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समाज का बदला नजरिया: पुरुषों ने माना- महिलाएं लिख रहीं नई इबारत

locationग्वालियरPublished: Mar 08, 2019 12:56:32 pm

Submitted by:

Mahesh Gupta

समाज का बदला नजरिया: पुरुषों ने माना- महिलाएं लिख रहीं नई इबारत

woman day

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महिला, तीन अक्षर का यह नाम अपने अंदर बहुत कुछ समेटे हुए है। मां, बहन, पत्नी, बहू के साथ वह डॉक्टर, इंजीनियर, साइंटिस्ट और पायलट भी हैं। वह पारिवारिक दायित्वों को निभाने के साथ सीमा पर भी डटी हुई हैं, फाइटर प्लेन चलाकर वह देश की सुरक्षा में योगदान दे रही है। आज महिला समाज की ताकत बन चुकी है। समाज का भी नजरिया महिलाओं के प्रति बदला है। अब तोक पुरुषों ने भी यह मान लिया है कि महिलाएं देश की नई इबारत लिख रही हैं। वह आज किसी भी क्षेत्र में पुरुषों से पीछे नहीं हैं। आज महिला दिवस है एेसे में हम आपको कुछ एेसी ही महिलाओं से परिचित करा रहे हैं।

मुंबई में कर रहीं शहर का नाम रोशन
झे बचपन से कुछ अलग करने का जुनून था। वैसे तो मैं अंतरिक्ष यात्री बनना चाहती थी, पर आज मैंने अपने काम के जरिए एक अलग मुकाम कायम बना लिया है। मुंबई में देश-विदेश की बड़ी कंपनियों को सप्लायर्स उपलब्ध कराने का काम करने वाली सोनम मोटवानी ने बताया कि मैं आइआइटी मुंबई से एयरोस्पेस इंजीनियर हूं। अपने स्नातक वर्षों के दौरान, मैं फॉर्मूला स्टूडेंट यूके के लिए इलेक्ट्रिक रेस कार बना रही थी। इस दौरान मैंने हार्डवेयर उत्पाद भी तैयार किया। उसके बाद देश की जानी-मानी कंपनी में काम किया तो पता लगा कि बड़ी कंपनियों को सप्लायर्स की जरूरत होती है। मैंने ऑनलइन कंपनी को शुरू की। इसमें मैन्युफैक्चिरिंग तकनीक के अंतर्गत प्लास्टिक, मैटल पर थ्रीडी प्रिंटिंग, सीएनसी, शीट मैटल और वैक्यूम कास्टिंग का काम भी कर रहे हैं। इसमें समय और लागत दोनों की बचत होती है। इस कार्य में मेरे पिता भीष्म मोटवानी का विशेष सहयोग रहा है।
खुद की वेबसाइट बनाकर कर रहीं लाखों का टर्न ओवर

न में कुछ करने का जज्बा हो, तो कोई भी काम नामुमकिन नहीं है। कुछ एेसा ही सोचकर मोना शर्मा ने खुद का बिजनेस खड़ा करने का प्लान किया। पैरेंट्स की बिना हेल्प लिए घर पर ही कबाड़ के समान से आयटम्स तैयार किए और उन्हें एग्जीबिशन पर सेल किए। थोड़ा प्रॉफिट हुआ तो महिलाओं को जोड़ा और उनसे भी आर्ट एंड क्राफ्ट के आयटम्स बनवाए। धीरे-धीरे पहचान मिलने लगी। इसके बाद खुद की वेबसाइट बनाई और उसके जरिए आज इंडिया भर में आयटम्स सप्लाई होते हैं। इसके साथ ही मोना सेंट्रल जेल, एजुकेशनल इंस्टीट्यूट में फ्री क्लास लेकर ट्रेनिंग भी दे रही हैं।
शहर की अकेली वेटनरी सर्जन
मेरी पोस्टिंग २०१० में वेटनरी सर्जन के रूप में हुई। उस समय सभी वेटनरी सर्जन के रूप में मुझे देखकर हैरन था। लोग मुझसे पूछते थे कि क्या आप सर्जरी कर लेंगी। मेरा स्टॉफ भी मुझ पर विश्वास नहीं कर पाता था। आज बेटियां मुझसे इंस्पायर हैं और मुझसे कॅरियर के बारे में एडवाइज लेने आती हैं। अभी तक मैं हजारों छोटी-बड़ी सर्जरी कर चुकी हूं। हर माह मैं डॉग, कैटल, रैबट्स, बड्र्स बकरी के प्रॉब्लम होने पर उनका ऑपरेशन करती हूं।
गरीबों को दे रहीं कानूनी मदद
नाबालिग बालिकाओं के साथ होने वाले अपराधों के मामले में जब कहीं से कोई मदद नहीं मिलती है तब एेसे मामलों में महिला एडवोकेट गिरिजा रमैया ने पीडि़त परिवारों की लड़ाई लढकर उन्हें न्याय दिलाया है। वे डेढ साल में दो दर्जन मामलों में पीडि़त परिवारों को न्याय दिला चुकी हैं। एडवोकेट रमैया के पास नाबालिग बालिकाओं के अपहरण एवं पाक्सो एक्ट से संबंधित मामले ही अधिक संख्या में आए हैं। इनमें कुछ मामले तो एेसे भी आए जिसमें आरोपियों ने उन्हें धमकी तक दी। इसके बाद भी वे पीडि़त परिवारों की सहायता में लगी रहीं।
ये रहे सवाल
१- महिला और पुरुष में कोई भेदभाव है क्या?
२- मानसिक रूप से महिला और पुरुषों में मजबूत
कौन है?
३- यदि महिला प्रधान समाज होता तो कैसा होता?
४- महिला अब पुरुषों के बराबर हैं या आगे?
५- महिलाओं को लेकर पुरुषों के नजरिए में अब बदलाव आया है, या नहीं?
महिला और पुरुष एक सिक्के के दो पहलू हैं। दोनों एक समान हैं। पर्सनालिटी और डिसीजन मेकिंग में अंतर है।
मानसिक रूप से महिला पॉवरफुल है। मुश्किल परिस्थितियों में सॉल्यूशन महिला के पास ही होता है। हर एक में उसका डिसीजन बेस्ट है।
महिला प्रधान समाज होने से शांति होगी। अराजकता खत्म होगी। घर की तरह ही पीस लविंग माहौल रहेगा। माहौल बेहतर होगा।
महिला अब पुरुष से आगे है। महिलाएं घर के साथ ही बाहर का काम भी संभालने में सक्षम हैं, जबकि पुरुष बाहर के साथ घर संभालने में सक्षम नहीं हैं।
काफी हद तक बदलाव आया है, लेकिन अभी काफी हद तक लोग ढकियानूसी सोच पर जी रहे हैं, जिन्हें बदलना होगा।
यह भेदभाव सदियों से चला आ रहा है। हालांकि अब समाज जागरुक हुआ है और अभी होने की आवश्यकता है।
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