प्राथमिक कृषि साख सहकारी संस्था उर्वा के माध्यम से 1113 कृषक सदस्यों को 3 करोड़ 79 लाख 89 हजार 594 रुपए का ऋ ण वितरित किया गया था। ऋ ण वितरण में दर्ज किसान उर्वा सोसायटी के सदस्य नहीं थे। न तो ऋणी कृषकों की कृषि भूमि वहां थी और न ही इनके नाम नॉर्मल क्रैडिट लिमिट थी। बैंक शाखा में भी कर्ज वितरण से संबंधित दस्तावेज नहीं मिले। जांच में पता चला कि वर्ष 2007-08 से 2016-17 की अवधि में हुए ऋ ण वितरण को जमा ही नहीं किया गया। मूलधन जमा न होने से ऋ ण से 5 करोड़ 66 लाख 20 हजार 172 रुपए ब्याज हो गया और जांच पूरी होने तक गोलमाल की रकम 9 करोड़ 46 लाख 9 हजार 766.14 रुपए हो गई थी। जिसमें 2017 और 2018 का ब्याज जोडऩे पर लगभग 1 करोड़ रुपए और बढ़ जाएंगे।
तत्कालीन प्राथमिक साख सहकारी सहकारी समिति उर्वा के प्रबंधक और चीनोर बैंक शाखा के पर्यवेक्षक कालीचरण गौतम तत्कालीन जिला सहकारी केंद्रीय बैंक ग्वालियर की शाखा चीनोर पर पदस्थ कैशियर मनीराम शर्मा और तत्कालीन शाखा प्रबंधक मुकेश माथुर को दोषी माना गया है।
सितंबर में जांच पूरी होने पर पत्रिका ने चीनोर, तेकपुर और रिझौरा के किसानों से बात की थी। किसानों ने बताया था कि गोलमाल की जांच सहकारी निरीक्षक राजीव रूपोलिया को दी गई थी। एक महीने प्रकरण दर्ज करने में देर की गई। इस दौरान दोषी कर्मी ने राजनीतिक पहुंच का फायदा उठाकर जांच बदलवाने की कोशिश की। जांच अधिकारी का तबादला पन्ना करा दिया था। चीनोर बैंक से संबद्ध नौ सोसायटियों पर ऋण माफी में घोटाले की जांच भी अधर में है। जांच के लिए भोपाल से आई पांच सदस्यीय जांच टीम को भी दबाव में लेने की लगातार कोशिश की जाती रही है।