शिवपुरी शहर सहित जिले भर में भू-जल स्तर तेजी से नीचे गिरता जा रहा है, फिर भले ही जिले में औसत से अधिक बारिश हुई हो या नहीं। शहर में जब जल संकट के दौरान गर्मियों में ट्यूबवैल खनन होता है तो एक हजार फीट पर भी जमीन के अंदर से मिट्टी ही निकलती है। शिवपुरी शहर में जल संरचनाएं खत्म होने के साथ ही बारिश के पानी को नहीं सहेज पा रहे, जिस वजह से शहर के जल स्त्रोत जल्दी ही खाली हो जाते हैं। शहर जहां ड्राई-जोन में तब्दील हो गया है, वहीं अंचल में भी हालात खराब हैं। क्योंकि जल संरचनाओं को सहेजने के लिए हर साल गर्मियों के दौरान प्रशासन द्वारा अभियान तो चलाए जाते हैं, लेकिन यह काम सिर्फ राशि खर्च करने और कागजों में जल संरचना बनाने तक सिमट कर रहे जाते हैं। जिसके चलते अंचल में भी वाटर लेवल बढ़ नहीं पा रहा और वहां भी गर्मियों के साथ ही जल संकट गंभीर होने लगता है। शहर में हर बार पानी चुनावी मुद्दा बनता आया है और इस बार भी लोकसभा के चुनाव जब होंगे, तब तक यह समस्या शहर में विकराल रूप धारण कर चुकी होगी।
अंचल में कागजीबाड़ा
जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में भू-जल स्तर बढ़ाने के लिए वाटरशेड योजना के तहत लगभग 1 अरब रुपए से अधिक की राशि खर्च कर दी गई। इसके अंतर्गत तालाब, पहाडिय़ों पर कंटूर ट्रंच सहित अन्य संरचनाएं बनाई जानी थीं, ताकि बरसात के पानी को सहेजा जाकर वाटर लेवल बढ़ाया जा सके। लेकिन यह सभी संरचनाएं महज कागजों में सिमट कर रह गईं। जिसके चलते कागजों में एक अरब रुपए खर्च हो गए, लेेकिन भू-जल स्तर एक इंच भी नहीं बढ़ा। पानी के नाम पर हुए इस कागजीबाड़े में जिम्मेदार विभाग के अधिकारियों से लेकर गांव की सरकार के जनप्रतिनिधि भी शामिल रहे।
शहर में इसलिए गंभीर हुए हालात
शिवपुरी शहर 3 किमी क्षेत्रफल में फैला हुआ है तथा इसकी बनावट उल्टे कटोरे की तरह है, यानि बारिश का पानी बह जाता है। इसलिए स्टेट टाइम में जब शिवपुरी को बसाया गया, तो वाटर लेवल को यथावत बनाए रखने के लिए 18 तालाब बनाए गए, जो नालों के माध्यम से इंटरकनेक्टिंग थे। हर साल बारिश के दौरान जब यह तालाब भर जाया करते थे, तो उनके आसपास के जलस्त्रोत में वाटर लेवल अधिक होने से पानी का संकट नहीं होता था। समय गुजरने के साथ इन तालाबों पर भू-माफिया ने कब्जा कर उनमें कॉलोनियां बना दीं, जिसके चलते 14 तालाबों का अस्तित्व ही खत्म हो गया। शेष चार तालाबों में जाधव सागर, भुजरिया तालाब, चांदपाठा व माधवलेक रह गए हैं। इनमें से भुजरिया तालाब के अंदर भी मकान बनाकर उस पर भी कब्जे की तैयारी चल रही है। शहर में एक तरफ जहां जल संरचनाएं खत्म हो गईं, वहीं तीन किमी एरिया में नगरपालिका ने 450 से अधिक ट्यूबवेल हैं, जबकि इससे तीन गुना प्राइवेट ट्यूबवेल हैं। यानि रीचार्जिंग की सुविधा नहीं और दोहन लगातार जारी है। इसी वजह से शहर ड्राईजोन हो गया।