाते हुए अनिल अग्रवंशी ने वीरांगना नारी की वीरता से ओतप्रोत होकर पढ़ा ये मीरा की अमर भक्ति जहर से मर नहीं सकती, ये झांसी वाली रानी है किसी से डर नहीं सकती, मदर टेरेसा, लता हो, कल्पना या सानिया, सायना मैरी, असंभव क्या है दुनिया में, जो नारी कर नहीं सकती…। वहीं शशिकांत यादव ने देश के हालात पर सभी को एकता के सूत्र में बांधते हुए पढ़ा एक मां के दो हैं लाल, धमनियों में रक्त लाल, दुश्मनी पे है बवाल दोस्ती भी है कमाल, एक जमीं, एक आसमान, आरती है एक अजान, दो रास्ते अलग-अलग पर मुकाम एक है, नेक हैं जो रास्ते तो नेकियां बढ़ाइए, फैसला तो हो चुका है, फ ासले मिटाइए…।

गीत एवं गजलकार पद्मिनी शर्मा ने पढ़ा भारत की संस्कृति परम पुनीता बचा लो, कर्मों की अदालत में अपनी गीता बचा लो, मंदिर तो आजकल में बन ही जाएंगे मगर, कलयुग के रावणों से अपनी गीता बचा लो…। दिल्ली के पं. सुरेश नीरव ने कहा नए मौसम में कैसे चींटियों ने पर निकाले हैं, हमें लगता है दिन इनके भी अच्छे आने वाले हैं…। शीतल गोयल ने पढ़ा इस जहां-ए-दौर में कम यूं रवानी हो गई, जानना किरदार को मुश्किल कहानी हो गई…। डॉ. कुमार मनोज इटावा ने पढ़ा अजब किस्मत है गद्दी पर वही सरदार बैठे हैं, हमारे सिर कलम करने को जो तैयार बैठे हैं…।

रमेश शर्मा धुंआधार ने कहा पत्थरों को तराश कर न उन्हें भगवान बनाएं, शैतानों को तलाश कर उन्हें इंसान बनाएं…। अमित चितवन ने पढ़ा तुम भी तो यार निकले हो कैसे कमाल के, बोतल को खाली ले के चले हो संभाल के, डसना है काम उनका डसेंगे वो आपको, ये देखना है देख लें सांपों को पाल के…। जौनी बैरागी ने पढ़ा मुझे इस बात का गम है कि मेरा नाम बम है, मैं हर बार यूं ही छला गया हूं, बिस्मिल के हाथ से निकला और हिजबुल के हाथ चला गया हूं….। मंत्रिता शर्मा ने पढ़ा सभ्यता यहां पर जिंदा है पूजे जाते हैं संस्कार, कल-कल करती हैं पवित्र पावन नदियां धवलधार…।
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