माता कात्यायनी की पूजा अर्चना
नवरात्री का सातवां दिन अर्थात माता कात्यायनी की पूजा अर्चना का दिन। आदि शक्ति दुर्गा जी के षष्ठम स्वरूप का नाम है मां कात्यायनी। दिव्य रूपा कात्यायनी देवी का शरीर सोने के समान तेजोमय है। सिंह पर सवार मां कात्यायनी चार भुजा धारी हैं। माता के एक हाथ में राक्षसों के रक्त की प्यासी तलवार तो दूसरे हाथ में उनका प्रिय पुष्प कमल है। जबकि अन्य दो हाथ अपने भक्तों के लिये वर एवं अभय मुद्रा में हैं।
मार्कण्डये पुराण के अनुसार जब राक्षसराज महिषासुर का अत्याचार बढ़ गया तो देवताओं ने आदिशक्ति माता रानी को गुहार लगाई। उधर महर्षि कात्यान मां की कृपा के लिए तपस्या कर रहे थे। देवताओं के कार्य को सिद्ध करने के लिए देवी मां ने महर्षि कात्यान की तपस्या से प्रसन्न होकर उनके घर पुत्री के रूप में जन्म लिया। चूंकी महर्षि कात्यान ने सर्वप्रथम अपनी पुत्री रूपी चतुर्भुजी देवी का पूजन किया इसी कारण माता का नाम कात्यायिनी पड़ा।
कात्यायिनी को कहते हैं मन की शक्ति
मान्यता है कि यदि कोई श्रद्धा भाव से नवरात्री के छठे व सातवें दिन माता कात्यायनी की पूजा आराधना करता है तो उसे आज्ञ चक्र की प्राप्ति होती हे। वह भूलोक में रहते हुए भी अलौकिक तेज से युक्त होता है और उसके सारे रोग, शोक, संताप, भय हमेशा क लिये नष्ट हो जाते हैं। मान्यता है कि भगवान श्री कृष्ण को पति रूप में प्राप्त करने के लिये रूक्मिणी ने इनकी आराधना की थी जिस कारण मां कात्यायिनी को मन की शक्ति भी कहा जाता है।