अकबर के नौ रत्नों में से एक संगीत सम्राट तानसेन का जन्म बेहट के एक मरकंड पांडे के परिवार में 1506 में हुआ था। ब्राह्मण परिवार के होने के बावजूद तानसेन बकरियां चराते और रोजाना बकरी का दूध झिलमिल नदी के किनारे बने भगवान शिव के मंदिर में चढ़ाते। एक बार वे भगवान शिव पर दूध चढ़ाना भूल गए, लेकिन जब शाम को खाना खाते समय उन्हें याद आया तो वो व्याकुल हो उठे, फिर क्या था खाना छोड़कर दूध चढ़ाने मंदिर के लिए रवाना हो गए।
ऐसा कहा जाता है कि बालक तानसेन की इस भक्ति से भगवान शिव इतने प्रसन्न हुए कि उन्हें साक्षात दर्शन देकर उनसे संगीत सुनने की इच्छा प्रकट की। शिवजी के कहने पर तानसेन ने ऐसी तान छेड़ी कि शिव मंदिर ही टेढ़ा हो गया। ग्वालियर से संगीत का ककहरा सीखने के बाद तानसेन ने वृंदावन में संगीत की उच्च शिक्षा हासिल की। इसके बाद शेरशाह सूरी के पुत्र दौलत खां और फिर बांधवगढ़ ( रीवा ) के राजा रामचंद्र के दरबार के मुख्य गायक रहे। यहां से सम्राट अकबर ने उन्हें आगरा बुलाकर अपने नवरत्नों में शामिल कर लिया।
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इतिहासकारों की मानें तो तानसेन का जन्म ग्वालियर के तत्कालीन प्रसिद्ध फकीर हजरत मौहम्मद गौस के वरदान से हुआ था। संगीत सम्राट तानसेन बेहट के किले की गढ़ी के पास रहने वाले बघेल परिवार के यहां रहते थे। उनकी मृत्यु 1589 में हुई थी।
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खुशी हो या गम, संगीत दिल को सुकून देने का सबसे कारगर माध्यम है। कहते हैं- संगीत की कोई भाषा नहीं होती, ये सरहदों का भी बाध्य नहीं होता। ये सीधे दिल से निकलकर दिल तक पहुंचता है। संगीत को प्रेम की भाषा भी कहा जाता है। किसी के दिन की शुरूआत संगीत से होती है तो किसी की रात संगीत पर खत्म होती है। संगीत की इसी विशेषता को विश्व संगीत दिवस उजागर करता है। हर साल 21 जून को विश्व संगीत दिवस मनाया जाता है।
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इस दिन को मनाने की शुरूआत साल 1982 में फ्रांस से हुई थी। फ्रांसीसियों के संगीत के जुनून की इस दिन को मनाने के पीछे अहम भूमिका रही। साल 1982 में फ्रांस के उस समय के संस्कृति मंत्री जैक लैंग और कंपोजर मौरिस फ्लुरेट ने इस दिन को मनाने का प्रस्ताव रखा था, जिसके बाद से ही हर साल 21 जून को विश्व संगीत दिवस के रूप में मनाया जाने लगा। संगीत के प्रति लोगों के प्रेम को देखते हुए ही इस दिन को एकसाथ मिलकर मनाया जाता है। साथ गाने सुने जाते हैं, गाए जाते हैं, गानों पर थिरका जाता है। ऐसा करके पूरा माहौल संगीतमय हो जाता है।