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ये है पलायन वाला जिला : हर साल यहां से हजारों लोग छोड़ते है अपना घर,जानिए

locationग्वालियरPublished: Apr 25, 2019 02:24:05 pm

Submitted by:

monu sahu

ये है पलायन वाला जिला : हर साल यहां से हजारों लोग छोड़ते है अपना घर,जानिए

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ये है पलायन वाला जिला : हर साल यहां से हजारों लोग छोड़ते है अपना घर,जानिए

ग्वालियर। घर,बस्ती और गांव को छोडकऱ दूर कहीं खुले आसमां तले बसेरा करने की मजबूरी और महीनों तक प्राकृतिक आपदाओं से जूझते हुए गुजर-बसर। बाद में अव्यवस्थित जीवनशैली और खान-पान के साथ जब वापस लौटते हैं तो तमाम बीमारियों व विपदाओं से घिर जाते हैं। कुछ ऐसी ही पीड़ा है पलायन करने वाले जिले के उन हजारों परिवारों की, जो रोजगार और पानी की तलाश में हर साल पलायन को मजबूर हैं। हालांकि चुनावों में तमाम बड़े-बड़े वादे और राष्ट्रवाद के खोखले ढिंढोरे के साथ नेता जनता को लुभाने का प्रयास करते हैं, लेकिन जनता को मूलभूत सुविधाएं देने जैसे असली राष्ट्रवादी और वास्तविक मुद्दों पर कोई बात नहीं करता।
इसी का परिणाम है कि श्योपुर जिले में गरीब मजदूरों और पशुपालकों का पलायन अब श्योपुर जिले की अनचाही पहचान बन गया है। यही वजह है कि कुपोषण के बाद पलायन का भी एक अमिट कलंक है, जो वर्षों से श्योपुर के माथे पर लगा हुआ है। आज भी हजारों परिवार जहां रेाजगार की तलाश में परिवार संग पलायन करने को मजबूर हैं, तो सैकड़ों परिवार अपने मवेशियों के लिए चारे-पानी की तलाश में घर-बार छोड़ जाते हैं। बावजूद इसके पलायन रोकने के लिए जनप्रतिनिधियों ने न तो कोई ठोस प्रयास किए और न ही सरकारों ने भी कोई ठोस कार्ययोजना बनाई।
चारे-पानी को एक हजार पशुपालकों की लंबी दौड़
आदिवासी विकासखंड कराहल में लगभग दो दर्जन गांव ऐसे हैं, जिनमें गुर्जर-मारवाड़ी परिवार निवास करते हैं और इनकी आजीविका पशुपालन पर ही निर्भर है। लेकिन ग्रीष्मकाल में इन क्षेत्रों में चारे-पानी का संकट हो जाता है। लिहाजा चारे-पानी के अभाव में अपने पशुओं को बचाने ये पशुपालक परिवार मार्च माह में पलायन कर जाते हैं और पहली बारिश के बाद लौटने लगते हैं। क्षेत्र के ग्राम गोरस, कलमी, पिपरानी, डोब, चितारा, बुढ़ेरा, खेरा,डाबली, झरेर, सिमरोनिया, खाड़ी, खूंटका, पातालगढ़, कोटागढ़, रानीपुरा, राहरौन आदि सहित अन्य कई गांवों के लगभग एक हजार परिवार न केवल श्योपुर क्षेत्र के बड़ौदा और राजस्थान के इलाकों में जाते हैं बल्कि उत्तरप्रदेश और उत्तराखंड के गंगा-जमुना नदी के किनारे वाले क्षेत्रों तक भी जाते हैं। यही वजह है कि इनके पीछे बस्तियां खाली पड़ जाती है, या केवल वृद्धजन घरों में दिखते हैं। हालांकि इस समस्या के समाधान के लिए ये पशुपालक हर दल और हर सरकार के समक्ष वर्षों से अपनी मांग रखते आ रहे हैं, लेकिन किसी ने नहीं सुना। हां, पानी के लिए के लिए क्षेत्र में छोटे छोटे स्टॉप डैम, चारे के लिए डिपो आदि के खोखले आश्वासन जरूर मिले हैं।
Lok Sabha Election 2019
रोजगार के लिए 10 हजार परिवारों का पलायन
चारे-पानी के लिए जहां पशुपालक पलायन करते हैं, वहीं गंभीर समस्या है रोजगार के लिए पलायन। आदिवासी क्षेत्र कराहल और विजयपुर के ही लगभग 80 गांवों से हर साल फसल कटाई के लिए चेतुआ मजदूर के रूप में लगभग 10 हजार परिवार श्योपुर क्षेत्र के साथ ही राजस्थान की ओर पलायन करते हैं। हर साल फरवरी के अंत में इनका पलायन शुरू होता है और अप्रेल के दूसरे पखवाड़े में लौटने लगते हैं। हालांकि फसल कटाई के लिए होने वाला ये पलायन इन मजदूरों के लिए एक परंपरा सी बन गया है, लेकिन जब ये लौटते हैं तो इनके अधिकांश बच्चे कुपोषण का शिकार हो जाते हैं, साथ ही अन्य बीमारियां बच्चों व मजदूरों को जकड़ लेती हैं।
वहीं पलायन के चलते इनके गांव के गांव खाली नजर आते हैं। हालांकि जनप्रतिनिधि और नेता क्षेत्र में वनोपज आधारित किसी उद्योग धंधे की वकालत करते तो नजर आते हैं, लेकिन इस दिशा में कोई प्रयास करते नहीं दिखते। यही वजह है कि रोजगार की तलाश में इन चेतुआ मजदूरों के अलावा भी क्षेत्र के सैकड़ों आदिवासी परिवार और एकल युवा भी जयपुर, अजमेर, जेसलमेर अहमदाबाद, सूरत जैसे शहरों में मजदूरी करने को मजबूर हैं।
“आदिवासियों को रोजगार के लिए पलायन करना पड़ता है, लेकिन इस दिशा में कोई नहीं सोचता। जबकि क्षेत्र मेें वनोपज आधारित उद्योग धंधे विकसित किए जाएं, तो लोगों को यहीं रोजगार उपलब्ध हो सकता है।”
सतीश चौहान, उपाध्यक्ष, 8 4 महापंचायत आदिवासी समाज कराहल
“दो दर्जन गांवों के परिवारों के लिए पशुपालन ही मुख्य व्यवसाय है। लेकिन इनके चारे-पानी की गंभीर समस्या का आज तक समाधान नहीं हुआ है, जिससे इन्हें हर साल पलायन करना पड़ता है। इस बार भी सैकड़ों परिवार यहां से गए हैं।”
नंदा गुर्जर, अध्यक्ष पशुपालक गोरस
“आदिवासी हितों की बात तो तमाम नेता और पार्टियां करती हैं, लेकिन धरालत पर स्थितियां शून्य है। यही वजह है कि आज भी कराहल क्षेत्र के सैकड़ों आदिवासी परिवारों को रोजगार की तलाश में अन्यत्र पलायन करना पड़ता है।”
टुंडाराम लांगुरिया,आदिवासी नेता कराहल
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