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World Cancer Day 2019: हौसले और जज्बे से जीत ली जिंदगी की जंग,जानिए इनकी कहानी

locationग्वालियरPublished: Feb 04, 2019 09:15:10 pm

Submitted by:

monu sahu

World Cancer Day 2019: हौसले और जज्बे से जीत ली जिंदगी की जंग,जानिए इनकी कहानी

World Cancer Day

World Cancer Day 2019: हौसले और जज्बे से जीत ली जिंदगी की जंग,जानिए इनकी कहानी

ग्वालियर। कैंसर गंभीर बीमारी है, जिसके नाम से ही लोग जीने की आस छोड़ देते हैं। अपने सपनों को खत्म कर लेते हैं। ऐसे पेशेंट्स की जिंदगी कीमोथेरेपी और दवाइयों के बीच ही फंस कर रह जाती है और अंतत: वह जिंदगी से हार मान जाते हैं। लेकिन इसके बीच शहर में कई लोग ऐसे भी हैं, जिन्होंने कैंसर को अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया। उसका बराबरी से सामना किया और अपने हौसले से जिंदगी की जंग जीत ली। आज वल्र्ड कैंसर डे है। हम आपको शहर के कुछ ऐसे ही लोगों से परिचित करा रहे हैं।
छह कीमोथेरेपी और 3 साल तक चला इलाज
राजू गर्ग, बिजनेसमैन ने बताया कि मेरे बड़ी आंत में कैंसर था। उस समय मेरी दो बेटियां थी, जो कि बहुत छोटी थी। परिवार की पूरी जिम्मेदारी मेरे ऊपर थी। मैंने डॉक्टर से चेकअप कराने के बाद मुंबई में ट्रीटमेंट लिया। 6 कीमोथेरेपी के साथ लगभग तीन साल तक इलाज चला। उस समय बहुत सारे साइडइफेक्ट भी हुए, लेकिन मुझे जीना था। इसलिए हौसला नहीं छोड़ा। लोगों ने भी मुझे मोटिवेट किया। ऑपरेशन में मेरा 14 इंच पेट काटा गया। आज मैं पूरी तरह से स्वस्थ हूं। मेरी जिद थी कि मुझे जीना है, इसी विश्वास ने मुझे सफलता दिलाई।
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एम्स के डॉक्टर बोले-बचने की उम्मीद नहीं
कोक सिंह, सोशलवर्कर ने बताया कि मुझे ब्लड कैंसर था। शरीर पर लगभग 200 गांठे हो चुकी थीं। चलने और कुछ भी काम करने में असमर्थ था। एम्स गया तो डॉक्टर बोले घर जाकर भगवान का नाम जपो। बचने की उम्मीद नहीं है। लेकिन मैंने हार नहीं मानी। वापस ग्वालियर में ही इलाज लिया और जिंदगी की जंग जीत ली। आज मैं पूरी तरह से स्वस्थ हूं और अब कैंसर से पीडि़त मरीजों को हौसला देता हूं और प्रधानमंत्री व मुख्यमंत्री योजना के माध्यम से उनका कैंसर का इलाज कराता हूं। अब मेरा जीवन कैंसर पीडि़त लोगों की मदद करना है।
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राइट हैंड और दोनों पैरों में हुआ था पैरालिसिस
अवनीश गहोई, इंश्योरेंस एडवाइजर ने बताया कि अक्टूबर 2016 में मुझे ब्लड कैंसर का पता चला। मेरा राइट हैंड और दोनों पैरों में पैरालिसिस हो गया था। डॉक्टर्स ने दिल्ली रेफर कर दिया। गंगाराम हॉस्पिटल में कीमोथेरेपी हुईं। परिवार ने मुझे पहले तीन माह ब्लड कैंसर के बारे में नहीं बताया। इसके बाद भी मुझे मालूम चल गया। लेकिन मैं भी उनकी नजर में अंजान रहा। मन में हौसला रखा कि मुझे ठीक होना है। शरीर में तकलीफ के बाद मैं खुश रहता और परिवार को भी हंसाता रहता। आज मैं पूरी तरह स्वस्थ हूं और अपनी जिंदगी का निर्वाह कर रहा हूं।
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